डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते कहा कि जैसे – जैसे आंकड़े आ रहे हैं, जैसे-जैसे तथ्य प्रकाशित हो रहे हैं उससे साफ जाहिर होता है कि सच्चाई आंकड़ों और तथ्यों में एक तरफ और मोदी जी के भाषणों में – बीजेपी के दावों में जमीन-आसमान का फर्क है, बहुत भारी फर्क है। एक उदाहरण लें- रोजगार का, अभी जिसे quarterly employment survey कहते हैं, तिमाही साईकिल में रोजगार के आंकड़े प्रकाशित होते हैं, उसमें 2-3 चौंकाने वाले आंकड़े आए हैं और एक प्रकार से संख्यात्मक आंकड़े हैं, जो भविष्य के भी संकेतक हैं।
8 मुख्य क्षेत्रों – Manufacturing, Construction, ट्रेड, ट्राँसपोर्ट, एजूकेशन, हेल्थ, हाउसिंग, रेस्तरां एम्पलाईमेंट इत्यादि। यदि इन सबको औसतन लें तो जो पिछले quarter में 77 हजार रोजगारों की संख्या में वृद्धि हुई थी, वो इस बार तुलना में आधी हुई है, लगभग 33 हजार। कुछ क्षेत्रों में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। उसमें मुख्य रुप से हैं जो Construction का क्षेत्र है, ट्रेड, हाउसिंग, रेस्तरां और एजूकेशन। उसमें जो वृद्धि होनी चाहिए थी – रेट ऑफ ग्रोथ तो दूर absolute terms में आंकड़ें नीचे गिरे हैं। उद्योग में बढ़े हैं, लेकिन औसतन सबमें गिरे हैं, सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है वो हाउसिंग और रेस्तरां के क्षेत्रों में। ये सरकारी आंकड़े हैं। IT के क्षेत्र में अच्छे परिणाम दिखे हैं परंतु महिलाओं के रोजगार में फिर गिरावट है। मैं अक्टूबर से दिसंबर तक के quarter की बात कर रहा हूं जहाँ महिलाओं को उपलब्ध रोजगार की संख्या में दुबारा absolute गिरावट है 25000 वर्करस की। अगर आप सभी रोजगार को मिला लें तो जो पिछला quarter था, उसमें लगभग 1.70 लाख रोजगारों की वृद्धि हुई थी, जो इस बार गिरकर सिर्फ 69000 रह गई।
तो ये सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि ये जो आंकड़े हैं, ये औसतन हैं। ये इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि नोटबंदी का जो दुष्प्रभाव हुआ है, वो धीरे-धीरे करके सामने आएगा। सरकार के कई मुद्दों के आधार पर जैसे Economic mismanagement, नोटबंदी के आधार पर ही नहीं बल्कि व्यापक रुप से देखा जाए। अब हमें आंशिक रुप से दुष्प्रभाव दिखने शुरु हो गए हैं।
एक और रिपोर्ट आंकड़ों की प्रकाशित हुई है सरकार के द्वारा जैसे सरकार आंकड़े जारी करती है हर 2,3,4 महिनों में, तो जो Q-3 था- Current Account deficit जिसे CAD कहा जाता है, जो महत्वपूर्ण मानक होता है, वो बढ़कर लगभग 8 बिलियन डॉलर हो गया है। पिछले quarter के हिसाब से बढ़कर 7.1 बिलियन से अब 7.9 बिलियन डॉलर हो गया है। जो उससे पहले और भी कम था। इसके साथ-साथ FDI जिसको Net FDI कहते हैं, उसके आंकड़े भी प्रकाशित हुए हैं। ये सब 3rd quarter of 2016-17 के हैं, यानि अक्टूबर से दिसंबर के आंकड़े। Net FDI हुआ है लगभग 9.8 बिलियन यूएस डॉलर। जो पहले quarter से कम है, गिरा है। तो ये एक quarter के लिए एक कहानी बता रहे हैं कि जो दावे किए जाते हैं, जो पीठ थपथपाई जाती है, जो क्लेम किए जाते हैं, वो सत्य नहीं हैं। भगवान ना करें ये बढ़कर चिंतनिय हो जाएं।
एक प्रश्न पर कि OBC के अधिकार के संबंध में नई व्यवस्था किए जाने पर कांग्रेस की क्या राय है, श्री सिंघवी ने कहा कि अभी कोई समस्या है या नहीं ये बाद की बात है। अखबार पढ़ने से कुछ पता नहीं चलता, जब तक औपचारिक प्रस्ताव नहीं आता है। दो चीजें देखनी पड़ती है- बांउडरी क्या है, स्वरुप क्या है, जिसको टर्म ऑफ रेफरेंस कह लीजिए – उसमें इसकी क्या सिर्फ वींडो ड्रेसिंग है? क्योंकि आयोग तो पहले भी रहे हैं। संवैधानिक आयोग की बात कही जा रही है, उसको आप क्या अधिकार क्षेत्र दे रहे हैं, ये देखना पड़ेगा। दूसरा उसको दंड़ करने के, कार्यांवित करने की भी पावर दी जाएगी, सिर्फ सुझाव का अधिकार नहीं होगा। ये मुख्य बिंदु है, जो हमारे सामने आएंगे तब हम टिप्पणी करेंगे। अगर ठोस सुझाव नहीं है तो हम समझेंगे कि ये दिखावट है क्योंकि अलग-अलग मुद्दों पर ऐसे आयोग बनते हैं। सिर्फ एक नया नाम देने से काम नहीं चलेगा।
एक अन्य प्रश्न पर कि सुब्रहमण्यम स्वामी जी ने जो बिल पेश किया है उसमें एक प्रस्ताव दिया है कि गौ-हत्या करने पर मृत्यु दंड का प्रावधान रखा जाए, श्री सिंघवी ने कहा कि कोई भी सदस्य कोई भी प्रस्ताव दे सकता है। ये हरियाणा से भी प्रस्ताव आया था। शायद आपने देखा नहीं। सब चीजों में एक संतुलन देखा जाता है। प्रस्ताव में सर्वसम्मति होना, बिल पारित होना भारत के सबसे बड़े संसद के स्तर पर, दो अलग-अलग चीजें होती है। प्रस्ताव कोई भी दे सकता है, लेकिन उसके उपर कुछ भी अभी कहना सही नहीं है।
एक अन्य प्रश्न पर कि शिवसेना सांसद ने एयरइंडिया स्टॉफ से जो दुर्वव्यवहार किया है उस पर आप क्या कहेंगे, श्री सिंघवी ने कहा कि इसमें कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं होगा, किसी भी वर्ग में जो ऐसे किसी चीज का परोक्ष या सीधे रुप से समर्थन करेगा। इसमें दो-3 चीजें जरुरी है और हमें आशा और विश्वास है कि तुरंत होंगी।
पहला- कानून का गति के साथ काम करना, जो पीड़ित हैं, उनका हक है कि कानून उसका साथ दे। उस कानून का परिणाम तुरंत हों और एक अल्प समय में न्याय हो। उसको आप FIR कह लीजिए या चार्जशीट कह लीजिए।
दूसरा – शिवसेना ने कहा कि वो इस विषय में आंतरिक रुप से जांच कर रहे हैं और जल्द से जल्द पार्टी के स्तर पर जो उन्हें एक्शन लेना है वो इसके बारे में निर्णय करें।
तीसरा- अंदर से एक व्यक्ति में एक चेतना जागनी चाहिए, उसको आप पश्चताप कह लीजिए या माफी की चेष्टा कह लीजिए। क्योंकि हम खुद को सांसद कहते हैं उसके लिए अति आवश्यक है कि हम शर्म से अपना माथा नहीं झुकाएं। जहाँ तक एयरलाइंस का सवाल है – ये उनके अधिकार क्षेत्र की बात है और उनके और एमपी के बीच की बात है। जाहिर है कि अगर मैं किसी भी एयरलाइंस के स्टाफ से ऐसा व्यवहार करुंगा और एयरलाइंस कोई ऐसी नीति बनाती है, तो मुश्किल होगा उस नीति का विरोध करना।