डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि पहले दो विषय जो संबंध रखते हैं हमारे प्रधानमंत्री जी की विशेष पहचान से और वो विशेष पहचान है कि अपने बारे में किसी प्रकार की न्यूनतम से न्यूनतम निंदा भी बर्दाश्त नहीं करना। सकारात्मक हो या सकारात्मक ना हो, निंदा नही होनी चाहिए। उसके साथ-साथ स्वयं प्रेम, स्वयं विचार और स्वयं आसक्ति,
थोड़ी भी असहमति अगर है तो मैं समझता हूं कि बिल्कुल बर्दाश्त नहीं है। इसके हाल में कई उदाहरण आए हैं सामने, मैं सिर्फ दो का जिक्र कर रहा हूं-
RTI में एक कमीश्नर एक कानून के अंतर्गत एक ऑर्डर पास करता है, आम तौर पर ऐसे हजारों ऑर्डर पास होते हैं। आम नागरिक के पक्ष में या उसके विरुद्ध। ऑर्डर क्या है- दिल्ली विश्वविद्यालय शैक्षिक विषय में जो दस्तावेज हैं, जो क्वालिफिकेशन हैं, जो कागजात हैं, उनको आप पारदर्शी रुप से सामने रख दीजिए। रोचक विषय ये है कि सेक्शन 8 RTI एक्ट के अंदर ऐसी चीज का खुलासा करनाकिसी रुप से परोक्ष या सीधे रुप से प्रतिबंधित नहीं है। आप जानते हैं कि सेक्शन 8 में 7 कारण दे रखे हैं।
अब इसके उपर बहस और जिरह के बाद एक स्ट्रैटिजिक पदाधिकारी एक ऑर्डर पास करता है, उसमें कानूनी जिक्र है, उसमें भारत के कानून का जिक्र है, उसमें RTI एक्ट कानून का जिक्र है, उस निर्णय के ऊपर आप अपील कर सकते हैं, प्रावधान हैं, दूसरी अपील कर सकते हैं, फिर हाईकोर्ट जा सकते हैं, उच्चत्तम न्यायालय जा सकते हैं, लेकिन सिर्फ इसलिए कि ये विषय मोदी जी से संबंध रखता है। एकऐसी चीज जो आम आदमी के विषय में हजारों बार प्रकाशित होती है उसके लिए दिनों के अंदर, घंटो के अंदर जो स्ट्रैटिजिक पदाधिकारी है, जिसका अधिकार क्षेत्र है, उससे वो पूरा अधिकार क्षेत्र ले लिया जाता है और किसी और को दे दिया जाता है।
इसके बड़े व्यापाक आयाम हैं, लेकिन ये कहा कि सोच है। इसके साथ-साथ देखिए कि खादी के विषय में, जो इतनी पुरानी संस्था है, खादी की सोच, खादी का प्रचार, खादी का सीधा संबंध खादी के बारे में सबकुछ चरखे से लेकर अंतत: तक विश्वभर में एक महान आत्मा जो जुड़ी हैं, महात्मा गाँधी जी, दशकों से आप उनका चेहरा प्रकाशित कर रहे हैं। चलिए आप उनका प्रकाशित ना करें, कुछ वर्षोंके लिए कभी चरखा कर दें, कभी आम आदमी को कर दें, लेकिन ऐसा नहीं होगा, जो आज तक नहीं हुआ, वो हुआ।
2017 में गाँधी जी की अदला-बदली कर दी है मोदी जी ने। गाँधी जी की जगह मोदी जी आ गए हैं। मोदी जी अपने आपको पहले तो पटेल भी समझते थे, अब वो अपने आपको गाँधी जी भी समझते हैं। ये अलग बात है कि भारत की जीवनी में एक व्यक्ति के बारे में काफी अपमानजनक बातें कहते रहते हैं, इसलिए उन्होंने अभी तक उनका रोल नहीं अपनाया, नेहरू जी का। लेकिन एक तरफ तो आर.एस.एस ने विचारधारा के आधारपर हत्या कर दी गाँधी जी की और दूसरी तरफ आज स्वयं प्रेम, स्वयं आसक्ति और स्वयं प्रचार के आधार पर मोदी जी ने अदला-बदली कर दी, उनको हटा दी, खुद को छाप दिया, हर Calendar, हर डायरी पर।ये मिथ्या प्रचार किया जा रहा है परोक्ष रुप से सरकार के द्वारा। सीधा नहीं बोल रही है सरकार, कोई जवाब नहीं आया है। आप लोगों के जरिए परोक्ष रुप से कहा जा रहा है, ये पहले भी हुआ है कई बार कि उन डायरियों में, Calendar में गाँधी जी नहीं है, कुछ वर्षों में, बात सही है। लेकिन ये मूल बात नहीं है, ये मिथ्या प्रचार है, बरगलाने की प्रक्रिया है, उन सालों में कभी चरखा था, कभीहल था, कभी आम आदमी था, लेकिन उस वक्त के प्रधानमंत्री जी या राष्ट्रपति जी नहीं थे उसमें। ये प्रादुर्भाव मोदी जी का पहली बार हुआ है, इसका जवाब कोई नहीं दे रहा है।
इसके अलावा इन्फोर्मेशन कमीश्नर को हटाया गया, ये कोई नई बात नहीं है। हमने पहले आपको कई बार अवगत करवाया है। मैं आपको याद दिलाता हूं पुरानी बातें- केंद्र के गृह मंत्रालय के सचिव, सबसे बड़ा पद होता है, एल.सी.गोयल का क्या हश्र हुआ। पटेल जी का इतना नाम लेते हैं मोदी जी, लेकिन जो सरदार पटेल जी ने कहा था-
आज अगर आप सरदार पटेल जी के सुझाव का पालन करेंगे तो आपका हश्र ये होगा, वो नहीं जो पटेल साहब जी ने कहा था।
हमने आपको जून 2015 का आंकड़ा दिया था। एक वर्ष में 550 नई स्थानांतरण और पोस्टिंग की थी, मोदी सरकार ने 2014-15 के बीच में और सबसे अधिकत्म थी ज्वाईंट सैक्रेट्री और एडिशनल सैक्रेट्री लेवल पर और नीचे। कितने ही स्थानांतरण के उदाहरण हैं। एल.सी. गोयल एक हैं, उसके बाद महर्षि जी थे, फाईनेंस मिनिस्ट्री में कई लोग हटे हैं, राजन कटोच और करनैल सिंह जी का ईडी में। ये सब उदाहरण हैं जो आपके समक्ष रहे हैं, कई अरसे से।
मुद्दा ना खादी संस्था का है, गाँधी जी तो बहुत बड़ी चीज हैं, उनको कौन मिटा सकता है हमारे हृदय से। ना मुद्दा है इन्फोर्मेशन कमीश्नर के अधिकारी क्षेत्र को छीनने का। मूल मुद्दा है विश्व के सबसे व्यापक गणतंत्र में ये बहुत ही गलत आयाम स्थापित किया जा रहा है। गलत धारणाएं, गलत सोच पैदा की जा रही है। एक है – जिद्द की राजनीति, मैं किसी की सुनूंगा नहीं। दूसरा है –
असहमति पर असहिष्णुता। तीसरा है- प्रतिशोध की भावना, Vendetta politics. चौथा है – एक भय का वातावरण बनाना। पाँचवा है – स्वयं प्रेम, स्वयं प्रचार और स्वयं आसक्ति। छठा है – अहंकार कि हम से गलती तो हो ही नहीं सकती, कभी गलती ना करने वाला अहंकार। तो इन सबका आप अगर एक कॉकटेल बना दें तो ये बहुत ही खतरनाक चीज है। ये खतरनाक सिर्फ उनके लिए नहीं है जो गलत धारणाएं रखते हैं, ये खतरनाक देश के लिए हैं,
गणतंत्र के लिए हैं, लोकतंत्र के लिए हैं और वही मूल भावना है हमारी ये मुद्दा उठाने की।
दूसरा विषय मध्यप्रदेश के संबंध में है। ये प्रादेशिक स्तर पर आप जानते हैं कि आज कई दिन निकल गए हैं, लेकिन इस पर कोई एक्शन नहीं हुआ, इसलिए हम आपके सामने उठा रहे हैं। एक तरफ एक लोकप्रिय, ईमानदार भारतीय पुलिस सेवा का अफसर गौरव तिवारी, मैं इस बात पर आश्चर्य में हूं कि 500 करोड़ रुपयों के हवाला कांड के विषय में, मध्यप्रदेश में, मैं ना खाऊंगा ना खाने दूंगा, आपदेखिए इसे तुलनात्मक रुप से, दोनों चीजों को। इसमें कौन-कौन लिप्त हैं, एक तरफ हैं खनन व्यापारी सतीश, मनीष सरोगी। दूसरी तरफ उनका सीधा संबंध है राज्य के मंत्री मंडल के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम राज्य मंत्री श्री संजय पाठक से। उसके बाद कहा जाता है कि हर्ष सिंह, श्री नंद कुमार सिंह चौहान जो वहाँ के प्रदेश अध्यक्ष हैं, उनके पुत्र का सीधा संबंध हैं, व्यवसायिक संबंध हैं, पारिवारिकसंबंध है।
आज तक इनको सस्पेंड करना या इनका इस्तीफा देना या इऩको हटाना, ये तीनों प्रक्रियाएं ना मंत्रिमंडल स्तर के पर हुई ना शिवराज सिंह चौहान के स्तर पर हुई हैं, ना स्वयं हुई उन व्यक्तियों के द्वारा। सिर्फ एक चीज हुई कि गौरव तिवारी जी का स्थानातंरण हुआ तुरंत। ये आपको भ्रष्टाचार के जो इतने लेक्चर मिलते हैं, नोटबंदी क्या करेगा, भ्रष्टाचार को जादुई मदद से हटाएगाऔर यहाँ उसके विपरीत एक तरफ भ्रष्टाचार का पनपना, उसको सुरक्षा देना और दूसरी तरफ प्रतिशोध की भावना से जो उसको एक्सपोज करते हैं, उनको दंडित करना। हमने कई प्रश्न पूछे हैं, प्रादेशिक स्तर पर और यहाँ आपके जरिए पूछ रहे हैं, देश के लिए।
पहला- क्या ये 500 करोड़ रुपया जो मिला है हवाला से संबंधित मध्यप्रदेश में, क्या इसका कोई संबंध नहीं है संजय पाठक जी से, हमें सिर्फ जवाब चाहिए, कोई जवाब तो मिलना चाहिए ना। चुप्पी है प्रादेशिक स्तर पर और चुप्पी है माननीय प्रधानमंत्री जी के द्वारा।
दूसरा – कई हजारों खातों में मिला है, जो खाते खुलवाए गए हैं, क्या उनकी सूची बनी है कि वो जो खातेदार हैं, 100-150 लोग, उनका क्या अस्तित्व है, क्या पता है, क्या पोस्ट है, कितना रुपया प्रति खातेदार रखा गया है और क्या उस व्यक्ति की क्षमता है, इससे आंशिक रुप से परखने की?
तीसरा – जिन लोगों के नाम हमने लिए हैं और भी कई लोग संबंधित हैं, प्रशासनिक रुप से और मंत्रिमंडल के, इनके विरुद्ध प्रस्तावित कोई एक्शन है क्या?
चौथा – ये हास्यास्पद है, ये कहा गया है कि सरकार के स्तर पर और शायद शिवराज चौहान जी ने कहा है कि इसमें पुलिस कुछ नहीं कर सकती, ये जाना चाहिए ईडी को। ईडी अपनी जगह है, सीबीआई जिसको आपने अंत में बुलाया, बड़ी मुश्किल से, वो अपनी जगह है, पुलिस अपनी जगह है। इसमें तो सीधी धाराएं बनती हैं, 420 की, 468, 467, Prevention of Corruption एक्ट की। तो उसमें क्यों पुलिस नहीं आती? सीबीआई नहींआती? उन्होंने कहा कि ईडी में जाना चाहिए, ईडी में जाए जरुर लेकिन बाकि का क्या हुआ, जो आपने ना हटाया, ना इस्तीफा लिया, ना पुलिस कार्यवाही की, ना सीबीआई लाए और ईडी के नाम पर पूरे देश को बरगला रहे हैं। विशेष रुप से मैं कहूंगा राज्य मंत्री महोदय और प्रदेश अध्यक्ष के पुत्र हर्ष सिंह जी का रिश्ता और संजय पाठक जी जो व्यक्ति हैं वो निश्चित रुप से, इनके विषय में चुप्पी क्यों साधे हुए हैं,