डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि तो मित्रों इसमें कहाँ संतुलन है, बरगलाने की प्रक्रिया है, अकाउंटेसी को झूठ-मूठ, मोड़-तोड़ कर लोगों को मूर्ख बनाने की प्रक्रिया…. और उद्देश्य क्या हैं? क्या ये सरकार का औचित्य है कि वो अपने टॉरगेटसONGC को शामिल करके पूरे करें। जिसमें कोई प्राईवेट लोग शामिल ही नहीं हैं। इसके मैं आपको 5 उदाहरण देना चाहता हूं। इस प्रकार से दाएं हाथ से बाएं हाथ को देना एक मिथ्या प्रचार करने की प्रक्रिया है।
पहला, मुद्दा है कि अचानक क्योंकि ये वर्ष अब अंत हो रहा है, बजट में आंकड़े सही लगे, disinvestment इस सरकार ने 40 – 45 प्रतिशत अपने उद्देश्य अपनी सीमा से कम किया था, 2014-15 में। 44 प्रतिशत कम था टॉरगेट से। 2015-16 में 42 प्रतिशत कम था। 2016-17में 20 प्रतिशत कम था। अब अपना disinvestment टॉरगेट की पूर्ति दिखाने के लिए, मात्रा दिखावा करने क लिए ONGC द्वारा HPCL के शेयर खरीदे जा रहे हैं। भारत सरकार आज की तारीख में HPCL शेयर की मालिक है, यानि भारत सरकार अपनी शेयर होल्डिंग की संपत्तिHPCL की जो शेयर होल्ड करती है भारत सरकार, ONGC को बेचेगी। मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि क्या ये disinvestment है सही तरीके से या केवल मूर्ख बनाने की प्रक्रिया है?
दूसरा, इस खरीदारी के लिए ONGC को बाध्य किया जा रहा है, लगभग 30,000 करोड़ के ऋण लेने के लिए। ONGC ने हाल में वो प्रक्रिया शुरु कर दी है, जिसके अंतर्गत उसके ऋण लेने की सीमा बढ़ाई जाए। 35 हजार करोड़ तक और सभी लोग जानते हैं कि इसका एक ही उद्देश्य है कि लगभग 30 हजार करोड़ का ऋण ONGC लेगी, तो मैं ONGC हूं, मैं इनसे ऋण लूंगा, इनका मतलब है पब्लिक, वो ऋण मैं दूंगा सरकार को, सरकार से लूंगा शेयर HPCL के।
नंबर तीन, इससे जमीनी सच किस प्रकार से बदलेगा? आज HPCL एक सरकारी कंपनी है। HPCL रिफाईनिंग करती है या ट्रेड करती है ऑयल में, पेट्रोल पम्पो में बेचती है, कल भी बेचेगी, कल भी वही काम करेगी। फर्क इतना है कि कल मालिक सरकार थी, आज मालिकONGC है, जिसकी मालिक सरकार है। लेकिन इस आंकड़ों की बाजीगरी से आपने अपने अकाउंट सीधे कर लिए। पर जमीनी सच तो बिल्कुल नहीं बदला।
चौथा, मोरगन स्टैनले रिपोर्ट के अनुसार, न्यूनतम fiscal deficit इस वर्ष साढ़े तीन प्रतिशत बढ़ने की आशंका है। लगभग 0.3 से 3.5प्रतिशत तक बढ़ने की आशंका है, ये काफी बड़ी वृद्धि है और इस वृद्धि को और कंट्रोल करने के लिए इस प्रकार के हथकंडे किए जा रहे हैं।
नंबर 5, पूरे पेट्रोलियम उद्योग के विषय में बात की जाए, तो बहुत महत्वपूर्ण है, हमने पहले भी की है, दोहराना अति आवश्यक है कि यूपीए के वक्त, जब अंतर्राष्ट्रीय कीमतें तेल की 105 डॉलर प्रति बैरल थी। मैं उस समय की बात नहीं कर रहा हूं जब एक वक्त 150डॉलर भी थी, लेकिन 105 तो काफी समय के लिए थी, 2013-14 में भी थी, जब मोदी जी का पदार्पण हुआ। उसके बाद उनके समय में 84डॉलर से होते हुए लगातार 2 वर्ष, 2015-16 में और 2016-17 में लगभग 46 डॉलर प्रति बैरल रही, 46.17 और 47.56 डॉलर प्रति बैरल। वहाँ जबरदस्त जेकपॉट, फिर भी यहाँ पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ रही हैं। 67 रुपए पेट्रोल, 64 रुपए पेट्रोल, 71 रुपए पेट्रोल और आज22 जनवरी को मंबुई में पेट्रोल की कीमत है 81.10 रुपए प्रति लीटर ! डीजल का हाल भी वही है 52, 62, 59, 67.10 आज मुंबई में है। तो इस प्रक्रिया से कि आप सस्ता खरीदते हैं तेल विदेश से और महंगा बेचते हैं भारत की जनता जनार्दन को। आपने इस प्रक्रिया से साढ़े तीन वर्ष में, बहुत महत्वपूर्ण आंकड़ा है, आपने 5,97,473 करोड़ रुपए एंठ लिए हैं। एक पैसा उसका पास-ऑन नहीं किया, आम पब्लिक को फायदा नहीं दिया। मैं समझ सकता हूं कि कुछ आप भी रखिए टैक्स, लेकिन उसका कुछ तो जनता जनार्दन को देते, कुछ नहीं किया। तो अंत में मैं ये कहूंगा कि इस सरकार का उद्देश्य सिर्फ एक है कि बड़े-बड़े जुमले कसना, बड़े-बड़े भाषण देना, लेकिन असली बात है कि जमीन पर इस प्रकार की अदला-बदली, दाएं हाथ से बाँए हाथ की ट्रिकरी, एक प्रकार से अकाउंटेसी की अदला-बदली करके देश का नुकसान करवाना, हम इसकी भर्त्सना करते हैं।
हमने लिखित वक्तव्य दिया है, हमने औपचारिक रुप से कई बार मांग की, आप इतने बड़े भाषण और जुमले कसते हैं, one nation one tax, हमारा शुरु से कहना है कि बहुत आदर्श चीज को जो हमने बनाई उसको आपने GST को विकृत कर दिया। उसका अहम उदाहरण है कि आपने पेट्रोल और डीजल को GST से बाहर रखा। आप बात करते हैं 18 प्रतिशत, 15 प्रतिशत, 12 प्रतिशत मीन रेट, वाईस रेट,डिजायरेबल रेट तो पेट्रोल-डीजल को तो आपने पूरे GST सिस्टम से ही बाहर रख लिया। इसलिए आज पेट्रोल-डीजल की कीमतें आकाश चुम रही हैं, क्योंकि आप जान-बूझ कर इस टैक्स का फायदा उठा रहे हैं, जिसमें आप देखिए कि कितना घृणात्मक है। आप खरीदते हैं अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल में। दो साल आपने खरीदा 45, 47 डॉलर प्रति बैरल और यहाँ बढ़ाते रहे कीमतें, टैक्स लेते रहे, कोई सीमा नहीं टैक्स पर। उसके बाद 68 डॉलर हुआ, तब भी आप उससे ड़बल यहाँ ले रहे हैं। तो यहाँ आप इसको GST में किस वजह से नहीं ला रहे हैं।
एक प्रश्न पर कि ऐसी चर्चा है कि 2019 में चुनाव हैं, तो उसे देखते हुए सरकार पेट्रोलियम प्रोडक्टस को GST में ला सकती है, GSTकाउंसिल में आपका क्या मत होगा, डॉ. सिंघवी ने कहा कि हमने पेट्रोल-डीजल को GST में लाने की औपचारिक मांग की है, कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गाँधी ने मांग की है, हमने इस मंच से मांग की है, लिखित मांग की है, सवाल कैसे उठता है कि हम GST काउंसिल में इससे उल्टा बोलेंगे।
एक अन्य प्रश्न पर कि प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि रोजगार के मामले में कांग्रेस गलत आंकड़े दे रही है, डॉ. सिंघवी ने कहा कि प्रधानमंत्री जी का कहना है कि जो हर चीज होती है, हम रोड़ बना रहे हैं तो बढ़ रहा होगा रोजगार, ये कल उन्होंने कहा। हम ये कर रहे हैं तो बढ़ रहा होगा। देश चलता है आंकडो पर, आंकड़े हमारे नहीं है, सरकार की एजेंसिंयों के हैं। आज रोजगार के लिए दो एजेंसिंयां हैं – एक तो इम्पलोयमेंट एक्सचेंज है, जो फॉर्मल एक्सचेंज बताता है, वो आंकड़े आपके सामने हैं। दूसरा इनफोर्मल रुप से जो प्रकाशित आंकड़े हैं,एनसीऑर का आंकड़ा ले लीजिये, आईएसआई का आंकड़ा ले लीजिये। किस आंकड़े के आधार पर ये कह सकते हैं कि 70 बार जो अकाउंट खुले, जिसमें रुपया बढ़ा, उतना ही रोजगार बढ़ा, ये किसने कहा है? ये तो बहुत अजीबो-गरीब बात है। ये बात अलग है कि अगर आप प्रकाशित आंकड़ो की बात नहीं कह सकते कि मैंने 2 करोड़ कहा था, कम से कम 10 लाख हो रहा है। लेकिन आज आप किस आधार पर कह रहे हैं। आप ये कह रहे हैं कि जब हम मुद्रा स्कीम लेते हैं, तो उसमें हो रहा होगा, तो हो रहा होगा, उस पर हम रिएक्ट नहीं कर सकते हैं।
एक अन्य प्रश्न कि कल प्रधानमंत्री जी ने अपने इन्ट्रव्यू में ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ की बात की, क्या कहेंगे, डॉ. सिंघवी ने कहा कि हमने बार-बार सुना है इन साढ़े तीन वर्षों में भी कि माननीय प्रधानमंत्री और उनकी सत्तारुढ़ पार्टी का एक ही उद्देश्य है कि ‘कांग्रेस मुक्त भारत’, गणतंत्र, लोकतंत्र में क्या किसी राजनीतिक पार्टी को हटाकर कांग्रेस मुक्त भारत अच्छा होता है, ये एक अलग मुद्दा है। कल उसका एक नया explanation आया कि ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का मतलब ये नहीं दल हटे, राजनीतिक पार्टी हटे, Congress culture मुक्त भारत हो। तो हम पूछना चाहेंगे माननीय प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी से कि Congress culture के किस पहलू को हटाना चाहते हैं, क्या वो नेहरुवीयन स्तंभ जिनकी आधारशीला पर हमारा गणतंत्र बना, हमारे लोकतंत्र पूरे हमारे एशियाई पड़ोसियों में, जो स्वतंत्र हुए नए देश, पूरे विश्व में, अफ्रिका में, आस्ट्रेलिया में, एशिया में, उनमें सिर्फ भारत एक लोकतंत्र रहा। क्योंकि हमारे पास सोशलिजिम वाले, धर्म-निरपेक्षता वाले जैसे स्तंभ थे। कौन से इस culture को हटाना चाहते हैं, non-alignment वाले, एक स्वतंत्र विदेश नीति वाले सिद्धांत या सबको साथ लेकर चलने वाली एक विशेष नेहरुवियन गणतांत्रिक व्यवस्था, जो भारत में रही, जो ना पाकिस्तान में दिखी, ना बंगलादेश में दिखी, ना नेपाल में दिखी। वो सौहाद्र है, एक बड़ा दिल, वो इनक्लूसिवनेस, जो हमारे शब्द हैं संविधान में जो समझते नहीं हैं, बीजेपी की डिस्कशनरी में नहीं है, फ्रेटरनीटी, कौन सी चीज को हटाना चाहते हैं, माननीय प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी? क्या वो हटाना चाहते हैं वो culture जिसके अंतर्गत अभी हाल में आपने 10 वर्ष में ऐसी जबरदस्त विकास की दर देखी, जिसकी औसतन न्य़ूनतम विकास की दर 4 से 14, औसतन बीजेपी की सबसे ज्यादा विकास की दर से ज्यादा थी। किस culture की बात कर रहे हैं आधार वाले culture की, जिसकी वो दुहाई में देते हैं वो हर चीज में। आज छींकने के लिए भी आधार का इस्तेमाल करने का प्रयत्न कर रहे हैं। क्या वो विश्व में सबसे बड़ी समाज कल्याण की योजना मनरेगा के विषय में बात कर रहे हैं या दिनभर आपको बताया जाता है, जिसको सरदार पटेल से लिंक किया जाता है, लेकिन कांग्रेस को झुठला और भुला दिया जाता है। क्या GST, यद्यपि विकृत रुप से लेकिन GST की दुहाई आप दे रहे हैं। कौन सा culture,कांग्रेस culture नहीं तो क्या आपका culture था वो, जिसका आपने 7 वर्ष विरोध किया या आरटीआई culture, जो इस देश में हम लाए या लोकपाल culture जो हमने पारित किया जो आपने 11 वर्ष से गुजरात में कार्यांवित नहीं किया और 3 वर्ष, 4 वर्ष यहाँ नहीं किया, ना करने वाले हैं। अंत में मैं कहना चाहूंगा विनम्रता से कि निश्चित रुप से हमारे culture को बदलने में आप पूरी तरह से जुटे हैं। क्या आप बाकि culture की तरफ भी ध्यान देते हैं… बीजेपी culture कह लीजिये, आर.एस.एस कह लीजिये, वी.एच.पी कह लीजिये, बजरंग दल कह लीजिये…विभाजन का culture, साम्प्रदायिक तनाव का culture, आपसी मतभेद का culture, मनभेद का culture, गैर-वैज्ञानिक उट-पंटाग बातें करने का culture और खाने-पीने, उठने-बैठने, बोलने-चालने, पहनने के culture पर रोक लगाने वाले culture में। कौन सा culture आप बदलना चाहते हैं, ये स्पष्ट करें, उसके बाद देश जवाब देगा।
सीपीआई (एम) से संबंधित एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि आपके प्रश्न के दो-चार पहलू हैं। पहला हम दूसरी पार्टियों के मामलों में ना हस्तक्षेप करते हैं, ना बोलते हैं। दूसरा जिस विषय का आपने जिक्र किया, वो विषय अभी अंतिम रुप से निर्णित नहीं हुआ है, उस पार्टी में। उस पार्टी में भी इसको अंततोगत्वा निर्णित करने की प्रक्रिया अभी किसी और अधिवेशन में होगी। तीसरा, आज की तारीख में गठबंधन का मुद्दा, जो आपने उठाया है है, प्री-मैच्योर है, पूर्वानुमान की बात है और अटकल की बात है इसलिए उसमें हम नहीं पड़ेंगे। आखिरी नंबर चार मैं आपको स्पष्ट कर दूं कि कई समय से अभी नहीं और संसद में नहीं, संसद के बाहर नहीं, सभी जगह मुद्दों के आधार पर सहमति कह लीजिये, कॉरडिनेशन कह लीजिये, एक प्रक्रिया कह लीजिये। विभिन्न रुपों में आपने देखा है संसद के अंदर, संसद के बाहर कि कॉरडिनेशन हुआ है। सिर्फ इस पार्टी की बात नहीं कर रहा हूं, विभिन्न पार्टियाँ हैं, जो समझती हैं कि सत्तारुढ़ पार्टी का विरोध करना आवश्यक है।
एक अन्य प्रश्न पर कि प्रधानमंत्री जी ने ‘एक देश एक चुनाव’ को लेकर बयान दिया है, क्या कहेंगे, डॉ. सिंघवी ने कहा कि ये बात पुरानी बात है। माननीय प्रधानमंत्री बहुत पहले से कह रहे हैं और जब भी कोई इन्ट्रव्यू होता है तो वो कहते हैं और हमारा भी स्टेंड वही है कि जब तक कोई सर्वदलिय सहमति नहीं होती इसमें। क्योंकि हमारे संविधान के विपरीत है। जब तक कि सर्वदलिय सहमति से आप संविधान को नहीं परिवर्तित करते हैं। मैं आपको उदाहरण दूं – आपने सब चुनाव पूर्व निश्चित कर लिए दिसंबर में होंगे, 5-5 वर्ष में। दो सरकारें बीच में गिरी, एक सरकार तीसरे क्वार्टर में गिरी, एक पहले क्वार्टर में गिरी, आप उसको किस संविधान के अंतर्गत कहेंगे कि 9महीने में खाली रखेंगे। या तीन साल तक खाली रखेंगे। मैं नहीं कह रहा हूं कि संविधान परिवर्तित नहीं हो सकता है लेकिन परिवर्तित करने के लिए सहमति होनी चाहिए। दो तिहाई कीजिए और तरीके में चाहिए, स्टेट में चाहिए। बिना बात के किसी एक व्यक्ति के मत से तो नहीं होता ना। उस मत को परिवर्तित करना पड़ेगा सहमति में, वो अलग प्रक्रिया है, जिसकी बारे में माननीय प्रधानमंत्री जी बात नहीं करते हैं।
आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को निकालने के मामले पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि सिवाए ‘आप’ के दिन प्रतिदिन के आरोप-प्रत्यारोप के अलावा कौन व्यक्ति इसको endorse नही करेगा। एक चुनाव आयोग आपने बनाया, संविधान में एक अनुच्छेद ड़ाला। डिस्क्वालिफिकेशन निरस्ता की एक शर्त है। ना आप उसके जज हैं, ना मैं हूं। उसका प्राथमिक जज है चुनाव आयोग। अगर चुनाव आयोग अंतिम जज नहीं सिर्फ सुझाव देता है, वो जाता है राष्ट्रपति को, चलिए राष्ट्रपति जी ने भी गलत निर्णय दिया, उसको आप चुनौति दे सकते हैं हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में। अब उसके बीच में अलग-अलग लोग अपना मत दें कि सुना ना सुना, नेचुरल जस्टिस हुआ ना हुआ, तो हम सब लोग उस पर जज नहीं बन सकते। ये मुद्दा नहीं है। मुद्दा ये नहीं है कि पथ बनाया था, मुद्दा ये है कि क्या कानून अनुमति देता था। आपके 4 में से 3 उदाहरण ऐसे हैं जिसमें कानून पहले बना, कानून के अंतर्गत ये आदमी ये पद होल्ड़ करेगा, पहले लिखा, और ये लिखा कि इसका ये पद होल्ड करना उस कारण से Office of profit नहीं लागू होगा, ये अलग चीज है।