डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि ये एक बहुत दुखद प्रसंग इसलिए है कि सरकार के पास कुछ महत्वपूर्ण काम करने का समय, जरुरत या इरादा नहीं है। आज दिनभर से मुझे अच्छंभा हो रहा है, सुबह से सरकार की प्रोक्सी, सरकार के ऐजेंट आपको सबको अनसाईंड़ नोट सर्क्यूलेट कर रहे हैं, हमारे पास भी हैं वो नोटस, जिसमें कि अजीबो-गरीब असत्य, गलत, झूठी समरी बनाई गई है कि आज कोर्ट में क्या हुआ। मैं समझता हूं कि इससे उनका भय, बौखलाहट दिखता है। अटकलें, आरोप लगाए जा रहे हैं। जो कहा जा रहा है आपको वो उच्च न्यायालय के लिखित आदेश के विरुद्ध है। लेकिन आदेश से ना आप दूर भाग सकते हैं ना मैं। मैंने इसकी जिरह की है। इसलिए मैं आपको संक्षेप में इसका संदर्भ समझा दूं और अपने आप निर्णय ले लीजिएगा कि जो आपको बताया जा रहा है जानबूझ कर गलत छापने के लिए, विकृत छापने के लिए ऐजेंटों का इस्तेमाल करके, वो सही है या गलत है? एक गौरवशाली भारत में स्वतंत्र सोच, शब्दों को मीडिया प्रकाशित करें, ये संतुलन इस सरकार के पास नहीं है।
इस सरकार के आने के बाद, 2014 के बाद IT डिपार्टमेंट एक नोटिस देता है 6 वर्ष के पुराने असेस्मेंट को पुन: वापस खोलने के लिए। उसके दो कारण देता है, उसका जवाब जो भी होता है लेकिन आज की बात अगर संक्षेप में कहनी हो तो जब डिपार्टमेंट से चिट्ठी आ जाती है तो हम एक याचिका देते हैं, उच्च न्यायालय में। हमारा प्रमुख बेसिस उस याचिका में है कि डिपार्टमेंट के पास कोई भी Reason to believe नहीं था। Reason to believe एक कानूनी फ्रेज है जो अतिआवश्यक है, किसी नोटिस द्वारा पुराने वर्षों का किसी भी व्यक्ति का असेस्मेंट खोलने के लिए। तो हम याचिका में कहते हैं कि Reason to believe नहीं है डिपार्टमेंट के पास इसलिए कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है कि 5-6 वर्ष पुराना असेस्मेंट खोलें। उच्च न्यायालय ने काफी समय तक उस मामले को सुना और ओपन कोर्ट में कहा कि आप याचक हैं, जो-जो आपको आपत्तियाँ हैं, हर आपत्ति को हम आपको छूट देते हैं कि आप वापस जाकर डिपार्टमेंट के सामने दोहरा सकते हैं और डिपार्टमेंट बाध्य होगा कानून के अनुसार निर्णय लेने का।
उसके बाद उच्च न्यायालय और स्पष्टीकरण देता है कि आप पुन: डिपार्टमेंट के पास जाकर अपनी सभी दलीलों को दोहरा सकते हैं, उसमें ये भी शामिल है कि आप डिपार्टमेंट को ये बता सकते हैं कि क्यों ये नोटिस जब तक Reason to believe नहीं हो, तब तक नहीं दिया जा सकता और क्यों इस केस में Reason to believe नहीं है। जब हमारी हर दलील को खुला रखा गया है, जब हमारी हर आपत्ति को पुन: वापस डिपार्टमेंट के सामने दलील के लिए छोड़ दिया गया। उसके बाद ऑर्ड़र में लिखित रुप से स्पष्ट शब्दों से कहा गया है कि हम ये लिबर्टी लेते हैं। तो हम क्यों बहस करें उच्च न्यायालय के सामने? इसलिए हमने Constitutionally याचिका को withdraw किया है। आपको सिखाया-पढ़ाया जा रहा है बच्चों की तरह, लुके-छीपे टिप्स दिए जा रहे हैं कि उच्च न्यायालय ने कहा कि डिपार्टमेंट जांच करो। 3 घंटे पहले का ऑर्डर निकाल लीजिए। कहाँ लिखा है ये, अगर लिखा है तो हम आपसे माफी मांगेंगे।
क्या कि संतुलित सरकार का ये काम है कि इस प्रकार के बिना हस्ताक्षर के गलत, फरेबी, विकृत नोटिस द्वारा आपको बरगलाएं। कौन से नोट में लिखा है सोनिया गाँधी जी आप पेश हों, राहुल गाँधी जी आप पेश हों या अन्य कोई पेश हो, हमने तो नहीं सुना, मैं खुद वहाँ पर था कोर्ट में।
हमने याचिका दी कि IT डिपार्टमेंट का अधिकार क्षेत्र नहीं है बिना Reason to believe पुराने 6 वर्ष के असेस्मेंट को खोलने का। उच्च न्यायालय ने डिटेल में सुनने के बाद ये होल्ड किया कि ये जो आप हमारे सामने आकर आपत्ति दर्ज कर रहे हैं, ये आप वहाँ जाकर कर सकते हैं। फिर स्पष्ट रुप से 8 लाईनों में लिख कर दिया कि आपको सिर्फ ये स्वतंत्रता नहीं है कि आप वापस जा सकते हैं और हर वो आपत्ति जो यहाँ लिखी है हमारे सामने, वो वहाँ भी रेज कर सकते हैं। including Reason to believe/ कि Reason to believe नहीं होने पर आप नोटिस जारी नहीं कर सकते इस मुद्दे को भी आप वहाँ रेज कर सकते हैं। ये अधिकार क्षेत्र का मुद्दा है। ज्यूडिशरी का मुद्दा है। इस कारण से,इस आधार पर, इस रिकोर्डिंग के बाद, इस लिबर्टी के बाद, कानून में इसे लिबर्टी कहते हैं, स्वतंत्रता के बाद जो लिखा है उसमें हमने याचिका withdraw की और मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ ये देखकर कि 5 घंटे तक सरकार के पास कोई काम नहीं था, सब काम बंद हो गए। सिर्फ एक काम चल रहा है कि किस प्रकार से आप सब लोगों को बरगलाया जाए, जिसका सच से कोई सरोकार नहीं है।
मैं ये भी स्पष्ट करना चाहता हूं कि कांग्रेस बहुत गौरव महसूस करती है कि नेशनल हैराल्ड जैसे अखबार के साथ कांग्रेस का नाम जुड़ा है और कांग्रेस के साथ नेशनल हैराल्ड का नाम जुड़ा है। ये स्वतंत्रता से पहले का अखबार है। जिस वक्त हमारे सोचने की, बोलने की, अभिव्यक्ति करने की, मानवाधिकार का हनन और कुचलना ब्रिटिश सरकार कर रही थी, आज बहुत हद तक आज उस जैसा वातावरण ही है। उस वक्त भी तीव्रता से, जोश और हौसले से नेशनल हैराल्ड ने अपनी आवाज उठाई थी और उसी तरह से कांग्रेस पार्टी आज भी अपनी आवाज उठाती रहेगी।
हमने पहले भी इस पोडियम से नेशनल हैराल्ड के विषय में तथ्य पहले भी दिए हैं। लेकिन संक्षेप में मैं आपको याद दिला दूं कि क्या मिथ्या प्रचार हो रहा है, क्या ये संभव है कि कोई भी संपत्ति अचल या चल कोई व्यक्ति हड़प सकते हैं। ये सब उस कंपनी के साथ हैं, उस कंपनी के स्वायत्तव में है जो एक सेक्शन 25 कंपनी है। 25 कंपनी की परिभाषा ही ये है कि ‘नोट फॉर प्रोफिट कंपनी‘ होती है। इसका मतलब है कि जो लाभ के लिए नहीं बनाई गई है। किसी प्रकार से अपने लाभ का वितरण नहीं कर सकती। डॉयरेक्टर और शेयरहोल्डर को उसका फायदा नहीं हो सकता। ये वो कंपनी है। क्या लोन लिया जा सकता है, दिया जा सकता है? हर राजनीतिक पार्टी में ये है, एक्ट के सेक्शन 13 में बड़ी स्पष्ट अनुमति है। तो क्या ये प्रोपर्टी को हड़पने का प्रयत्न हुआ। एक एंटिटी से दूसरे एंटिटी वो भी सेक्शन 25 में ‘नोट फॉर प्रोफिट कंपनी‘ है, जो। सेक्शन 25 Not for Profit, उसको कहते हैं कि कंपनी हड़प ली, ट्राँसफर कर ली। तो मैं कहूंगा कि इसमें उल्टा, बौखलाहट, भय वो इस सरकार का झलकता है और वो समझते हैं कि इससे हमें भयभीत करेंगे तो उनको जाकर अपना इतिहास पढ़ना चाहिए।