डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं आपके समक्ष दो सरल और सीधे प्रश्न उठा रहा हूं।
प्रश्न नंबर एक जो 2015 में माननीय अनुज लोया जी ने लिखित रुप में कहा था। उसके बाद उनकी बुआ, यानि जज लोया कि बहन ने कहा था विस्तार से और व्यापक रुप से। उसी समय संक्षेप में जज लोया के पिता श्री ने कहा था और एक आज कल में जज लोया के अंकल श्री निवास ने कहा। ये 4 चीजें मैं आपके सामने संक्षेप में पढ़ने वाला हूं। बाकि आपको प्रतिलिपियाँ यहाँ से मिल जाएंगी और इनको आप contrast कर लें,जो कहा गया है अनुज लोया द्वारा कल। अब आप अपने आप पूछ सकते हैं प्रश्न कि वो तब सच बोल रहे थे या कल सच बोल रहे थे। ये विपरितार्थक वक्तव्य एक व्यक्ति का है। अभी ना बहन बोली हैं, ना पिता श्री बोले हैं, ना अंकल बोले हैं, यद्दपि अनुज लोया ने कहा है कि मैं उनके लिए भी, उनके behalf पर भी बोल रहा हूँ।
जो दूसरा प्रश्न है, वो भी संक्षिप्त ये है कि कोई बोले, कहे कुछ भी, मैं आपके, मेरे और उनके बोलने के ऊपर, अपनी बात आधारित नहीं कर रहा हूँ। क्या कोई जनहित का मुद्दा, राष्ट्रहित का मुद्दा कि जांच हो या ना हो, इस पर निर्भर करता है, कि आप मांग करें या ना करें? किसी न्यायपालिका के एक अभिन्न अंग के एक सम्मानित जज की अगर मृत्यु हुई है और उस पर प्रश्नचिन्ह है, वो पूरी तरह से निराधार हो, झूठा भी हो, सत्य क्या है, उसको जानने के लिए क्या जांच की मांग करना इस बात पर निर्भर करेगा कि A ने क्या कहा, B ने क्या कहा, C ने क्या कहा?मैं समझता हूं कि नहीं।
18 फरवरी 2015 को श्री अनुज लोया ने ये कहा था, मैं सिर्फ आपके लिए दो-दो पंक्तियाँ पढ़ रहा हूं, विस्तार से आपको चिठ्ठिय़ाँ मिल जाएंगे।
एक ही चिठ्ठी में। ये बात है 18 फरवरी 2015 में, उनके हस्ताक्षर ही नहीं, उनकी अपनी handwriting में, हाथ से लिखी चिठ्ठी है। अब ये हैं एक व्यक्ति 17-18 वर्ष के व्यक्ति अनुज लोया। जज लोया की दो बहने हैं। एक बहन का नाम हैं अनुराधा बियानी, धुले में रहती हैं। उन्होंने बड़े विस्तार से 2015-16 में ही बोला है, तभी। उन्होंने कहा कि, एक कॉल आया और कहा कि पिता जी ने कहा, हरकृष्ण नाम है पिता जी का जो अनुराधा हैं, उनकी बहन। उनकी बहन बड़ी विस्तार में कहती हैं। उन्होंने एंट्री की अपनी डायरी में। मैं सिर्फ कोट कर रहा हूं, अपनी बात कुछ नहीं कह रहा हूं। फिर आगे कहा, कोट कर रहा हूं मैं वापस एक और डायरी एंट्री है अनुराधा बियानी की,फिर पिता जी कहते हैं,हरकृष्ण मेरे पास 5 पन्ने हैं अनुराधा बियानी के, अलग-अलग 4-4 पंक्तियों के कोटेशन, मैं सब नहीं पढ़ रहा हूं आपके समक्ष। लेकिन यही इनके वक्तव्यों की एक दिशा है। दूसरी उनकी बहन हैं, उनका नाम है सरिता मंधाने। वो ट्यूशन सेंटर चलाती हैं, औरंगाबाद में। उन्होंने कहा कि Barde ने फोन किया सुबह 5 बजे कि मृत्यु हो गई है।
ये वही 4 वक्तव्य, 4 अलग–अलग व्यक्तियों के, उसी समय मृत्यु के बाद या उसके कुछ महीनों के अंदर। बड़े स्पष्ट हैं। मृत्यु किसी अस्वाभाविक कारण से हुई, ये भी हम कोई आरोप नहीं लगा रहे हैं। हम सिर्फ ये कह रहे हैं कि प्रश्नचिन्ह इतना बड़ा है, तो जांच द्वारा इसकी स्पष्टीकरण अत्यंत आवश्यक है। सिर्फ इतनी बात है। अंतिम श्री निवास लोया, जज लोया के पैतृक अंकल हैं। वो अनुज लोया के प्रैस कॉन्फ्रैस, अनुज लोया ने दो चीजें की, 2017 में उन्होंने retractionकिया, जो मैं आपके समक्ष पढ़ने वाला हूं और कल एक प्रैस कॉन्फ्रैस की। तो उस प्रैस कॉन्फ्रेंस के विषय में श्री निवास लोया ने कहा कि,
ये बात सही है बिल्कुल कि माननीय अनुज लोया जी ने 27 नवंबर 2017 में एक स्पष्टीकरण या retraction दिया है और कल प्रैस कॉन्फ्रेंस में कहा है।
तो पहले मुद्दे की बात सिर्फ ये है कि आपके पास 4 वक्तव्य हैं, उनकी मृत्यु की तुरंत बाद। खुद अनुज लोया का, फरवरी 2015 का। 2015-16 में उनकी बहन अनुराधा बियानी का, उनकी दूसरा बहन सरिता मंधाने का, उनके पिता के संक्षिप्त वक्तव्य हरकृष्ण जी के और पाँचवा है उनके अंकल का, कल का वक्तव्य, श्री निवास नाम है उनका। इसके विपरीत हैं दो retraction, एक अनुज लोया का 2017 में और एक कल की वीडियो कॉन्फ्रेंस, वकिलों के साथ।
मैं आपके समक्ष छोड़ देता हूं कि सिर्फ इसी बात पर कि न्यायपालिका के एक बड़े स्पेशल जज की मृत्यु के बारे में contradictory,विपरितार्थक, आपसी समनवय नहीं खाने वाले बयान आ रहे हैं तो अपने आप में ही पर्य़ाप्त हैं, एक जांच के लिए।
नंबर दो मैं नहीं समझता कि जो चीज जनहित की है, राष्ट्रहित की है, जो एक अभिन्न संबंध रखती है हमारे लोकतंत्र और गणतंत्र के अहम मद्दों से, उसमें जांच हो या या ना हो, ये किसी के मांग या ना मांग करने के आधार पर नहीं होनी चाहिए। आप मांग करते हैं, मैं मना करता हूं। वो मांग करते हैं, वो मना करते हैं। ऐसे जनहित के मुद्दों पर किसी की मांग या उस मांग के अभाव के आधार पर जांचे नहीं होती। वो उस मुद्दे के महत्व के आधार पर होती है।
तीसरा, मेरा आज का कोई भी वक्तव्य उच्चत्तम न्यायालय के प्रंसग से कोई संबंध नहीं रखता। एक राजनैतिक पार्टी की हैसियत से, एक जिम्मेवार पार्टी, एक नागरिक की हैसियत से, हम सबको ये हक है कि हम इस मुद्दे पर एक जांच मांगे और वो जांच निश्चित रुप से उच्चत्तम न्यायालय के ही अंतर्गत होगी। वो जांच निश्चित रुप से उच्च न्यायालय के अंतर्गत ही होगी। वो जांच बाहर किसी राह चलते हुए व्यक्ति से नहीं मांग रहा है। ये जांच देश मांग रहा है और उस देश के एक भावना को हम व्यक्त कर रहे हैं। जांच होती है या नहीं होती है उच्चतम न्यायालय के हाथ में हो या कार्यपालिका के हाथ में हो, वो अलग मुद्दा है। लेकिन हमारी मांग उच्चतम न्यायालय के किसी आंतरिक फर्क के होने या ना होने से कोई संबंध नहीं रखती है। हम किसी रुप से राजनीति यहाँ से दो किलोमीटर दूर उच्चतम न्यायालय में नहीं ला रहे हैं।
अंतिम बात मैं ये कहूंगा विनम्रता से कि इस व्यापक मुद्दे को देश के विभिन्न हिस्सों ने समझा है कि जांच की मांग सही है। निष्पक्ष, स्वतंत्र,समय सीमा में बाध्य और उस जांच से ऊल्टा सत्य और तथ्य बाहर आएंगे और इस मामले का हल होगा। नहीं तो ये संदेह का व्यूहचक्र जो है ये निरर्थक बिना कारण से बढ़ता रहेगा।
एक प्रश्न पर कि आप जांच की मांग कर रहे हैं, लेकिन ये मामला तो पहले ही उच्चतम न्यायालय में है, डॉ. सिंघवी ने कहा कि मैंने तो कहा है अभी। प्रैस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं हम क्योंकि हम अपना मत आपके समक्ष रख रहे हैं। हमारी मांग है अंततोगत्वा कि कानून के द्वारा ही जांच होगी, लेकिन इसके कई तरीके हैं। उच्चतम न्यायालय कर सकता है। उच्चतम न्यायालय निर्णय कर सकता है कि हम इसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगे। उच्च न्यायालय कर सकता है, वहाँ पर भी तो याचिका पेंडिंग है। उच्च न्यायालय कर सकता है कि हम दोनों ही इसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगे और कार्यपालिका निर्णय करे। हमारी मूल मांग है कि इन मामलों में तथ्य एक निष्पक्ष रुप से सामने आने चाहिएँ। ये तो मैंने जान-बूझ कर खुद ही कहा। बार-बार, सत्तारुढ़ पार्टी के कई पक्षों के द्वारा ये जान-बूझ कर, confuse करने के लिए, बरगलाने के लिए, बहकाने के लिए देश को कहा जा रहा है कि आपको कोई जांच मांग रहे हैं वो उच्चतम न्यायालय के, उच्च न्यायालय के विरुद्ध है, कानूनी ही नहीं है या गैर-कानूनी है या कानून की परिधि से बाहर है।
एक अन्य प्रश्न पर कि आपको लगता है कि जस्टिस लोया के बेटे के ऊपर कोई दबाव है, डॉ. सिंघवी ने कहा कि एक जिम्मेवार राजनैतिक पार्टी की हैसियत से, एक सबज्यूडिस मामले में, मैं किसी रुप से ये नहीं कहने वाला हूं कि आप गिल्टी हैं या आप innocent हैं, आपके ऊपर दबाव है या आपके ऊपर दबाव नहीं है। मैंने आपके समक्ष 5 पत्र, वक्तव्य और लिखित चीजें रख दी हैं। जो कल वाला वक्तव्य है, उनके अंकल का, जो पढ़ दिया है, जो आपने कहा दबाव, उसकी बात है। मैं तो कहता हूं कि सबकुछ अच्छा रहा होगा, स्वाभाविक रहा होगा, इस बात के लिए भी आवश्यक है जांच होना और अस्वाभाविक रहा होगा तो और भी जरुरी है जांच होना। लेकिन जांच ना होने से इस प्रकार के संदेह के चक्रव्यूह में पड़ना बिल्कुल आवश्यक नहीं है।
एक अन्य प्रश्न पर कि इस मुद्दे पर सियासत क्यों हो रही है, डॉ. सिंघवी ने कहा कि सियासत कैसे हो रही है। इस मामले के सबज्यूडिस होने के बहुत पहले से जज लोया के मामले की जांच की मांग हो चुकी है। ये जांच की मांग 2015, फरवरी से शुरु हो गई थी। विशेष रुप से 2016 में हुई है, मामले तो अभी आए हैं और हमने उस परिधि के अंतर्गत मांगी है जांच, हमने उस परिधि के बाहर नहीं मांगी है। हमने उस अधिकार क्षेत्र के बाहर नहीं मांगी है। हमने ये भी कहा है कि कुछ प्रसंग अगर रहा हो, किसी एडमिनिस्ट्रिव मामले में, लिस्टिंग के मामले में, जिस इस मामले का जिक्र हो, वो हमारे से मतलब नहीं रखता। वो न्यायपालिका आंतरिक रुप से हल करेगी अपने आप। हम तो कह रहे हैं कि नागरिकों के रुप से,स्टेक होल्डर के रुप से, जिम्मेवार राजनीतिक पार्टी के रुप से, कानून की परिधि, उच्चत्तम न्यायालय की परिधि, उच्च न्यायालय की परिधि और अगर वो दोनों हस्तक्षेप करने से मना कर रहे हैं तो कार्यपालिका की परिधि के अंतर्गत इसमें निश्चित रुप से जांच होनी चाहिए, इसमें क्या गलत है?
एक अन्य प्रश्न पर 13 दिन में सीमा पर 17 पाकिस्तानी जवान मारे गए हैं, बीजेपी कह रही है कि अभूतपूर्व कदम है, डॉ. सिंघवी ने कहा कि मैं इसमें कभी भी, इस मंच से आपके कैमरे के सामने भी सेना का राजनीतिकरण करने का पूरजोर विरोध करता हूं। दूसरा, आज एक बहुत सुखद प्रसंग है, क्योंकि आज थल सेना दिवस है। तो थल सेना दिवस पर हम सबका औचित्य भी बनता है और उत्तरदायित्व भी बनता है कि हम अपनी सेना को बधाई दें। अपनी सेना के शौर्य, अनुशासन, अपनी सेना के पूरे कार्यक्रम और कार्यशैली की प्रशंसा करें, बधाई दें और पीठ को थपथपाएँ और वो मैं इस मंच से कर रहा हूं। मैं बिल्कुल राजनीतिकरण वाले ट्रेक में नहीं पड़ने वाला हूं। मैं ना रिएक्ट करने वाला हूं किसी के राजनैतिक वक्त्वय में और ना मैं उसका समर्थन और विरोध करने वाला हूं। हाँ, हमें गौरव है, इस देश को गौरव है और इस देश को पूरा आभास है कि हम हमारी सेना के कारण सुरक्षित सोते हैं, सुरक्षित घूमते हैं और उसी प्रसंग में मैं आज थल सेना को बधाई देना चाहता हूं।
एक अन्य प्रश्न पर कि बार एसोसियेशन ऑफ इंडिया ने इसी मुद्दे को लेकर बयान दिया है, डॉ. सिंघवी ने कहा कि मैं नहीं समझता कि ट्राँसफर या नोन ट्राँसफर के मुद्दों पर, उस स्पेसिफिक मुद्दे पर, लोया के मुद्दे पर तो मैंने बहुत बोला है। लेकिन मैं नहीं समझता कि इस मुद्दे पर आवश्यक है हमारा बोलना.. इस वक्त एक राजनैतिक पार्टी की हैसियत से, क्योंकि ये मांग तो इसी बार एसोसियेशन से पहले ही प्रस्तावित हो चुकी है और वो लिखित रुप से रिजोल्व हो गई है, तो हमारे बोलने की क्या जरुरत है?
मीनाक्षी लेखी के ट्विट पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि मैं यहाँ पर उनको शिक्षित करने के लिए नहीं हूं, जिनके पास कोई सेंस ऑफ ह्यूमर नहीं है। मैं समझता हूं कि राजनीति में अपने ऊपर हंसने और सही कानूनी और किसी द्वेष और ईर्ष्या से रहित रुप से अगर हम ह्यूमर फैला सकते हैं, तो वो सफलता है राजनीति की और मैं नहीं समझता कि जिस वीडियो का आप जिक्र कर रहे हैं, वहाँ किसी रुप से एक द्वेष रुप से या किसी को हल्का दिखाने की भावना.. सिर्फ एक ह्यूमर की भावना से वहाँ पर एक दर्पण है। मैं बिल्कुल सहमत नहीं हूं इसके राजनीतिकरण से। मैं बिल्कुल सहमत नहीं हूं इसको घोर मुद्दा बनाने की प्रक्रिया से और मैं समझता हूं कि ये हमको अपने ऊपर हंसने की प्रवृति और क्षमता होनी चाहिए राजनीति में विशेष रुप से।
एक अन्य प्रश्न पर कि योगी आदित्यनाथ जी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी जी के मंदिर जाने पर टिप्पणी दी है, डॉ. सिंघवी ने कहा कि आजकल समस्या ये हो गई है कि कांग्रेस का कोई आदमी, यदि किसी मंदिर में चला जाए तो। ठहाकों के बीच उन्होंने कहा कि मैं समझता हूं कि अगली बार जो – जो बीजेपी के प्रदेश हैं, वहाँ पर गार्ड खड़े कर दीजिए हर मंदिर के आगे कि कांग्रेस का कोई आदमी मंदिर नहीं जा सकता है। मैं तो प्रस्ताव रख रहा हूं, माननीय योगी जी के सामने और बीजेपी के जितने भी प्रादेशिक मुख्यमंत्री है। अगर कोई कांग्रेस वाला किसी भी मंदिर में जाता है तो घोर अपराध है। इस देश के कानून के अंतर्गत कांग्रेस के लोगों के लिए मंदिर में जाना मना है। दूसरा, मंदिर आरक्षित हैं सिर्फ बीजेपी के लिए। तीसरा सिर्फ बीजेपी वाले eligible हैं, किसी Non-executive कानून के अंतर्गत मंदिर जाने के लिए। इतनी सस्ती, ओच्छी और इतनी अजीबों-गरीब राजनीति ना मैंने सुनी। कोई मंदिर जाता है तो आप कहते हैं कि राजनीति विकास की करिए। अरे भाई, उस आधार पर तो आप सिर्फ मंदिर ही जा रह थे सालों से, आप तो कहीं और जाते ही नहीं।
एक अन्य प्रश्न पर कि इजरायल के प्रधानमंत्री जी हिंदुस्तान आए हैं, क्या कहेंगे, डॉ. सिंघवी ने कहा कि मैं इसे भी राजनीतिक मुद्दा नहीं समझता। हमारे यहाँ कोई अतिथि आया है, देश ने उसको निमंत्रित किया है, उसको आदर और सत्कार के साथ हमें एक औपचारिक कार्यक्रम के अनुसार चलना चाहिए। दूसरा, हमारा रिश्ता और संबंध किसी देश A के साथ, इस केस में आप इजरायल मान लिजिए, कोई और भी देश होता, वो कभी भी किसी और देश की कीमत पर नहीं होता है। इसका मतलब ये नहीं कि मैंने आपको बुलाया, इनको लात मार दी। इनको बुलाया, इनका अपमान कर दिया। ये अजिबो-गरीब बातें बनाई जा रही हैं, जान-बूझ कर। हमारी विदेश नीति 70 साल पुरानी है, ना कल बनी, ना परसों बनी। उसका आधार नेहरुवादी सिद्धांत हैं, जो अलग-अलग देशों को अपने स्तर और अपने मैरिट पर रखते हैं और किसी एक को दूसरे की कीमत और कसौटी पर निर्णित और जज नहीं करते हैं। इसलिए हम एक औपचारिक विजिट पर उतना ही सम्मान दिखाते हैं, दिखाना चाहिए, जिसमें किसी और व्यक्ति और किसी और देश के लिए दिखाएँगे।