डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज किसानों के साथ जो दुखद प्रसंग हुआ है उसके बारे में आपके साथ विश्लेषण करना है और वो मंदसौर तक सीमित नहीं है। सच बात ये है – “किसान ने मांगे थे फसलों के दाम और भाजपा ने ले ली अन्नदाता की जान”। “किसान लगाते हैं कर्ज माफी की गुहार और भाजपा करती है गोलियों की बौछार”। “बिचौलियों से किसान है बेहाल, भाजपा ने दे दी है उनको बंदूकों की नाल”। ये सिर्फ कविता में वक्तव्य नहीं है, ये एक पूरी दुखद सच्चाई है मंदसौर की, कल की।
क्या किसानों की व्यथा डी.डी. किसान चैनल ने दिखाई थी? आपका चाल, चेहरा, चरित्र, आपकी पार्टी का, आपके बाकि सहयोगी संस्थाओं का सिर्फ मीडिया मैनेजमेंट है। सच्चाई को ना दर्पण करना, ना दर्शाना, ना हल करना, ना किसी को दिखाने देना, सिर्फ मीडिया मैनेजमेंट करना जिसके लिए इंटरनेट तक बंद कर दिया। डी.डी. किसान चैनल ने कुछ दिखाया नहीं।
और जो आप मजाक बनाते हैं भारतीय नागरिकों और कृषकों का न्यायिक समिति बनाकर। मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि किसी चीज से अगर ध्यान दूर करना है, वहाँ से ध्यान भटकाना है, कई न्यायिक कमीशन आपने पहले कई बार बनाए हैं, उनका हाल क्या हुआ है?
2006 में दतिया में जबरदस्त दुर्घटना हुई थी, उसके लिए H.K Pandey न्यायिक समिति बनाई गई, आज 11 साल हो गए हैं, कोई रिपोर्ट H.K Pandey समिति की नहीं आई है। 2012 में AK-47 फाईरिंग हुई थी रायसेन के पास,माननीय सुषमा स्वराज की Constituency के पास, एक न्यायिक कमीशन बनाया गया, आज कर कोई रिपोर्ट नहीं देखी किसी ने। स्थगित करना झुठलाना बस। झबुआ में 90 लोगों की मृत्यु हुई, न्यायिक समिति बनी, लेकिन आज तक कोई रिपोर्ट नहीं बनी। तो हम ये पूछना चाहते हैं मोदी जी से कि इनकी सरकार ने कृषकों के विरुद्ध क्या कोई जंग छेड़ रखी है? मैं आपको कुछ आंकडें दूंगा।
2014, 2015, में 12 हजार 360 कृषकों की मृत्यु, 12 हजार 602 और 2016 का आंकड़ा है- 14 हजार। ये ट्राँसलेट होता है 35 प्रतिदिन। ये सिर्फ 2-3 साल हैं इस सरकार के, जिनका मैं आपको बड़ा स्पष्ट विवरण दे रहा हूं।
पृष्ठ 44 में entry पढ़ने का मैंने जिक्र किया लेकिन हालत ये है कि 50 प्रतिशत से ऊपर प्रोफिट पर आपने स्पष्ट कह दिया उच्चत्तम न्यायालय को कि हम नहीं कर पाएंगे। जो Procurement Price दी है आपने गेहूं और चावल की,जो 50 प्रतिशत से बहुत कम है, उसमें भी आप कम मात्रा प्रिक्योर कर रहे हैं यानि जितनी उपलब्ध है, जितनी करनी चाहिए हर वर्ष, आपके शासन काल में Procurement की मात्रा गिर रही है। उसके भी आंकडें हैं- गेहूं 288 मैट्रिक टन से 229 मैट्रिक टन, यानि 60 मैट्रिक टन कम हुआ है Procurement. प्राईस अलग बात है, Procurementकी, मात्रा भी कम हुई है। चावल में 342 से 304 हुआ है। 37 लाख मैट्रिक टन कम। जितनी भी स्कीम है, वो अलग बात है हमने शुरु की थी- नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, National Horticulture Mission, Rainfed Area Development Programme, और इनकी पूरी सूची है हमारे पास। ये सब स्कीम करीब-करीब हमने शुरु की लेकिन 2014, 2015, 2016 और 2017 में हर वर्ष इनके ऊपर जो एक्च्वुअल खर्चा है वो कम हो रहा है। एक तो दूसरा आयाम ये है कि आप बजट में कटौती कर रहे हैं। जो बजट दे रहे हैं उसमें भी खर्चा कम हो रहा है। सब आंकड़े हैं।
नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन का उदाहरण लें तो लगभग आधा हो गया है, 1799 करोड़ से लेकर 998 करोड़ हो गया है, ये दयनीय स्थिति है इस सरकार की। जिस प्रदेश ने मांग की है, अकाल के आधार पर वहाँ या तो जीरो दिया गया है, या 7-8 गुना कम दिया गया है, मांग से। तमिलनाडु में 40 हजार करोड़ की मांग की गई, उनको मिला जीरो। आँध्रप्रदेश में 2 हजार 281, मिला क्या जीरो। कर्नाटक में लगभग 1/6 हिस्सा मिला, 8000 की तुलना में 1784 के लगभग।
ये कैसा साथ है, क्या ये किसान का साथ है? ये कैसा विश्वास है, क्या किसान को आप पर विश्वास है? ये कैसा विकास हो रहा है, क्या किसानों की बढती हत्याएं, उस विकास की परिभाषा की बात कर रहे हैं आप? तो ना साथ है, ना विश्वास है ना हो रहा विकास है। किसान का दर्द पुराने शीर्षक में दिखता है- ‘किसान का दर्द है- आमदनी अठ्ठन्नी,खर्चा रुपया‘।
बात है किसान के उत्थान की और पिछले 24 घंटों में प्रधानमंत्री जी ने एक ट्वीट किया है, सिर्फ उत्तान मंडूकासन के बारे में, चुप्पी साध रखी है, किसानों की बदहाली पर, आत्महत्याओं पर, हत्याओं पर।
एक प्रश्न पर कि किसानों पर हुई फायरिंग को लेकर भाजपा का बयान आया है कि ये सब कांग्रेस ने करवाया है और दूसरी तरफ भाजपा प्रवक्ता ने दिल्ली में कहा है कि कांग्रेस के हाथ में कोई दम नहीं है, श्री सिंघवी ने कहा कि जहाँ तक कांग्रेस के करवाने का सवाल है, ये अगर इतना दर्दनाक वाक्या नहीं होता तो बड़ी मजाक करने वाली बात होती। ये बात उनके खुद के गृहमंत्री साहब ने मानी है कि ये फायरिंग पुलिस ने करवाई है। जहाँ तक हमें मालूम है मध्यप्रदेश का शासन कांग्रेस नहीं चलाता। तो इस प्रकार के मजाकिया वक्तव्य आते हैं, गोलियों के ऊपर, फायरिंग के ऊपर, मृत्यु के ऊपर, ये उनका अपमान करते हैं। ये अंसवेदनशीलता दर्शाते हैं सरकार की। दूसरा आपने पूछा तो हम कहेंगे कि इतना ज्यादा अहंकार 3 साल में कहाँ से आ गया कि हाथ में कोई दम नहीं है? जब उसी हाथ से आपको राजनीतिक चपत लगी थी 10 वर्ष तक केन्द्र सरकार में, आपको तो 3 वर्ष ही हुए हैं। 30 प्रादेशिक चुनावों में उसी दौरान, तब आप हारे और हम जीते थे। तो हम समझते हैं कि अहंकार की भी एक सीमा होनी चाहिए और एक संतुलन होना चाहिए।
एक प्रश्न पर कि प्रधानमंत्री जी ने कैबिनेट बैठक के बाद एक बैठक बुलाई थी, इस पर, श्री सिंघवी ने कहा कि कहाँ अंदर बैठते हैं, कब बैठते हैं, क्या बैठक लेते हैं, उस पर हम क्या टिप्पणी करें। हम तो जमीनी सच, नीतिगत सच या परिवर्तन सच पर टिप्पणी कर सकते हैं। क्या कोई कोई परिवर्तन जमीन पर देखा, हमने कुछ नहीं देखा, ना तमिलनाडु में, ना महाराष्ट्र में और ना मंदसौर में। जहाँ तक कोई नीति, ऐसी घोषणा सुनी आपने, वो ये हैं कि यहाँ फायरिंग ही नहीं हुई, फायरिंग कांग्रेस ने करवाई, राहुल गाँधी जी आंदोलन में भाग लेने जा रहे थे, तो मैं किस पर टिप्पणी करुं। आपका प्रश्न है वो पूछा जाना चाहिए संवेदनशील ऐसी सरकारों से जिनका एक तालमेल है अपनी जनता-जनार्दन से प्रश्नों के साथ, एक संवेदनशील संबंध है। यहाँ इस प्रकार के अपमान से भरे बयान मैं सुन रहा हूं सरकार से कि इस्तीफा तो दूर एक राहत मिल जाए, कोई हल मिल जाए तो बहुत बड़ी बात है। जो आत्म मुग्धता से मदमस्त सरकार होती है सत्ता अहंकार से, जो बहाने बनाती है, जो हर चीज में सस्ती राजनीति देखती है, फोटो ऑपौर्चुनीटि की बात करती है, इंटरनेट बंद करती है, लोगों को जाने से मना करती है, अगर पत्ता हिलता है तो कहती है कांग्रेस ने हवा चलाई है। इस्तीफा वहाँ दिया होता है जहाँ कुछ शर्म होती है, आत्मसम्मान होता है, लेकिन यहाँ ऐसी कोई चीज नहीं है।