Press Briefing in AICC- Modi’s ‘Thagbandhan’ with the ‘Janta’s Janbandhan (Hindi) – 21-Jan-2019

ALL INDIA CONGRESS COMMITTEE

24, AKBAR ROAD, NEW DELHI

COMMUNICATION DEPARTMENT

डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोंधित करत हुए कहा कि इस बार जो लड़ाई है, वो है – ‘मोदी बनाम भारत’ (Modi vs India ), इस बार जो लड़ाई है, वो होगी – मोदी जी के ठगबंधन और भारत की जनता के जनबंधन के बीच। मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि कई सौ वर्ष पहले फ्रांस में एक शंहशाह हुआ करते थे – किंग लुई द 15, तो जैसा अभी एक वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्री ने कहा है कि हमारे बाद, मोदी जी के बाद अराजकता होगी, तो वो उस शहंशाह की मेमसाहब भी बोला करती थी ‘एपरेस नाउस ले डिल्यूज’ (Après nous le deluge) जो फ्रेंच में कहावत है जिसका हिंदी में अर्थ है कि हमारे बाद बाढ़ होगी, After us the Flood. आप एतिहासिक पन्नों में जाकर मालूम कर सकते हैं कि उनका क्या हुआ, उसके बाद  वे रुस के विरुद्ध लड़ाई हार गए, फिर क्रांति हुई, इत्यादि। लेकिन जब अहंकार की चरम सीमा होती है, तब ऐसे वक्तव्य आते हैं, After me Anarchy, क्योंकि ये ऐसी सरकार है, ये ऐसा शासन है – जिसका सिद्धांत है  I, Me, Myself . ऐसे लोग ही कहते हैं – मेरे बाद बाढ़, मेरे बाद दुनिया खत्म, मेरे बाद अराजकता, इत्यादि।

आज ये जो अहंकार की चरम सीमा है, डिक्टेटरशिप की, मनमानी करने की, वो बौखलाहट और घबराहट के साथ सब तरफ परिलक्षित हो रही है और यह सरकार अपनी ही कहानी में फंस गई है, जो सिर्फ I, Me, Myself वाली कहानी है। अभी हमें गठबंधन के बारे में बहुत सीख दी जा रही है, कभी  माननीय प्रधानमंत्री जी गठबंधन के बारे में अपशब्दों का प्रयोग करते हैं, कभी उनके मंत्रिमंडल के लोग गठबंधन का मजाक उड़ाते हैं, व्यंग करते हैं। अब इनकी राजनीतिक स्मृति इतनी कमजोर हो और सिलेक्टिव हो तो हम क्या करें। अभी कुछ वर्ष भी नहीं हुए जब इन्हीं प्रधानमंत्री ने जम्मू और कश्मीर में दुनिया का सबसे अनैतिक गठबंधन किया था, नोर्थ पोल और साउथ पोल का गठबंधन करने का प्रयत्न किया था। दूसरा, दुनिया के इस सबसे अनैतिक गठबंधन को मझधारमें छोड़ दिया और भाग गए। उस गठबंधन के रहते दो सरकारें चलतीं थी – एक जम्मू में, एक कश्मीर में। उससे पहले इन्होंने कई गठबंधन किए, लेफ्ट तक के साथ गठबंधन किया। लोग राजनीतिक स्मृति जरुर भूल जाते हैं, लेकिन याद दिलाने का भी हमारा हक होता है। इनके खुद के रिवर्ड (revered), आदर्श के साथ जिनका नाम लिया जाता है, आदरणीय वाजपेयी जी, उन्होंने गठबंधन की सरकार चलाई। खुद मोदी जी 40-42 दलों से अलायंस के साथ सरकार चलाते थे। ये अलग बात है कि एक तरफ आप अनैतिक गठबंधन करते हैं, दूसरी तरफ जो गठबंधन करते हैं,उसको चला नहीं पाते। आज लगभग 14-15 लोग उस गठबंधन को छोड़ कर चले गए हैं, गठबंधन छोड़ने वालों की लाइन लग गई है, आंध्र प्रदेश से, असम से, अरुणाचल से, पश्चिम बंगाल से,इत्यादि-इत्यादि। तो ये जो आपकी बहुत अल्प स्मृति है, चाहे प्रधानमंत्री की हो, चाहे वित्त मंत्री की हो, चाहे शिक्षा मंत्री की हो, इसलिए उनको ये याद दिलाना आवश्यक है क्योंकि अगर लेगेसी ऑफ केओस (Legacy of Chaos) गठबंधन की सिर्फ एक ही परिभाषा होती है तो मैं समझता हूं कि उसकी पूर्ति तो आपने 1977 -79 में की थी, उसकी पूर्ति आपने अभी 2014 से 2017-18 तक जम्मू-कश्मीर में की थी, उसकी पूर्ति फिर तो वाजपेयी जी ने की होगी और उसकी पूर्ति आप कर रहे हैं 42 पार्टियों के साथ। सच्चाई ये है कि मोदी सरकार का हर अंग घबरा गया है, जो एक जबरदस्त आक्रोश पहले जनता का और जनता से परिवर्तित होते-होते जो इस प्रतिबिम्ब में, इस इंद्रधनुष में अभी हाल ही में कोलकाता में देखा गया। उस घबराहट और बौखलाहट का ही ये परिणाम है कि इस प्रकार के बेतुके, झूठे, बेईमानीपूर्ण, असत्य वक्तव्य आ रहे हैं। इसके साथ-साथ जिस प्रकार से ठगबंधन करके आपने देश के 130 करोड़ भारतियों को ठगा है, उसको भी इस प्रकार के व्यंग्य करके छुपाने का प्रयत्न किया जा रहा है। आपने फॉर्म सेक्टर को ठगा है, अल्प संख्यक घबराए हुए हैं, असुरक्षित हैं, एक के बाद एक बड़े घोटालों के नाम हैं, राफेल से लेकर, आर्थिक एनारकी है, राजनीतिक वैक्यूम वाली एनारकी, जो शिक्षा मंत्री ने कही वो नहीं, वास्तव में आर्थिक एनारकी है और भय का वातावरण जो आपने ऐजेंसियों का दुरुपयोग करके क्रीयेट किया है, तो इन सबको छुपाने के लिए आप व्यंग्य ना करें और वो बात ना करें, जो आप बहुत गलत रुप में और अव्यवस्थित रुप में करते आए हैं।

दूसरा एक बिंदु है, वो संबंध रखता है, हमारे मेहुल भाई से। अब ज्ञात होता है कि मेहुल भाई शायद ही भारत कभी आएंगे, आ ही नहीं सकते क्योंकि अब मेहुल भाई को किसी और देश की नागरिकता भी मिल गई है और उनकी भारत की नागरिकता चली भी गई है। कितनी बार छाती ठोंक कर कहा गया कि हम इनको इतने दिनों में लाएंगे, किसी को छोड़ेंगे नहीं, उसका एक और परिणाम, एक और सूचना अखबारों से मिली है। सिर्फ पिछले वर्ष बैंक फ्रॉड में 72 प्रतिशत बढोतरी हुई है। ये क्या सरकार है – ‘जुमले वाली या जुलमों वाली’? ये सरकार आपको बार-बार बोलती है कि एनपीए में ये कर देंगे, वो कर देंगे। इनके सामने मैं सिर्फ एक वर्ष का आंकड़ा देता हूं, पहले भी मैंने इस मंच से दिया है, 72 प्रतिशत की बढ़ोतरी और साथ-साथ ऐसे उदाहरण का। हमारा कुल ऋण लिया जाए तो लगभग 50 प्रतिशत बढ़कर, 54 लाख करोड़ रुपए से 82 लाख करोड़ रुपए हो गया है। दूसरी तरफ आप वायदे करते हैं कि इतने लाख रुपए लाकर हमारे अकाउंट में डालेंगे।

तीसरा और अंतिम बिंदु, आप जानते हैं कि जहाँ-जहाँ कानून द्वारा नियुक्ति का एक ढांचा बनाया गया है, वहाँ-वहाँ आपको उसको बॉयपास करने के, झुठलाने के, सरकमवेंट (Circumvent) करने के कोई ना कोई और तरीके निकाले जा रहे हैं। इस प्रकार का एक और गंभीर उदाहरण जो अभी सामने आया है, वो है – इनफोर्मेशन कमीशन में नियुक्ति के विषय में। अब इसमें क्या है कि नियुक्ति का एक ढाँचा है, कहीं पर नियुक्ति करने के लिए प्रधानमंत्री, एक मंत्री महोदय और एक चीफ जस्टिस बैठ सकते हैं। किसी में है मंत्री महोद्य, प्रधानमंत्री और कोई और पर्सन। अलग-अलग ढांचे हैं। तो वहाँ भी गलत चुनाव होते हैं, गलत तौर-तरीके से होते हैं, जैसा हमनें अभी सीबीआई और सीवीसी के विषय में देखा।

लेकिन मोदी सरकार ने इसका एक और अलग तरीका निकाला है, इस प्रकार के गैर कानूनी काम करने का अलग और बहुत ज्यादा तरकीब भरा तरीका है, उसको बॉयपास और विकृत करने का। वो ये है कि उस नियुक्त करने वाली चयन समिति के सामने जो नाम आएं, वो नाम पहले से ही सूझ-बूझ कर भेजे जाएं, तो मैं उन्हीं में से सिलेक्ट कर पाऊंगा जो नाम आए और कौन से नाम आएं, कौन से भेजे जाएं, उनकी दिशा और गति पहले ही पूर्व निर्धारित हो जाए। अब आप जानते है कि सरकार के अलग-अलग यंत्र, तंत्र और विभाग सर्च के द्वारा नाम एकत्र करते हैं। अभी प्रकाशित हुआ है कि जब इनफोर्मेशन कमिशनर का चयन हो, चीफ इनफोर्मेशन कमिशनर का चयन हो, तो जो सरकारी विभाग में औऱ ये सरकारी विभाग सिर्फ प्रधानमंत्री के आदेश पर काम कर सकते हैं, दो कैटेगरी बनाई, बड़ी रोचक, एक तो उन लोगों की जो पूरी तरह से जोन ऑफ कंसिडरेशन में थे, जो खुद इनफोर्मेशन कमीशन मे थे, लेकिन उनका नाम सर्च में डाला, यानि जो पूल है, जिसमें से आप नियुक्त करेंगे, उसमें उनका नाम ही नहीं डाला। वो नाम प्रकाशित हो गए हैं और दूसरा कुछ ऐसे लोगों का नाम डाला जिन्होंने अप्लाई भी नहीं किया था। तो दोनों तरफ से एक प्रकार से पूर्व निर्धारित रुप से जो पूल नाम के आएंगे,उनको गेम करने का, उनको विकृत करने का, उनको स्क्यू (Skew) करने का प्रयत्न किया गया है और ये सरकार के वर्गों ने और विभागों ने किया है।  ये सिर्फ सरकार की मदद यानि माननीय मोदी जी के आदेश के अधीन हो सकती है। तो ये तौर तरीके हैं कि चयन तो गलत करो ही, लेकिन चयन से पहले ही अपने आप विकृत रुप से नाम भेजो, जिससे चयन का पूल विकृत हो जाए।

एक प्रश्न पर कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने फेसबुक पोस्ट में कहा है कि 2019 के लिए एजेंडा मोदी बनाम अराजकता होगा और दूसरा कांग्रेस के लिए उन्होंने कहा है कि जिस तरीके सेकांग्रेस अध्यक्ष की गैर मौजदूगी में कोलकाता की रैली हुई वो एक गैर राहुल गांधी रैली बन गई और कांग्रेस केवल पिछली सीट पर बैठकर सपना देख सकती है के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि मैं समझता हूँ कि मैंने आपके सब प्रश्नों, उनकी टिप्पणियों का जवाब दे दिया है। अराजकता का तो मैंने बड़ा स्पष्ट उत्तर दिया है और जब कोई व्यक्ति विदेश में बैठकर अस्पताल से ब्लॉग लिखता है कि 23 पार्टियाँ वहाँ बैठी हैं, 26 लोग बैठे हैं। उनके दृश्य आपने देखे हैं। उनमें वरिष्ठ नेता है। leader of the opposition हैं।

चार मुख्य मंत्री, एक पूर्व प्रधानमंत्री वहाँ उपस्थित थे और उसके बाद वो लिखते हैं कि श्री राहुल गांधी जी नहीं थे, उनकी चिट्ठी पढ़ी गई, श्रीमती सोनिया गांधी नहीं थी, उनकी चिट्ठी पढ़ी गई। तो ये बताईए मुझे, ये बौखलाहट और घबराहट का सबसे बड़ा द्योतक है या नहीं? इसका उत्तर सिर्फ हाँ हो सकता है।

आज आपके अनगिनत लोग चले गए हैं, जाने वालों की लाइन बढ़ रही है और जो बचे हैं उनका न देश में प्रभाव है, न उनकी संख्या हैं। आप ऐसे ब्लॉग लिख रहे हैं। मैं समझता हूँ इसका एक ही उत्तर है, जो Ostrich होता है और जो Sand होता है। तो जब Ostrich खुद को डर से, बौखलाहट सेSand में माथा डाल देता है, क्यों डालता है वो? कि अरे मैं तो जानता हूँ कि अब आने वाला है बहुत बड़ा संकट मेरे ऊपर। अपने माथे को अंदर डालकर वो संकट अपने आप गायब हो जाएगा। तो हाँ अगर आप Ostrich, Sand होना चाहते हैं तो होईए, हम क्या कर सकते हैं?

एक अन्य प्रश्न पर कि कोलकाता की रैली में पीयूष गोयल जी ने एक सवाल पूछा है कि अमित शाह जी कल मालदा मे रैली करने वाले थेलेकिन उन्हें कहा गया कि हैलीपैड ठीक हो रहा है इसलिए इजाजत नहीं दी गई इस पर डॉ. सिंघवी ने कहा कि मैं इस पर जवाब देने वाला कोई eligible आदमी नहीं हूँ, ये आपको पहले प्रश्न पूछना चाहिए डिस्ट्रिक्ट अथॉरिटी मालदा से, दूसरा प्रश्न पूछना चाहिए प्रदेश के एडमिनिस्ट्रेशन से, लेकिन मैं आपको ये जरुर बता दूँ कि इस वर्ष यानि 2018 में हमने वो आंकड़ा उच्चतम न्यायालय में दिया था, मुझे याद नहीं आ रहा है, 1500 या 1700 बड़ी मीटिंग्स की अनुमति पश्चिम बंगाल सरकार ने भाजपा को दी है। 1700 या 1500 मेरे पास सही आंकड़ा नहीं है, सुप्रीम कोर्ट में, एफिडेविट में हलफनामें में लिखा है।

अब अगर एक अमुक मीटिंग में मैं ये जानता हूँ कि  तथ्य क्या है? आप और एप्लाई करिए डीटेल्स दीजिए तो आपको निश्चित रूप से अनुमति मिलेगी। इसका क्या संबंध है, आज जिस विषय को हम उससे डिस्कस कर रहे हैं।

एक अन्य प्रश्न पर कि आज शाम को ईवीएम को लेकर लंदन में होने वाले डिमोंस्ट्रेशन में सभी पार्टियों को आमंत्रित किया गया हैक्या कांग्रेस की तरफ से कोई शामिल हो रहा है चूँकि आप तीन राज्य जीते भी हैंईवीएम की मदद सेपार्टी का क्या स्टैंड है के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि नंबर एक, विश्व भर में कुछ चुनिंदा देश हैं। मैं समझता हूँ शुरुआत हुई 2010-12 में हालैंड ने,फ्रांस ने, जर्मनी ने, कई देशों ने निरस्त कर दिए हैं ईवीएम और बचे हैं दो-तीन देश, जिसमें अफ्रीका के दो-तीन देश है, एक दक्षिण अफ्रीका है, कांगो है, भारत है और दो-तीन और देश हैं। विश्व भर में कोई आंशिक रुप से देश इसका प्रयोग करते हैं और जो करते थे, उन्होंने भी बंद कर दिया है।

नंबर दो, इसलिए हमने कहा कि  इसको अंततोगत्वा वापस पेपर पर जाना चाहिए लेकिन हम जानते हैं कि इतने कम समय में पेपर में नहीं जा सकता है। अभी भी ईवीएम हैं, तो ईवीएम में होगा। इसलिए नंबर तीन हमने कहा कि ईवीएम में किस प्रकार के सेफ गार्ड हो सकते हैं, सिर्फ इस विषय पर बात होनी है और सेफ गार्डस क्या हैं? कि हमारी याचिका से, हम खुद पेश हुए थे उसमें। बीएसपी ने की थी, हम पेश हुए थे।

कई वर्षों से चुनाव आयोग कह रहा था कि हम वीवीपीएटी नहीं कर सकते, हमारे पास  पैसा नहीं है। इस याचिका से सौ प्रतिशत वीवीपीएटी हर कांस्टीट्यूएंसी में होगा, मशीन में संभव है, ये हुआ है,2019 में, ये चुनाव आयोग का खुद का वक्तव्य है। अब चौथा प्रश्न उठता है अगर वीवीपीएटी है उसके बाद आप उसका एक प्रतिशत, दो प्रतिशत केसेस में प्रयोग करेंगे तो क्या फायदा है उसका? पेपर ट्रेल रखा है आपने तो उसका कोई उद्देश्य है। तो हमने कहा कि 50 प्रतिशत केस में चुनाव आयोग उसका आंकड़ा खुद निर्णय कर सकते हैं। 40 कह लीजिए, 45 कह लीजिए, 35 कह लीजिए, लेकिन एक फेयर सैंपल होना चाहिए जहाँ कि वीवीपीएटी का चैक होगा, यानि पेपर ट्रेल चैक होगा, ये हमारा सीमित विरोध है।

जहाँ तक चुनाव जीतने और हारने की बात हैआपको पता है कि इसका दुरुपयोग ऐसे नहीं किया जाता है। इसका दुरुपयोग किया जाता है आंशिक रुप से कुछ मशीनों से खिलवाड़ करकेजिससे पूरा फर्क पड़ जाता है। जहाँ फर्क पड़वाना अति आवश्यक होता हैहर चुनाव में इसकी जरुरत ही नहीं होती है। अगर आप 15-20 प्रतिशत मशीनों में ये दुष्प्रभाव कर लें तो उसका हल मिल सकता हैलेकिन हमारे पास अगर प्रमाण नहीं है तो मुद्दा बड़ा सरल है अगर इतना भयानक संदेह है तो गणतंत्र इस संदेह से कहीं ऊपर है और जब ये संदेह है तो कम से कम आज जब दो महीने बचे हैं तो इस संदेह को हटाने के लिए आपको 100 प्रतिशत नहीं तो 50 प्रतिशत में सैंपल पेपर ट्रेल चैक करना चाहिएरैंडम पेपर ट्रेल सैंपल। इसका हमें लगता हैसिवाय कुछ समय विलंब होगा और कोई उत्तर नहीं है आपके पास और आपको बिलकुल करना है। इससे आपको एक आश्वासन मिलेगादेश आश्वस्त होगा। जहाँ तक लंदन का सवाल हैजब तक कुछ होता नहीं है वहाँ पर हम कुछ टिप्पणी नहीं करेंगेउसके बाद आपसे बाद करेंगेयही हमारा स्टैंड है।

Sd/-

(Vineet Punia)

Secretary

Communication Deptt.

AICC

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