My AICC Press Brief dated October 13, 2017 In Hindi

डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि गुजरात में भाजपा की डूबती नाव को चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था का सहारा लेना पड़ रहा है, ये अपने आप में बहुत दयनीय स्थिति है। आज आप ही लोगों ने पढ़ा है कि सरकार के दाव-पेंचों ने एक संवैधानिक चुनाव आयोग को जिसको हम इलेक्शन कमीशन कहते हैं, उसका नाम बदलकर लोग इलेक्शन ओमिशन कर रहे हैं और पुराने जितने कानून हैं, नियम हैं, संस्कार हैं, जितने रीति-रिवाज हैं इस विषय में, उनका उल्लंघन किया जा रहा है, सिर्फ भाजपा की अपनी सस्ती राजनैतिक उद्देश्यों के कारण।

इस प्रकार से जो कभी नहीं हुआ आज तक, वो आखिरी समय पर सरकार द्वारा, प्रधानमंत्री द्वारा, सत्तारुढ़ पार्टी के अध्यक्ष द्वारा, गैर-कानूनी असंवैधानिक दुष्प्रभाव चुनाव आयोग पर ड़ाल कर दो ऐसे प्रदेशों के चुनाव जो करीब-करीब एकसाथ जिनकी ऐसेबंलियों की समयसीमा खत्म हो रही है। उनका अलग-अलग समय पर इतने विलंब के साथ चुनाव की घोषणा करना, मैं समझता हूं कि इसमें बहुत बडे मुद्दे, व्यापक मुद्दे उठते हैं, जिनसे मैं आपको अवगत करवाना चाहता हूं।

संक्षेप में, इसमें एक मुद्दा उठता है, जो मूल मुद्दा है, मैं आपको याद दिलाऊँ, 1975 में उच्चत्तम न्यायालय की एक संवैधानिक खंडपीठ ने कहा था कि इस देश में स्वतंत्र, स्वच्छ चुनाव लोकतंत्र की नींव है और लोकतंत्र संविधान की नींव है और चूंकी स्वतंत्र, निष्पक्ष चुनाव और लोकतंत्र हमारे देश की नींव है, इसलिए हम उच्चत्तम न्यायालय इसको मूल संविधान के ढांचे में मानते हैं। That is We consider it part of the basic structure of the constitution.

दूसरी तरह से इसको कहा जाता है लेवल प्लेईंग फिल्ड, Leval playing field, एक समतल जमीन, जिसमें विभिन्न राजनैतिक पार्टियाँ सत्तारुढ हों या विपक्ष की हों, वो बराबरी से लड़ाई लड़ सकें। उसको घोर उल्लंघन कैसे हुआ औऱ किस प्रकार से गैर-कानूनी तौर से, एक प्रकार से जनता जनार्दन को भ्रष्टाचार द्वारा वोट मांगने की प्रक्रिया सत्तारुढ बीजेपी ने शुरु की, उसकी ये दयनीय और दुखद कथा है।

पहली बार कि 2002-03 को छोड़कर जब आप जानते हैं कि दंगे हुए, दंगे-फसाद हुए थे, जिनका एक अलग बहुत गुजरात में दुर्भाग्यपूर्ण इतिहास है, उस एक बार को छोड़कर करीब-करीब इन दो प्रदेशों में यानि हिमाचल और गुजरात में 1998 में, 2001 में, उसके बाद 2005 में और अब हमेशा चुनाव साथ होने की प्रक्रिया रीति-रिवाज और नियम रहे। 2002-03 में दंगों के कारण ये शेड्यूल बदला गया था। इस बार ऐसा कोई कारण नहीं है। कारण एक है मोदी जी, अमित शाह जी जाकर इस सोमवार 16 तारीख को, इस मंगलवार 17 तारीख को, एक गैर-कानूनी सांता क्लॉज़, सांता क्लॉज़ एक बहुत धार्मिक व्यक्ति हैं, अच्छे व्यक्ति हैं, लेकिन एक ढोंगी सांता क्लॉज़ बनकर वोट खरीद सकें, इस उद्देश्य से ये किया गया है।

दूसरा मुद्दा, आपको एक बरगलाने वाली कहानी सुनाई गई। ये कहानी क्या सुन रहे हैं कल से आप, अरे-अरे हमको ये करना पड़ा क्योंकि 45 दिनों के अंदर हमें चुनाव कन्डक्ट करना आवश्यक है। कोई 2001 का सर्क्यूलर है और 45 दिनों के बीच में हमें चुनाव करना चाहिए कन्डक्ट । अब ये नहीं बताया गया आपको कि 1998 में 67 दिन थे, 45 दिन नहीं थे, तब क्या हुआ इस नियम का, ये नहीं बताया गया कि 2002-03 में भी जब वो दंगों की बात थी, जब एकसाथ नहीं हुए थे चुनाव, तब भी 50 दिन लगभग फर्क था, 45 दिन नहीं था। 2007 में 74 और 89 दिन थे। मैं आपको रफ आंकड़े दे रहा हूं, चार्ट देंगे हम आपको। मैं गुजरात के आंकड़े हैं 74 दिन और हिमाचल का है 89 दिन। 2012 में ये आंकड़े वापस 89 दिन थे, गुजरात और हिमाचल के लिए, तो ये 45 दिन का मिथ्या प्रचार कहाँ था तब? अंग्रेजी में एक कहावत है -You show me the face, I will show you the rule, मेरा चेहरा दिखाएंगे तो मैं ये रुल दिखाऊँगा, आपका चेहरा दिखाएंगे तो ये रुल दिखाऊँगा, अलग-अलग रुल बदल जाते हैं चेहरा बदलने से।

तीसरा मुद्दा, कभी भी गुजरात और हिमाचल में मॉडल कोड़ ऑफ कन्डक्ट 44 या 45 दिन की समयसीमा में नहीं हुआ है, इस बार ये बहुत नवीनतम सा, बहुत क्रियेटिव सा बहाना बनाया गया है पहली बार और मैंने आपको अभी गुजरात और हिमाचल के 5 उदाहरण दिए, 1998, 2001, 2012 इत्यादी-इत्यादी। बाकी प्रदेशों को देखिए आप गुजरात और हिमाचल से हटकर, तो 45 दिन की कोई समयसीमा नहीं हैं, यह काल्पनिक है। दिल्ली में, मिजोरम में, राजस्थान में, महाराष्ट्र में, अरुणाचल प्रदेश में, आँध्र प्रदेश में, ये कौन सी कहानी सुनाई जा रही है आपको?

तीसरा, ये कभी सोचा है आपने कि हिमाचल प्रदेश वाले, हिमाचली लोग भारत के नागरिक तो हैं, वो तो चुनाव करेंगे 9 तारीख को और उनका परिणाम, इंतजार करेंगे दिसंबर तक। हिमाचल वाले नागरिक भारत के, 9 नवंबर के चुनाव का, परिणाम का इंतजार करेंगे, अभी तक वो तिथी कथित नहीं है, लेकिन वो दिसंबर मध्य या दिसंबर के अंत में। क्यों, क्योंकि मोदी जी जा सकें, सोमवार, मंगलवार और बुधवार को और सांता क्लोज बन सकें, गुजरात में।

नंबर 4, आपको कितनी बार पाठ पढ़ाया गया, हम उससे सहमत नहीं हैं, लेकिन आपको कितनी बार पाठ पढ़ाया गया, अभी कल भी इसके ऊपर लेख लिखा गया है, आप ही लोगों ने प्रकाशित किया है कि एकसाथ चुनाव होने चाहिएँ। वहाँ तो आप देश में संविधान संशोधन के बिना एकसाथ चुनाव नहीं कर सकते। मोदी जी ने कम से कम 80 बार कहा होगा 3 वर्ष में कि राष्ट्रीय चुनाव और प्रादेशिक चुनाव एकसाथ होने चाहिएं और उनके कहा-कही कई बीजेपी के हर office bearer ने ये बात प्रादेशिक स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर दोहराई है। वो तो एक काल्पनिक चीज है क्योंकि संविधान संशोधन चाहिए उसके लिए। बहुत बहुगामी, बहुत महत्वपूर्ण और बहुत एक मूलगत और उससे हम बहुत दूर हैं, अभी तक कोई ऐसी सर्वदलीय सहमति भी नहीं हुई है। लेकिन जहाँ साथ चुनाव हो सकते है दो प्रदेशों के, वहाँ तो आप चुनाव कराने के लिए तैयार नहीं है, दो प्रदेशों के मात्र, ये मजाक है संवैधानिक या संवैधानिक सत्य है या संवैधानिक अवसरवादिता है?

एक और बिंदु नंबर 5, एक और बहाना बनाया गया आपके सामने। अरे-अरे गुजरात में हमारे बाढ़ चल रही है, इसलिए कृपया चुनाव की तिथी नहीं बताईए चुनाव आयोग साहब। मतलब ये समझा गया है कि जैसे सांता क्लोज बच्चों से कई वायदे करते हैं, तो पूरी जनता जनार्दन हिमाचल की घास खाते हैं और गुजरात वाले भी बच्चे हैं, घास खाते हैं। भारतीय electorate की परिपक्वता शून्य है। बाढ़ हुई थी 2017 जुलाई में, आज हम अक्टूबर में हैं और माननीय मोदी जी द्वारा संचालित गुजरात में अगर 4 महीने में आप बाढ़ की कंट्रौल सीमा नहीं कर सकते तो क्या आप इतने अक्षम हैं प्रदेश को चलाने में और आप वोट मांगने जा रहे हैं, ये एक और मिथ्या प्रचार है, 45 दिन समयसीमा और बाढ़ वाली। तो ये सिर्फ गलत नहीं है, संवैधानिक सिद्धांतिक गलत नहीं है, लेकिन ये झूठ मिथ्या प्रचार है, ये आपको बरगलाने और मूर्ख बनाने की प्रक्रिया है। जैसे आप बच्चे हैं, अनपढ़ हैं और घास खाते हैं सभी नागरिक इस देश में।

सबसे महत्वपूर्ण और अंतिम बिंदु, ये घोषणा चुनाव आयोग की एक बहुत अजीबो-गरीब घोषणा कि 9 तारीख को हिमाचल में होगा, गुजरात में निकट भविष्य में होगा, लेकिन अभी हम बताने में असक्षम हैं कि कब होगा। उसके 10 मिनट के अंदर करोडों के लुभाने वाली नई नीतियाँ घोषित की गई हैं गुजरात में। अगर ये भ्रष्टाचार का सबसे गलत, सबसे एक भद्दा उदाहरण नहीं है तो क्या है?

बृहस्पतिवार को गुजरात सरकार ने कई सारे sops पाटिदारों के विषय में, वाल्मिकी समुदाओं के विषय में, हजारों सरकारी अफसरों के विषय में, बिल्डरों के विषय में घोषणा की और अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन ने डेढ़ घंटे पहले चुनाव आयोग की इस घोषणा के 550 करोड़ वाले प्रपोजल पारित किए, इससे बड़ा भ्रष्टाचार मैं नहीं समझता खुलेआम और इतने बड़े सिंद्धातों का आपको सबक सिखाते हैं माननीय मोदी जी और उनकी सरकार। इतने बड़े-बड़े आपको जुमले सुनाए जाते हैं। उनकी नींव इस झूठ, इस असत्य और इस ढोंग की है।

एक प्रश्न पर कि क्या आप इस मामले को लेकर चुनाव आयोग जाएंगेडॉ. सिंघवी ने कहा कि निश्चित रुप से जाएगालेकिन चुनाव आयोग के पास जाना एक मुद्दा हैएक पहलू हैउससे कहीं ज्यादा अहमियत रखता हैहमारी सोच-समझ में आपके जरिए हर व्यक्तिहर भारतीय नागरिक तक ये संदेश जाना चाहिए और ये संदेश जाना सिर्फ राजनीतिक की बात नहीं हैये आपका उत्तरदायित्व और कर्तव्य बनता है कि ये संदेश जाए और फिर लोग अपने आप निर्णय करें कि इस प्रकार की सस्ती, short term vision के आधार पर सरकारें और चुनाव किए जाते हैं ?

 

एक अन्य प्रश्न पर गुजरात में योगी आदित्यनाथ जी ने अमेठी को लेकर राहुल जी पर हमला किया है,क्या कहेंगेडॉ. सिंघवी ने कहा कि माननीय मुख्यमंत्री जी एक संवैधानिक पद पर बैठे हैंतो बड़े आदर के साथ कहना चाहिए उनको कि शायद वो गोरखपुर के आगे गए नहीं हैं। वो शायद गोरखपुर तक सीमित हैं और पिछले 3-4 महीनों से लखनऊ तक सीमित है। जहाँ तक उनकी मानसिक सोच है वो भी 3-4 मुद्दों तक सीमित है क्योंकि जहाँ तक पिछली बार मैने अपने facts चैक थे और शायद माननीय मुख्यमंत्री जी गोरखपुर से चलकर अमेठी पहुंच जाएँ तो उनको मालूम पड़ जाए कि डीएम का ऑफिस गौरीगंज कैंपस में कलेक्ट्रेट कई दशकों से हैकुछ दिनों से नहींकुछ सालों से नहींना इन्होंने शुरु किया हैवो कई दशकों से है। और साथ-साथ मैं ये जोड़ दूं कि वो इतना ध्यान रखते है राहुल गाँधी जी काओत-प्रोत हैं उनके भावना के साथ-साथ थोड़ा वो 70 बच्चों का भी ध्यान रखें उस अस्पताल में जो गोरखपुर में जो मृत्यु के घाट उतारे गए थे और इस बात का भी ध्यान उतना ही रखें ये बोलने से पहले कि गौरीगंज में कलेक्ट्रैल नहीं है कि 500 बच्चे BRD अस्पताल में 3 महीने में मृत्यु उनकी हो चुकी हैतो इस प्रकार से गैर-जिम्मेराना और टिप्पणी देने से पहले वो सोच लें कि अपना खुद का मजाक उड़ा रहे हैं इस प्रकार की अनभिज्ञता दिखाकर।

एक अन्य प्रश्न पर कि योगी आदित्यनाथ जी ने रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर भी कहा हैक्या कहेंगेडॉ. सिंघवी ने कहा कि जहाँ तक मुझे पता है वो भारत सरकार में प्रधानमंत्री तो नहीं हुए हैंउनके अधिकार क्षेत्र और सीमा है उत्तर प्रदेश कीम्यांमार  को तो ज्वाईन नहीं कर कर दिया हैं नाहाँ कल वो विदेश मंत्री बन जाँए और सुषमा जी का पद ले लें या रक्षा मंत्री बन जाएं तो फिर वापस बात करेंगे इस पर।

एक अन्य प्रश्न पर कि चुनाव आयोग का ये फैसला डेमोक्रेसी के लिए कितना बड़ा खतरा हैडॉ. सिंघवी ने कहा कि जब मैंने आपको उच्चत्तम न्यायालय का ये पैराग्राफ पढ़ दियाइंदिरा नेहरु गाँधी केस में संविधान की खंडपीठ में 1975 में कहा था और उससे पहले कृष्णा भारती में कहा गया था और उसके बाद10 बार कहा गया है कि स्वच्छनिष्पक्षसमतल जमीन पर लड़े हुए चुनाव हमारे लोकतंत्र की नींव है और लोकतंत्र और ऐसे चुनाव बेसिक स्ट्रक्चर का अभिन्न हिस्सा हैतो इससे ज्यादा मैं क्या कह सकता हूं?इसका मतलब क्या हुआमतलब कि कल अगर दो तिहाई बहुमत से हमारी संसद भी इस बेसिस स्ट्रक्टर को बदलने के लिए एक कानून पारित कर देतो वो भी नहीं कर सकता।

चुनाव आयोग पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि आप सैद्धांतिक रुप से सही कह रहे हैं। हर ऐसा सिंद्धात जो आज आप स्थापित करते हैंजो गैर-सैद्धांतिक हैजो असंवैधानिक हैगलत है वो निश्चित रुप से अगली बार अपनी एक नीति और नियम बन जाएघगा। इसलिए तो मैंने कहा कि हमारे आस-पास ना अफ्रिका मेंना एशिया मेंना दक्षिण एशिया मेंना दक्षिण अमेरिका मेंएक भी ऐसा देश नहीं हैएक भी गिना दीजिए मुझेजो इंगलैंड से स्वतंत्र हुआ होफ्रांस से हुआ होबेल्जियम से हुआ हो,जर्मनी से हुआ होहालैंड से हुआ हो और आज एक जबरदस्त लोकतंत्र हो हमारी तरह ! क्योंकि वहाँ संस्थाएँ नहीं हैं ऐसीवहाँ ऐसे रीति-रिवाज नहीं है ऐसेवहाँ ऐसे नियम नहीं हैं जैसे हमारे बेसिक स्ट्रक्टर के हैं। तो मोदी जी ये नहीं समझ रहे हैं कि वो उन पर आघात कर रहे हैंवो तो चुनाव में रहेंगे या नहीं रहेंगे अगली बारउनकी सरकार रहेगी या नहीं रहेगीहम रहेंगे या नहीं रहेंगेलेकिन देश को कितना दूरगामी नुकसान पहुंचा रहे हैंये तो समझ ही नहीं है। इसको समझने के लिए परिपक्वता चाहिएबेसिक रुल और नियम चाहिएँ जो ना इस सरकार में है और ना इस सत्तारुढ़ पार्टी में।

एक अन्य प्रश्न पर कि पहले पंजाब में कैप्टन अमरिन्द्र सिंह को मुख्यमंत्री पद के लिए चुनाअब हिमाचल में वीरभद्र जी को चुना गया हैक्या कहेंगे इस परडॉ. सिंघवी ने कहा कि हमारा सिंद्धात और नीति बड़ी स्पष्ट है। कोई blanket approach नहीं हैकोई all in one या one in all अप्रोच नहीं हैकोई वन साईट अप्रोच नहीं है। ये निर्णय रणनीति के आधार परनीतिगत आधार परबहुत व्यापक विचार-विमर्श करने के बाद state by state, year by year लिए जाते हैं। आज मैं तो ये भी नहीं कहूंगा कि आज हम अमूक राज्य में किसी की घोषणा करते हैं मुख्यमंत्री पद की तो उसी चुनाव में वापस करेंगे ये भी कोई नियम नहीं हैये रणनीति का एक हिस्सा है और हम किस प्रकार से रणनीति बनाते हैं ये निश्चित रुप से फर्क होना चाहिए और भिन्नता होनी चाहिए और यही हो रहा है।

एक अन्य प्रश्न पर कि प्रणव दा की किताब लॉंच हुई हैजिसमें कहा है कि कांग्रेस के बडबोलेपन की वजह से कांग्रेस हारी हैक्या कहेंगेडॉ. सिंघवी ने कहा कि हमारे बहुत वरिष्ठ नेता हैंअत्यंत अनुभवी व्यक्ति हैंपूर्व राष्ट्रपति हैं और अभी हाल तक राष्ट्रपति थेतो इसलिए राजनीतिक टिप्पणी करना सही नहीं है और ये भी आपको सर्वमान्य हैसर्वविदित हैसब जानते हैं कि प्रणव मुखर्जी जी जैसे व्यक्ति हर शब्द नापतोल के और सोच-समझ कर बोलते हैं। मैं नहीं समझता कि इस पूरी किताब में आपको कोई औच्छापन्न और छिछोरापन्न दिखेगा। निश्चित रुप से हमारी हार के कई कारण थे। राहुल गाँधी जी ने कितने बार व्यापक रुप से बोला है। कांग्रेस में या कांग्रेस की संस्कृति से जुड़े हुए चाहे मैं हूंराहुल जी हों या प्रणव दा होंकभी वो इनफेलिबिलिटी वाली गलती या मैं कभी गलती नहीं कर सकता जो गलती मोदी जी करते हैं हम नहीं करतेहम अपनी गलतियाँ मानते हैंहममे वो बात हैमोदी जी ने तो कभी गलती की नहीं है। तो इसलिए 2014 की जो गलतियाँ हैंवो गलतियाँ हैं।

रोहिग्यां मुसलमानों पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि मैं समझता हूं कि सुप्रीम कोर्ट की ऑबजरवेशन पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते हैंलेकिन ये मैं समझता हूं कि लोकतंत्र और गणतंत्र की मजबूती है कि अलग-अलग विभिन्न प्रकार के मत हैं। रोहिंग्या का मुद्दा कोई आसान मुद्दा नहीं है। मैं नहीं समझता कि इसमें ब्लैक एंड वाईट कोई उत्तर हो सकता है। लेकिन ये सिर्फ काला या सिर्फ सफेद उत्तर हो सकता है ये सिर्फ सरकार समझती हैये सत्तारुढ़ पार्टी की नीति है और गणतंत्र में इसके जो अलग-अलग रंग हैंउनको समझना आवश्यक हैउसी में ये एक इनपुट हैमैं समझता हूं कि इसको बहुत ध्यान से देखना चाहिए और हल निकालना चाहिए। सिर्फ ये कहना कि हम एक ही अप्रोच करेंगे कि काला या सफेद ये ठीक नहीं है।

एक अन्य प्रश्न पर कि राजस्थान सरकार ने सोशल मीडिया को लेकर एक सर्क्यूलर जारी किया हैक्या कहेंगेडॉ. सिंघवी ने कहा कि ये आप मुझसे क्यों पूछ रहें हैं। जिस पार्ट ने जो उस प्रदेश में सत्तारुढ है,आज देश में सत्तारुढ है। जिसने सबसे जबरदस्त  उपयोग नहीं पर दुरुपयोग किया सोशल मीडिया कावो जब ऐसा सर्क्यूलर निकालती है तो मैं यही कह सकता हूं कि घबराहट और बोखलाहट का द्योतक है। क्यों जब मैं सत्तारुढ हूं तो सोशल मीडिया बुरी है और जब आप सत्तारुढ हों तो सोशल मीडिया अच्छी हैये तो परफेक्ट फोर्मूला है। चित्त भी मेरीपट भी मेरी।

रविशंकर जी के बयान पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि ये तो एनडीए से कहानी शुरु हुई थी DNA की। जब वैंकेट स्वामी कमीशन बनाया गया था। एक व्यक्ति जो सिर्फ सत्तारुढ़ पार्टी के अध्यक्ष थेकैमरा में जब कुछ ले रहे थे और उस आयोग का अंत किया गया और कोई और व्यक्ति को अपोयंट किया गया तो किसके DNA में क्या एनडीए हैपता नहीं। 

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