5-September-2018 कांग्रेस मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन संबोधित करते हुए |

ALL INDIA CONGRESS COMMITTEE

24, AKBAR ROAD, NEW DELHI

COMMUNICATION DEPARTMENT

श्री अभिषेक मनू सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि पहली बात तो मित्रों मैं संक्षेप में राफेल की बात आपसे करुंगा। जो पुराने आयाम हैं वो सब मैं वापस दोहराऊँगा नहीं, आप हमारे सब आयाम जानते हैं। और आप मानकर चलिए उन सबको मैंने दोहरा दिया है, दोहरा रहा हूँ, और उसकी पृष्ठभूमि आपके समक्ष है बार-बार इस पोडियम से बता चुके हैं। अब मैं राफेल में एक बड़ा दिलचस्प, नया, एक और बिंदू उसमें जोड़ रहा हूँ। आपको मालूम है, कितनी बार आपके समक्ष अलग-अलग प्लेटफॉर्म से बोला गया कि ये सरकार टू सरकार कॉन्ट्रैक्ट है। Government to Government तो करीब-करीब सुनकर आपके कान पक गए होंगे और इस पर कोई बीच का व्यक्ति नहीं है। ये भी बोला गया आपको और इसलिए ये डील उन सब डीलों से बेहतर है, जिसमे सरकार टू सरकार नहीं होता जिसमें बीच के लोग या डीलर्स था कॉन्ट्रैक्ट मेकर्स होते हैं। सरकार ने कई बार, दसों बार यह बात बोली है।

दूसरी बात जो बोली गई प्रधानमंत्री से लेकर, वित्त मंत्री से लेकर, रक्षामंत्री से लेकर सभी मंत्रीयों ने की ऑफसेट का मामला उस विदेशी कंपनी और भारतीय कंपनी के बीच की बात है हमसे कोई मतलब नहीं है याद है आपको ये सब। अब ये आता है सामने कि एक दूसरे कॉन्ट्रैक्ट में जिसका जिक्र हम इस वक्त नहीं कर रहे हैं, जिसकी निंदा हम इस वक्त नहीं कर रहे हैं, जिसके बारे में ये प्रेस कांफ्रेस नहीं है उसको आप कह लें एके-103 असौल्ट राईफ्लस का कॉन्ट्रैक्ट। एके-103 असौल्ट राईफ्लस, उसमें अभी हाल में कुछ हफ्तों की बात है, भारत सरकार और रक्षा मंत्री से बड़ा स्पष्ट रुप में रुस ने जब मांग की एक भारतीय कंपनी पार्टनर की तो सरकार ने कहा कि नहीं ये सरकार टू सरकार कान्ट्रैक्ट है एके-103 वाला और चूंकि सरकार टू सरकार कॉन्ट्रैक्ट है इसीलिए आपको ऑफसेट सिर्फ भारतीय पब्लिक सेक्टर कंपनी या भारत सरकार को देना पड़ेगा और इस केस मे कहा कि भारतीय ऑर्डिनेन्स फैक्ट्री जो है ओएफबी उसी को दे सकते हैं। तो आप समझ गए मैं क्या कह रहा हूँ। इसका मतलब है कि एके-103 में रुस को मना किया गया कुछ हफ्तों पहले कि आप सिर्फ ऑफसेट का हिस्सा भारत के पब्लिक सेक्टर सरकारी या सरकार के एक अंग को दे सकते हैं क्यों कारण क्या है उसका? क्योंकि ये सरकार टू सरकार कॉन्ट्रैक्ट है। अगर ये सरकार टू सरकार नहीं होता, ये भी कहा गया है उस एके-103 के विषय में, तो अगर ये प्राईवेट बिडिंग के थ्रू होता तो शायद आप किसी निजी कंपनी को भारतीय कंपनी को दे सकते थे। तो मित्रों, मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि ये अलग-अलग जो मापदंड हैं, ये कहाँ से आ गए? राफेल में तो सरकार टू सरकार कॉन्ट्रैक्ट था जिसको सुनकर हमारे कान पक गए लेकिन राफेल में किसी भारतीय प्राईवेट कंपनी-निजी कंपनी को क्यों अलाउड किया गया? ये द्वितीय अलग-अलग दोहरे,Discriminatory मापदंड कहाँ से आ गए? दूसरा प्रश्न, इससे साफ जाहिर है, जहाँ सरकार टू सरकार कॉन्ट्रैक्ट होता है वहाँ पर हस्तक्षेप सरकार का होता है क्योंकि अभी मामला एके-103 में हस्तक्षेप का ही था तो आप राफेल पर कैसे कह रहे हैं कि हमको कुछ पता ही नहीं है। हम तो उस प्रकार के सुप्त और लुप्त व्यक्ति हैं जो सो रहे थे ये तो सीधा उस विदेशी कंपनी ने भारतीय कंपनी को दे दिया। तो ये दो बिंदू का हम उत्तर चाहते हैं। आपके जरिए, आपके थ्रू। इन दो बिंदूओं में हम सही जवाबदेही चाहते हैं। हम ये जानना चाहते हैं कि राफेल डील और एके-103 डील में इन दो बिंदुओं में क्या फर्क है? कि सरकार टू सरकार कॉन्ट्रैक्ट था दोनों में। एक में प्राईवेट भारतीय कंपनी के लिए रुस ने रिक्वेस्ट किया, उसको मना कर दिया। दूसरा सरकार का पूरा हस्तक्षेप एके-103 में ऑफसेट के विषय में और दूसरे राफेल में कोई हस्तक्षेप नहीं है। इन दो प्रश्नों का उत्तर हमें सन्नाटा मिल रहा है और न हम अपेक्षा करते हैं कि उत्तर मिलेगा।

मित्रों दूसरा बिंदू है, किस प्रकार से भारत के महान महाराणा प्रताप को अपमानित करना, उनके नाम से मेवाड़ के कोष नायक भामाशाह का अपमान करना, उन नामों पर राजनैतिक रोटियाँ पकाना, और सरकारी खजाने से, सरकारी खजानों को वोटों के लिए लुटाना, हमारे सभी सिद्धांतो, हमारे सभी संवैधानिक ढांचों हमारे सभी चुनावी नियमों का उल्लंघन करना बेशर्मी के साथ। इस सबकी अगर आपको पीएचडी चाहिए तो मेरे प्रदेश राजस्थान पर आइए। अब राजस्थान में क्या हुआमित्रों ये बड़ा सीरीयस है और अगर पहले प्रश्न पूछ लूँ फिर बताऊँगा मेरे प्रश्न से ही आपको उत्तर मिल जाएगा। कृपया राजस्थान के शासक इस देश को बताएँ कि पिछले 56 महीनों में ये इतना बड़ा जबरदस्त आईडिया नहीं आया आपको कि एप्स जिसके अंदर आपकी 54 सर्विसेज हैं उन 54 सर्विस वाले एप को आप वितरित करेंगे मोबाईल फोन के जरिए। ये गुप्त व्यक्तिहमारे इतिहास में एक व्यक्ति 6 महीने के लिए सोया था, ये तो 56 महीने से सो रहे थे। Even चुनाव के Model Code of Conduct के 3-4 हफ्ते पहले याद आया ये कि हमको वो एप जो है 54 उसको वितरित करना है कैसेआपको मुफ्त मोबाईल फोन देंगे। देखिए न हम एप के विरुद्ध है, न हम सामाजिक कल्याण के विरुद्ध हैं, न हम मोबाईल फोन के विरुद्ध हैं। अभी तो हम ये चीज पूछ रहे हैं आपसे कि ये आपको जबरदस्त सरकारी आईडिया चुनाव के ठीक पहले कैसे आया5 साल होने के कुछ समय पहले तक याद नहीं आया।

 नम्बर 2, क्या इसको सामूहिक भ्रष्टाचार नहीं कह सकते। हमारी ये आवाम, हमारी जनता जनार्दन इतनी  मूर्ख नहीं है। न ये घास खाती है न इस प्रकार के सस्ते हथकंडों में आती है लेकिन आपका प्रयत्न तो भरसक है कि अगर collective bribery का कोई offence होता है और जहाँ एक व्यक्ति के भ्रष्टाचार का एक criminal फौजदारी offence है तो लाखों लोगों को प्रयत्नशील होकर भ्रष्टाचार में, घूस में लिप्त करना बिल्कुल निश्चित रुप से एक criminal offence ही होगा।

 नम्बर तीन, मुझे नहीं लगता कि चार हफ्ते से छः हफ्ते से अधिक बचे हैं एमसीसी में, मॉडल कोड आचार संहिता के चार-छः हफ्ते पहले आप ऐसी चीज ला रहे हैं तो क्या ये हमारे गौरवशाली गणतंत्र को आप अपमानित नहीं कर रहे हैं, ये सस्ते हथकंडे नहीं कर रहे हैं आप, सिर्फ इसीलिए कि आप desperate हैं जीतने के लिए जहाँ सामने दीवार पर आपकी हार लिखी है, सर्वविदित है, कि आप हार रहे हैं राजस्थान में तो इस प्रकार के desperation वाले हथकंडे करना।

 नम्बर चार, क्या इसके अंतर्गत आप सरकारी रुपए को निजी रुपया समझ रहे हैंसरकारी खजाने, सरकारी भामाशाह को लुटा रहे हैं बिना शर्म के। और नम्बर पाँच, क्या आपने जो संविधान का मूल सिद्धांत है, कि सरकार और सत्तारुढ़ पार्टी में फर्क होता है। हमारे संविधान में सरकार एक अलग चीज है, एक संवैधानिक चीज है और सत्तारुढ पार्टी जो सरकार चलाती है वो बिल्कुल अलग चीज है। क्या आपने इस संवैधानिक फर्क को मिटा नहीं दियाऔर सब किसलिए, एक निश्चित हार को प्रयत्न किया आपने कि आप बदलेंगे जीत में, क्योंकि आप समझते हैं कि आवाम मूर्ख है। तो मित्रों, न महाराणा प्रताप के उस प्रदेश के सभी लोग होने देंगे, न भामाशाह जैसे कोषाध्यक्ष के subjects होने देंगे, न राजस्थान की पुरानी संस्कृति और विरासत होने देगी, लेकिन जहाँ तक आपका सवाल है, आपने पूरी तरह से अपना वास्तविक चाल, चरित्र और चेहरा दिखा दिया है।

एक प्रश्न पर कि हाईकोर्ट ने राजस्थान गौरव यात्रा में सरकारी कार्यक्रम करने पर रोक लगा दी है के उत्तर में श्री अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि देखिए मैं यही बात कर रहा हूँ कि गौरव यात्रा बहुत छोटी लग रही है। यही तो होता है जब आपने शुरुआत की, टैस्ट करने के लिए एक सैम्पल लिया भ्रष्टाचार से, जिसमें आपने सरकारी पैसे और खुद के पैसे का कोई फर्क नहीं किया। जब उसमें जागरुक जनता और न्यायपालिका ने हस्तक्षेप किया तो आपने उसका हल कैसा निकाला कि उससे भी बड़ा घपला करेंगे हम, अब हम सामूहिक रुप से भ्रष्टाचार का प्रयत्न तो करेंगे कम से कम। हर कितनी फैमिलीज हैं मैं भूल रहा हूँ शायद 1-2 करोड़ फैमिलीज के लिए मोबाईल फोन देंगे। जोकि 56 महीने तक आपको याद नहीं आया तो ये बात तो जिसे कहते हैं ढीटपन। इतने ढीट हो आप कि गलती करते हो और गलती को सुधारने के लिए उससे दस गुना बड़ी गलती करते हो।

अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री सिंघवी ने कहा देखिए अगर आपकी सरकार बदले और सरकार के जो 56 या 54 और एप्लिकेशन्ज हैं जिनको एप्स कहते हैं आप वो लगभग सरकार बनने के एक-दो साल में बन गए थे और उस वक्त आप अगर सही रुप से वितरित करें एक particular eligible category को वो और उसके साथ तुलनात्मक रुप से देखिए की 56 महीने निकलने के बाद आचार संहिता के 4-6-8 हफ्ते पहले करें, तो क्या घास खा रहे हैं हम लोग सब यहाँ पर, फर्क नहीं लगता आपको दोनों के बीच में। ये मोबाईल वाली बात नहीं है। इसकी टाईमिंग कब है इसका प्रयोजन क्या है?, इसका उद्देश्य क्या है? इसका मंतव्य क्या है? इसका संदर्भ क्या है? इसकी बात हो रही है।

एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री सिंघवी ने कहा कि देखिए हमारे पास सिर्फ एक नहीं कई विकल्प हैं। और हम सभी विकल्पों को सामूहिक रुप से इस्तेमाल करने का अधिकार क्षेत्र रखते हैं आपने बिल्कुल सही फरमाया। एक तो है चुनाव आयोग दूसरा है मैने एक फ्रेज यूज किया है सामूहिक भ्रष्टाचार। वो फौजदारी ऑफैन्स होता है। हम क्या करेंगे मैं उस पर कमेंट नहीं कर रहा लेकिन ये सभी अधिकार क्षेत्र में पड़ते हैं लेकिन इन दोनों से आगे जो महत्वपूर्ण चीज है वो है आप। आपका मतलब है जनता जनार्दन को जागरुक करना कि ये हो क्या रहा है आपके साथ? सबसे बड़ा न्यायपालिका वही है, सबसे बड़ा निर्णय वहीं से आने वाला है, और वो तीनों चीज करने का अधिकार क्षेत्र पूरी तरह से हम रखते हैं और कैसे अब होगा अगले हफ्तों में देखेंगे।

भाजपा नेता श्री तरुण विजय द्वारा श्री राहुल गांधी की मानसरोवर यात्रा को लेकर किए गए कई ट्वीट से संबंधित एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री सिंघवी ने कहा  कि देखिए पहली बात ये प्रश्न आपको उनसे पूछना चाहिए या बीजेपी के यंत्र-तंत्र सोशल मीडिया वाले जिनको हैक करने की बात कही, उनसे पूछना चाहिए, उनमें खामियां होंगी जरूर। लेकिन दूसरी बात सबसे महत्वपूर्ण है, आज भारत की अस्मिता को, उसके धर्मों को insult कौन कर रहा है? इस प्रकार के ट्वीट कर करके। ये अपने आप पूछ लीजिए आप और क्या ये सबसे अच्छा प्रमाण नहीं है, श्री राहुल गांधी के हर कदम से घबराहट नहीं आतंक फैल जाता है बीजेपी में। अरे श्री राहुल गांधी ने छींक लगा दी, तो उनके रिएक्शन आते हैं। श्री राहुल गांधी एक धार्मिक पवित्र प्रयोजन के लिए गए हैं, तो उनके रिएक्शन आते हैं, तो निश्चित रुप से जो आप कह रहे हैं उसकी मैं पुष्टि करुँगा, कि भय नहीं है, डर नहीं है, आतंक है, और वो जानते हैं कि सही नागरिक इस देश का किसी भी धर्म का हो और सही हिंदू इस देश का, उसकी अस्मिता उसकी आत्मा उसके स्वरुप को समझता है, और वो जानता है, कि कौन उसको विकृत कर रहा है, और श्री राहुल गांधी का कैसा व्यक्तित्व है उस धर्म के विषय में।

अन्य प्रश्न पर कि एससी-एसटी एक्ट के विरोध में सवर्ण समाज व उसके संगठनों ने प्रदर्शन किया के उत्तर में श्री सिंघवी ने कहा कि ये जो प्रश्न आपने पूछा सवर्ण समाज के विषय में कांग्रेस का स्टैंड इस पर बड़ा स्पष्ट है और उस प्रश्न पर भी। समाज के हर वर्ग को हम मानते हैं कि शांतिपूर्वक तरीके से अपनी बात कहने, अपना पक्ष रखने का पूर्ण अधिकार है। अगर इस देश में कोई लचर अर्थव्यवस्था है, डूबता रुपया है, भयंकर बेरोजगारी है, दोषपूर्ण जीएसटी है, लघु और मध्यम उद्योग एमएसएमई पर जबरदस्त मार पड़ रही है, भ्रष्टाचारी घोटाले हैं, राफेल उनमें से एक है इत्यादी इत्यादी। अगर ये अहंकारी मोदी सरकार की तरफ कोई भी समाज, और सवर्ण समाज निश्चित रुप से उनमें से एक समाज है में बहुत बेचैनी, चिंता और आक्रोश है तो इसका जिम्मेवार कौन है इसका जिम्मेवार सरकार है। आज ये जिम्मेवारी सीधी भाजपा सरकार की नहीं माननीय प्रधानमंत्री जी की है जिन्होंने सबका साथ सबका विकास जैसी शब्दावली को इतना विकृत कर दिया है कि वो हास्यास्पद जुमला लगता है और उसके वाद ये सभी वर्गों की बात नहीं सुनेंगे और उन सभी वर्गों में चाहै सवर्ण समाज हो, उन सभी वर्गों में चाहे दलित भाई-बहिन हो, उन सभी वर्गों में अगर पिछड़े वर्ग हो इन सभी के मूलतः मुद्दे वही हैं। मुद्दे कौन से हैं, भयंकर बेरोजगारी, गरीबी, उपेक्षा, राजनीतिक भेदभाव की, जो आपस मे विभाजन हो रहा है सोच का, तो मैं समझता हूँ ये मुद्दे ऐसें हैं जो जनता के हर पक्ष को और वर्ग को छूते हैं, और निश्चित रुप से उनको उठाने का अधिकार क्षेत्र है।

Sd/-

(Vineet Punia)

Secretary

Communication Deptt.

AICC

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