ALL INDIA CONGRESS COMMITTEE
24, AKBAR ROAD, NEW DELHI
COMMUNICATION DEPARTMENT
Dr. Abhishek Manu Singhvi, MP and Spokesperson, AICC and Shri Shaktisinh Gohil, Spokesperson, AICC addressed the media today at AICC Hdqrs.
डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि ये एक गंभीर मुद्दा है, एक प्रकार से हम जो मुद्दा उठा रहे हैं वो एक उदाहरण है, जिसकी व्यापकता ज्यादा है। अखिल भारतीय स्तर पर व्यापकता ज्यादा है और एक प्रकार से ये न्यायिक संदेश में है। न्यायपालिका का संदेश है, हर अफसर को, रिटर्निंग ऑफिसर को, हर ऑब्जर्वर को, उनके लिए संदेश भी है और सबक भी है। मैं आपको इसके कुछ तथ्य दे दूं और उसके बाद इसकी व्यापकता का जिक्र करुंगा। एक निर्णय कल आया है, उच्च न्यायालय गुजरात का, वहाँ के न्यायाधीश का, वहाँ के कोर्ट का, उससे ये सीधा मालूम पड़ा है कि किस प्रकार से वरिष्ठ कर्मचारी सरकार के, गुजरात काडर के और सेंटर के आईएएस, किस प्रकार से चुनाव के लिए जो समतल जमीन होनी अति आवश्यक है, लेवल प्लेयिंग फील्ड, उसको विकृत कर सकते हैं, कर रहे हैं। जैसा आप जानते हैं ये मुद्दा विशेष रुप से सिद्धांत के रुप से, ये कोई ए और बी की बात नहीं है, इस केस की बात नहीं है, सिद्धांत रुप से ये अगर आप समतल जमीन नहीं रहने देते, चुनाव के वक्त, तो सीधा उसका दुष्प्रभाव पड़ता है, स्वतंत्र, निष्पक्ष चुनाव पर और स्वंतत्र, निष्पक्ष वोटिंग पर। स्वतंत्र निष्पक्ष चुनाव पर जो दुष्प्रभाव होता है, वो हमारे कोर्ट कचहरियों ने दशकों से ये कहा है कि भारत के संविधान के मूल ढांचे पर दुष्प्रभाव है। It violates the basic structure of the Indian Constitution if you create a non-level playing field for electoral battle.
इस केस में जो कल निर्णित हुआ, ढोलका एसेंबली के विषय में है, जिसका चुनाव जैसा आप जानते हैं दिसंबर, 2017 में हुआ था और इसमें जो विजयी घोषित किए गए थे, वो चुदासमा साहब थे, जो उस वक्त राजस्व के मंत्री थे और आज कानून के मंत्री हैं। उनके चुनाव के विरुद्ध, चुनाव याचिका चल रही है, लेकिन अभी अंतिम निर्णय नहीं आया है, लेकिन जिस संदेश और सबक की मैं बात कर रहा हूं, उसके अंतर्गत एक आंतरिक ऑर्डर कल 2 अप्रैल को आया है, अत्यंत महत्वपूर्ण आंतरिक ऑर्डर है, जिसके अंतर्गत दो वरिष्ठ सरकारी अफसरों को और चुनाव आयोग को इस आदेश द्वारा उच्च न्यायालय ने पार्टी बनाया है, इस चुनाव याचिका में। वो हैं श्री जानी जो रिटर्निंग ऑफिसर हैं और श्रीमती विनीता बोहरा, जो इस चुनाव में ऑब्जर्वर थीं, 2017 में। इसलिए बनाया पार्टी, जो बहुत कम किया जाता है, अपवाद होता है, रेयरली (rarely) किया जाता है, क्योंकि 5-6 मुद्दे उच्च न्यायालय ने अंकित किए हैं, जो पूरे देश में हर रिटर्निंग ऑफिसर के लिए, हर ऑब्जर्वर के लिए चुनाव आयोग की हर प्रक्रिया के लिए एक संदेश भी है और सबक भी। इसलिए कि चुदासमा साहब जीते थे 327 वोट से और जो पोस्टल बैलेट लगाए गए थे, वो खुद पोस्टल बैलेट 514 थे यानि जो मार्जन से ज्यादा पड़े थे और लगभग 429 पोस्टल बैलेट रिजेक्ट हुए थे। Rejection of postal Ballets were higher than the margin of victory. ये बाते अंकित करते हुए उच्च न्यायालय ने 5 या 6 मुद्दों को अंकित किया है, जो मैं आपके समक्ष संक्षेप में रख रहा हूं।
पहला, जब पोस्टल बैलेट की संख्या, रिजेक्शन की संख्या या पोस्टल बैलेट की संख्या मार्जन से ज्यादा होती है, जो कि इस केस में थी, क्योंकि मार्जन था 327, रिजेक्शन था 439 और टोटल बैलेट थे 514, तो अनिवार्य है, बिना किसी के मांग किए, ऑटोमेटेक्ली कि रिवेरिफिकेशन हो, रिवेरिफिकेशन ऑटोमेटिक अनिवार्य है, अनुच्छेद या नियम 15.15.5.1 के अंदर। अब इस याचिका की सुनवाई के दौरान रिटर्निंग ऑफिसर को बुलवाया गया, उनसे पूछा कि आपने ये नियमावली देखी है, उन्होंने कहा हां, देखी, इसमें ऐसा लिखा है, हाँ लिखा है, क्या आपको इसमें बिना किसी के मांगे, इस केस में मांगना चाहिए था, इस केस के अनुसार, कहा, हाँ मांगना चाहिए था। हमने कहा कि रिवेरिफिकेशन किया आपने, कहा नहीं किया। ये खुद रिटर्निंग ऑफिसर ने माना है, ये पहला मुद्दा है।
दूसरा नियम है, जिसके अंदर ऑटोमेटिक रिकाउंटिंग होती है, बिना मांगे, क्योंकि इतना कम मार्जन है और पोस्टल वोट ज्यादा हैं। तो ये भी माना, ये एडमिशन है, ये जजमेंट की प्रतिलिपि मेरे सहयोगी आपको भेज देंगे, उसमें सवाल 278 और 279 में लिखा है, माना है कि ये हमने ना ऑटोमेटिक रिवेरिफिकेशन किया, ना रिकांउटिंग की, तो ये दो मुद्दे रिकोर्ड किए हैं, कोट किए हैं उच्च न्यायालय ने। ये रिटर्निंग ऑफिसर कह रहा है।
तीसरा मुद्दा पूछा उनसे कि चूंकि ऐसे संदर्भ में जहाँ मार्जन बहुत कम होता है और पोस्टल वोट बहुत ज्यादा है, तो जब आप EVM की काउंटिंग के लास्ट लेवल पर पहुंचते हैं, उसके एक राउंड पहले आपको रुकना चाहिए जब तक कि पोस्टल बैलेट रिकाउंट ना हो जाएं, ये एक नियम है। तीसरा नियम है, पूछा क्या किया आपने? उसने कहा नहीं किया मैंने। यानि EVM पहले काउंटिंग करते रहे, पोस्टल बैलेट की रिकाउंटिग और रिवेरिफिकेशन से पहले।
चौथा मुद्दा, एक और नियम पढ़ा, मैं नियम से नंबर नहीं दूंगा, इस आदेश में प्रकाशित है कि मोबाईल फोन अंदर कोई व्यक्ति नहीं ले जा सकता, गणना के समय सिवाए एक व्यक्ति के, ऑब्जर्वर को अलाउड है। जो प्रश्न पूछते हैं इस न्यायालय के निर्णय में कि क्या ये वीडियो देखी आपने, बड़ा मजाकिया संदर्भ है,
वीडियो में कौन दिख रहा है?, तो रिटर्निंग ऑफिसर जवाब देते हैं, मैं खुद हूं, क्या कर रहे हैं आप? कहते हैं मैं फोन पर बात कर रहा हूं। ये इस नियम के अनुसार हैं, नहीं, ये इस नियम के अनुसार नहीं है। तो इसका उल्लंघन किया? चौथा जो उल्लंघन है यूज ऑफ मोबाईल।
पांचवा, आपने घोषणा कर दी जब पोस्टल बैलेट की, उससे पहले आपको फोर्म 20 पर लिखना पड़ता है कि पोस्टल बैलेट कितने हैं, कितने गलत हैं, कितने सही हैं, क्या आपने पहले लिखा? फोर्म 20 कहते हैं, भरा पहले, घोषणा पहले कर दी? उसने कहा हाँ, मैंने घोषणा पहले कर दी। तो इन पांच मुद्दों पर रिटर्निंग ऑफिसर के एडमिशन, स्वीकारिता रिकोर्ड की है, उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में।
छठा और आखिरी मुद्दा, उन्होंने ये भी रिकोर्ड किया है कि कानून और नियम के अंदर ऑब्जर्वर क्यों भेजा जाता है, उसका एक उद्देश्य होता है, विनीता बोहरा इसमें हैं, तो उनका काम होता है कि वो बैठ कर सर्टिफाई करें कि मेरे अनुसार मैंने सबकुछ देखा, निरीक्षण, परिक्षण किया और मेरे अनुसार सबकुछ नियम के अनुसार है और संतुलित है, फेयर है, निष्पक्ष है। ये सर्टिफिकेशन आपने कैसे कर दिया, इसलिए उनको भी पार्टी बनाया गया है, रिटर्निंग ऑफिसर को भी और उनको भी, अंत में चुनाव आयोग को भी पार्टी बनाया गया है ताकि भविष्य में ये दोबारा ना हो, उसके लिए क्या करेक्टिव या क्या प्रिवेंट करने के लिए भविष्य में measure (कदम) लिए जाएं, उसके लिए चुनाव आयोग भी रहें, तो बेहतर होगा।
मैं अपनी बात का अंत करुंगा ये कहकर कि ये सिर्फ इस केस की बात नहीं है, मैं वापस दोहरा रहा हूं, ये अत्यंत महत्वपूर्ण अखिल भारतीय संदेश है, विशेष रुप से अगले 5 या 6 हफ्तों के लिए। हर ऑफिसर को संदेश है, हर रिटर्निंग ऑफिसर, हर ऑब्जर्वर, हर उस कार्यकारी व्यक्ति को जो चुनाव आयोग के लिए काम करता है कि आप बिना द्वेष के, बिना पक्षपात के, बिना झुकाव के, बिना भेदभाव के, बिना भय, बिना डरे किसी से अपना काम करें। ये बहुत जरुरी है। इस बात पर मत सोचिए कि सत्तारुढ कौन है, सत्तारुढ कौन नहीं है, कौन हमारे पर कृपादृष्टि रखेगा, कौन नहीं रखेगा, क्योंकि एक दृष्टि रखी हुई है आपके ऊपर हमेशा उच्च न्यायालय ने और उसके ऊपर उच्चतम न्यायालय ने, चुनाव आयोग के साथ-साथ ये दृष्टि आपके ऊपर है, तो ये सबके लिए संदेश भी है, सबक भी है, चेतावनी भी है कि आप कृपा करके जो भारत की सबसे ज्यादा मूल्यवान मूल ढांचा है हमारे संविधान का, उसको विकृत ना होने दें, जबतक उस समतलता को आप सुरक्षित नहीं रखेंगे, तब तक हमारे लोकतंत्र, गणतंत्र का ढांचा हिल जाएगा, ढुल जाएगा।
श्री शक्ति सिंह गोहिल ने कहा कि सिंघवी साहब ने वैसे पूरी बात आपके सामने रखी है, लोकतंत्र में आखिर जनता तय करती है कौन जीतेगा, कौन हारेगा। चुनाव आयोग जो भी अफसर को जिम्मेदारी देते हैं, वो अफसर ना इसका, ना उसका, न्यायिक तौर पर उसे काम करना होता है, ये सामान्यत होता आया है।
मोदी जी जनता के भरोसे चुनाव नहीं, अफसरों के भरोसे वो चुनाव कैसे जीतते हैं, उसका सीधा सबूत, जीता-जागता नमूना आपके सामने पेश हो रहा है। गुजरात हाईकोर्ट एक इलेक्शन पेटिशन सुन रहा है, इस इलेक्शन पेटिशन में जिसको जीता हुआ डिक्लेयर किया है, वो चुनाव लड़ रहे थे, तब कैबिनेट मिनिस्टर थे, फॉर रिवेन्यू, भूपेन्द्र सिंह चुदासमा। उसका फासला बहुत नेरो-नेरो होता जा रहा था, सेंटल इलेक्शन कमीशन को कानूनन क्या करना है, क्या नहीं करना है, उसकी हैंडबुक सभी को दी जाती है कि ऐसा ही करना होगा। उसके सारे कानून 14 जगह पर कानून को उल्टा किया, क्योंकि भाजपा के प्रत्याशी को जिताना था। 327 वोट से बीजेपी के प्रत्याशी को जीता हुआ डिक्लेयर कर दिया। आजतक आपने पूरे देश में ऐसा कहीं नहीं सुना होगा कि 1356 पोस्टल बैलेट आए थे, बैलेट माने उसी ऐसेंबली में रहने वाला इंसान, अगर उसकी ड्य़ूटी चुनाव में कहीं लगी है तो खुद वोट देने नहीं आएगा, इसलिए उसको बैलेट मिलता है, उस बैलेट में वो जिसको भी वोट देना चाहता है, उसको वोट देता है, वो एनवलप पैक होता है, वो बैलेट होता है। ऐसे 1356 वोट थे, सारे गवर्मेंट इम्पलोई हैं, पूरे देश में आपने ऐसा कहीं नहीं सुना होगा कि सरकारी इम्पलोई वोट करे और 1356 में से 429 रिजेक्ट हो गए। 327 से बीजेपी का उम्मीदवार जीतता है और रिटर्निंग ऑफिसर 329 रिजेक्ट कर देता है।
कानून का प्रावधान है कि जब जीत और हार का फासला कोई भी उम्मीदवार हारे और जीते हुए का फासला कुल बैलेट जो आया है, उससे कम हो तो किसी को पूछे बिना, दो चीजें करनी हैं – कोई मांगे या ना मांगे रिकाउंटिग करनी है, पहला। दूसरा, रिवेरिफिकेशन, मतलब अगर ये बीजेपी को वोट दिया है तो दिखाओ कि सही है और काउंटिंग किसमें कितना बैलेट है, ये जरुरी है, नियम है। इस नियम को पूरी तरह से तोड़ दिया गया है क्योंकि अगर रिकाउंटिग होता, रिवेरिफिकेशन होता तो 429 वोट जिंदा हो जाते, जो कांग्रेस को मिले थे, बीजेपी वाला 327 से जीता, वो हार जाता। आज तक जितनी देश में इलेक्शन पेटिशन हुई उसमें, जो ऑफिसर होते हैं, वो विटनेस होते हैं। हारने वाला पेटिशन लगाता है, जीतने वाले सामने वाले होते हैं, रिस्पोंडेट। ऑफिसर कभी रिस्पोंडेट नहीं होता है, सेंट्रल इलेक्शन कमीशन कभी रिस्पोंडेट नहीं होता है, वो विटनेस होता है, रेयर और रेयर केस, पूरे देश के इतिहास में।
कोर्ट ने सारी चीजें लिखने के बाद लिखा कि- very serious glaring, कि मेरे पास कोई चारा नहीं है, करप्ट प्रेक्टिस में जरुरी है कि रिस्पोंडेट बनाऊँ, सामने वाला बनाऊं और उसको सामने वाला बनाते, किसको- एक रिटर्निंग ऑफिसर हैं- श्री जानी, सेंट्रल इलेक्शन कमीशन एक आईएएस ऑफिसर को भेजते हैं कि आपको देखना है कि सब ठीक हो रहा है और सर्टिफिकेट दो, फिर चुनाव की घोषणा होती है, वो राजस्थान कैडर की विनीता बोहरा, आईएएस ऑफिसर हैं, वो आई थी वहाँ पर, जिसने सर्टिफिकेट दिया है, उसको रिस्पोंडेट बनाया और सेंट्रल इलेक्शन कमीशन को रिस्पोंडेट बनाया, क्योंकि घपला गंभीर है। पहले रिटर्निंग ऑफिसर को विटनेस बोक्स में कोर्ट ने बुलाया। मेरी आप सबसे गुजारिश है कि थोड़ा आपको पढ़ने में लंबा लगेगा पर एक इंवेस्टीगेटिव जर्नलिज्म का मजा होता है, मैंने लॉ भी किया है और पत्रकारिता का डिप्लोमा कोर्स भी किया है तो हम इसे इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म में मानते हैं। तो आप इसको पढ़िए, पढेंगे तो आगे के पेराग्राफ छोड़ दीजिए, पेज 8 ऑनवर्ड आप पढ़िए, पहले पेज का पेराग्राफ 1 और 2 है, थोड़ा फेक्ट मिलेगा आपको। उसके बाद पेज 8 से आगे पढ़िए, कोर्ट ने विटनेस बोक्स में रिटर्निंग ऑफिसर को पूछा है कि फासला दोनों के बीच का था, वो कितना था, उसने कहा 327, दूसरा सवाल कोर्ट ने पूछा कि कानून सो एंड सो, क्या कहता है – जब फासला पोस्टल बैलेट से कम हो तो रिकाउंटिग और रिवेरिफिकेशन करना चाहिए। कोर्ट ने तीसरा सवाल पूछा कि कानून ये कहता है तो आपने किया रिकाउंटिग, रिवेरिफिकेशन और जानी साहब जवाब देते हैं कि मैंने नहीं किया।
यहाँ तो हमारे उम्मीदवार ने लिख कर मांगा, मांगने की जरुरत नहीं थी, फिर भी मांगा। कोर्ट ने पूछा, मांगा था रिकाउंटिग, कहा मांगा था। फिर भी नहीं दिया, कहा नहीं दिया। आगे हैं, आप सब कभी काउंटिग हॉल में जाते होंगे, आपने देखा होगा, मीडिया के लिए कमरा बनता है, आपके मोबाईल वहाँ रहते हैं, आप बात कर सकते हैं। काउंटिग हॉल के अंदर जैसे ही एंटर हुए, किसी के हाथ में मोबाईल नहीं हो सकता, सिर्फ एक इंसान के हाथ में हो सकता है, वो सेंट्रल इलेक्शन कमीशन का ऑब्जर्वर हो सकता है, उनके पास कोर्ट ने वीडियो दिखाई, शॉट 7 जगह की, अलग-अलग समय की। सामने वाले का आरोप था कि ये मिनिस्टर को पूछते थे कि बापू आप तो हार रहे हैं, क्या करेंगे, तो उन्होंने कहा रास्ता ढूढों। ये वीडिया दिखाते हैं और 7 जगह पर कहते हैं, क्या देख रहे हैं, बोले मैं हूं, मोबाईल पर हूं, बात कर रहा हूं। कानून क्या कहता है – कानून कहता है कि मोबाईल सेंट्रल इलेक्शन कमीशन के ऑब्जर्वर के अलावा कोई भी नहीं ले जा सकता, वो कानून कहता है।
तीसरी बात आती है, कोर्ट पूछता है कि कानून क्या है – बोले, जो भी राउंड होते हैं, एक विधानसभा में 200 से 250 बूथ होते हैं, एक बूथ पर 1,000 से 1,200 वोटर होते हैं, वो जो मशीन आई, उसके 15 टेबल लगते हैं और उन टेबल पर मशीन आती है, बूथों की, सब पर एक-एक बार हुआ, उसका एक राउंड। 15 से 16 राउंड होते हैं, यहाँ पर कानून ये कहता है कि आखिरी दो राउंड खत्म हों, उससे पहले बैलेट का काउंटिंग हो जानी चाहिए, लोजिकल है, क्योंकि फिर कोई गड़बड़ी नहीं हो सकती। कोर्ट पूछती है, जानी साहब को कि इसमें जजमेंट में लिखा है कि ये कानून है, बोले हां। आखिरी दो राउंड से पहले बैलेट की काउंटिंग हो जानी चाहिए, कहाँ हां, हो जानी चाहिए। फिर वीडियो दिखाते हैं, तो वीडियो में दिखता है कि वो काम नहीं किया और कानून का ऊल्टा किया, पहले EVM को खत्म कर दिया कि कितना फासला रहता है और कितने वोट रिजेक्ट करके बीजेपी को जिताना है, वो काम किया, वो भी कोर्ट ने लिखा है।
ऐसी बहुत सारी चीजें हुई हैं। मेरे पत्रकार मित्रों से विनती है कि कुछ लोगों ने मैं देख रहा हूं, ऑनलाइन पर मिरर की एक स्टोरी है, उन्होंने कुछ हद तक इनवेस्टिगेशन जर्नलिज्म किया, मैं चाहता हूं कि आज आप वक्त निकाल कर इस पूरे जजमेंट को जरुर पढ़ें, सिंपल लैंगवेज है, सब समझ सकें, ऐसी भाषा है और इलेक्शन कमीशन की बहुत बड़ी जिम्मेदारी बन जाती है। लोकतंत्र के सामने बहुत बड़ा Question mark आ गया। मैं मानता हूं कि इलेक्शन कमीशन, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की इज्जत बनी रहे, इसके लिए भी इस बात को जो हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया है, उसको गंभीरता से लेंगे। जो दो ऑफिसर को कोर्ट ने पूरी तरह से जिम्मेवार माना है, चुनाव आयोग तुरंत उनको सस्पेंड करे। हैंडबुक फॉर रिटर्निंग ऑफिसर के द्वारा बनाई बुक है, आने वाले चुनाव में हर जगह सख्ती से इसका पालन हो, कोई आईएएस ऑफिसर, कोई रिटर्निंग ऑफिसर गड़बड़ी ना करे, वो चुनाव आयोग सुनिश्चित करे। ये हमारी मांग है।
श्री जानी, सुश्री विनीता बोहरा और चुनाव आयोग से संबंधित एक प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि दो तारीख अप्रेल को, कोर्ट ने बोला है कि अंतत्वोगत्वा कि हमारी ट्राइल चल रही है लेकिन अभी इस आदेश द्वारा हम इन तीन लोगों को पार्टी बना रहे हैं, ज्वाइन कर रहे हैं, श्री जानी, सुश्री विनीता बोहरा और चुनाव आयोग, यानि रेस्पॉंटेंड बना रहे हैं साथ ही साथ ये भी लिखा कि चुनाव आयोग को इसलिए बना रहे हैं कि भविष्य में ऐसी बात दोहराई नही जाए, कभी हो नहीं और बाकी दोनों एक प्रकार से कारण बताओ, क्या एक्शन लिया, क्यों किया, कैसे होना दिया इत्यादि, इत्यादि के लिए हम पार्टी बना रहे हैं।
जैसा कि मेरे दोस्त नेकहा कि ये बायलेटरल प्रोसीडिंग होती है, दो लोगों के बीच में, इसमें अफसरों के साथ बहुत-बहुत कम बार ऐसा होता है अपवाद होता है, जब बनाया जाता है, जबकि बहुत गंभीर मुद्दा होता है कोई ऐसी भ्रष्ट प्रैक्टिस होती है, जिसको भविष्य के लिए भी रोकना अति आवश्यक है तब उच्च न्यायालय द्वारा ऐसी प्रक्रिया की जाती है।
चुनाव के समय मतदान केन्द्र पर सीसीटीवी कैमरे से रिकॉर्डिंग से संबंधित एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि वहाँ पर वीडियोग्राफी का इस निर्णय में भी जिक्र किया गया है। नियम ऑलरेडी है, काउंटिग वैरीफिकेशन, रीकाउंटिंग में वीडियोग्राफी अनिवार्य है लेकिन जहाँ तक आप ज्यादा बड़े मुद्दों की बात कर रहे हैं इसमें संभावना निश्चित है, इसमें हम कोई ऐसी बात नहीं कह रहे हैं जो कि अनहोनी है या हो ही नहीं सकती इसीलिए ये चेतावनी है हम सबको कि इस चुनाव में ऐसा न हो। अभी दो दिन पहले मैंने खुद डेलीगेशन लीड किया है, जहाँ हमने लिखित प्रस्तुति की है, कि झारखंड में चार अफसर जो मुख्य पदों पर है चुनाव के लिए उनमें से तीन के विरुद्ध दफा 302 के चार्जेज है तो हमने कहा कि विडंबना नहीं है इस देश को चुनाव के दौरान फिर वही अफसर मिलेगा लगाने के लिए, नियंत्रण परीक्षण करने के लिए जिसके विरुद्ध 302 के केस हैं, ये बात सही है कि वो प्रमाणित नहीं है, लेकिन 302 के गंभीर अपराध के चार्जेज हैं, और एक अफसर के विषय में हमने लिखकर दिया है, सबकुछ प्रमाण दिए हैं, एक अफसर के विषय मे टेप रिकॉर्डिंग भी है वहाँ की झारखंड की पुलिस की जो बातचीत कैसे कर रहा है तो ये अंततोगत्वा ये बड़े बड़े सिद्धांत है, मानव अधिकार है, चुनाव आयोग है, समतल जमीन है, लेवल प्लेइंग फील्ड है, लोकतंत्र, गणतंत्र हैं, ये बड़ी चीजें, छोटी चीजों पर निर्भर करती हैं, और वो छोटी चीजें हैं वहाँ पर जो लास्ट मैन ऑन दा स्पॉट है जो जमीनी सच को देख रहा है वो मजबूत होना चाहिए तो दो बात हैं इस निर्णय में, एक तो ये है जैसा कि मेरे मित्र ने कहा कि आप ये न समझें कि गड़बड़ियाँ निकलती जाएंगी, ये न समझें कि पक्षपात छुपे रहेंगे, ये न समझें कि द्वेश की भावना से या झुकाव से आपको कोई सुरक्षित कर लेगा बाद में, क्योंकि जो आपकी सुरक्षा करने वाले लोग हैं, उनके ऊपर उच्च न्यायालय है, उच्च न्यायालय के ऊपर उच्चतम न्यायालय है। तो ये उदाहरण है, महत्वपूर्ण उदाहरण है लेकिन एक प्रकार से ये एक एग्जाम्पल है, पूरे देश के लिए हर पार्लियामेंटरी क्षेत्र के लिए और अधिकारियों के लिए।