EC Should Ban PM & Amit Shah for Hate Speeches

ALL INDIA CONGRESS COMMITTEE

24, AKBAR ROAD, NEW DELHI

COMMUNICATION DEPARTMENT

Dr. Abhishek Manu Singhvi, Spokesperson, AICC addressed the media today at AICC Hdqrs.

डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि नफरत के राग अलापने वालों पर पॉज (pause) बटन लग गया है। जिन्होंने नफरत और घृणा के बोल पाले हैं, आज हमारी शिकायत पर चुनाव आयोग ने लगाए उन पर ताले हैं। जिन्होंने भाषा की मर्यादा ना कभी समझी, ना कभी रखी, जिन्होंने ने लोगों को भड़काया, आज हमारी शिकायत पर चुनाव आयोग ने उनको कड़ा मजा चखाया।

हमें अत्यंत हर्ष है कि कांग्रेस के डेलिगेशन की शिकायत के आधार पर, जिसमें मेरा सौभाग्य था कि मैं भी उसका हिस्सा था और मैंने उसकी दलील, पक्ष चुनाव आयोग के समक्ष रखा। जो दुरुपयोग श्री बिष्ट जैसे राजनीतिज्ञ अपने संवैधानिक पद को भूल कर चुनाव के वक्त करते हैं और जिसका दुरुपयोग अभी उच्च स्थान में प्रधानमंत्री और सत्तारुढ़ पार्टी के द्वारा भी चल रहा है, उस पर आंशिक रुप से रोकथाम हो गई है। मैं प्रधानमंत्री और सत्तारुढ पार्टी के ऊपर बाद में आऊँगा, पहले मैं आपको ये बता दूं, जो हमने चुनाव आयोग के सामने दलील दी थी, उसका मूल आधार क्या था। हमने चुनाव आयोग का ध्यान आकर्षित किया, मेरठ के 9 अप्रैल के श्री बिष्ट के भाषण की तरफ और सर्वविदित है कि श्री बिष्ट ने उस भाषण में क्या कहा था- उसका एक उदाहरण मैं दे रहा हूं, आपके पास उसके पूरे एक्सट्रेक्ट है। हरा वायरस को पश्चिम यूपी में लाने की जरुरत नहीं, इस वायरस को पूर्वी यूपी से पहले ही सफाया कर चुके हैं। ये उनके शब्द मैं बोल रहा हूं, इसके अलावा कई और शब्द हैं। अली और बजरंग बली तो आपने सुने ही हैं, इत्यादि-इत्यादि।

अब इसमें मूल बात क्या है – मूल बात है कि ऐसे व्यक्ति अपने फायदे के लिए, अपनी पार्टी के फायदे के लिए जो कहना होता है, कह देते हैं, कितना असंवैधानिक हो, कितना गैर-कानूनी हो, कितना फौजदारी कानून के विरुद्ध हो, कितना भर्त्सना योग्य हो, कितना घृणात्मक हो, कितना भी आपसी वैमनस्य फैलाए, कितना ही विभाजनकारी, एक बार कह दो और उसके बाद माननीय चुनाव आयोग की जितनी भी चेतावनियां हैं, सेंसर हैं, उसको बैग में लेकर, अपने हाथ में एक बैग ऑफ ऑनर की तरह लेकर चलते हैं कि हमें एक और चेतावनी मिली है चुनाव आयोग से। ये प्रक्रिया, क्योंकि चुनाव आयोग की प्रक्रिया में नोटिस देना पड़ता है, थोड़ा विलंब होता है और स्वाभाविक है कि ये एक्स पोस्ट फैक्ट्रो होते हैं, जो कहना है तो कह दिया, उसके बाद ये ऑर्डर होता है और ऑर्डर के बाद इसमें दुर्भाग्यपूण है कि इसके दांत नहीं होते, कोई दर्द नहीं होता, कोई परिणाम नहीं होता और इसलिए वही व्यक्ति वापस दोहराता है, बल्कि ऐसे कई व्यक्ति आप जानते हैं जो बड़े गौरव के साथ दोहराते हैं और कहते हैं कि अभी कुछ दिनों पहले मेरे को फिर एक चेतावनी आई थी, मैं वापस आपके सामने कह रहा हूं। तो हमने इस प्रक्रिया के विषय में चुनाव आयोग से निवेदन किया और मैंने बड़ा स्पष्ट ये निवेदन किया था और ये बहुत हर्ष की बात कि 72-73 साल मे पहली बार चुनाव आयोग द्वारा इस दलील को माना गया, य़े कांग्रेस की उपलब्धि है।

हमने कहा कि इसका मूल सिद्धांत ये होना चाहिए कि जो व्यक्ति दुरुपयोग करता है, उस दुरुपयोग के फायदे को आप उस व्यक्ति या उस पार्टी तक नहीं पहुंचने दें। फायदा क्या है- लोगों को भडकाना, आपसी वैमनस्य फैलाना, वोट लेना और ये होता कैसे हैं। 45 दिन-50 दिन, 40 दिन जो कैंपेनिंग का विंडो मिलता है, उसके दौरान ये सब करना होता है, ऐसे सॉ-कोल्ड स्टार कैंपेनर्स को, तो हमने कहा कि अगर पहली बार ऐसे कोई करे तो उसको आप चेतावनी बनिस्पद एक दिन ये सजा दीजिए कि वो एक दिन की कैंपेनिंग उसके 40 दिन के कोटे से गई। अगर वो दूसरी बार करे तो उसको तीन दिन के लिए रोकिए, अगर तीसरी बार करे तो 5 दिन रोकिए। मैं उदाहरण दे रहा हूं। A graded three tier हरारकी बनाईए। उसका एक, दो, तीन, एक तीन पांच हो सकता है, वो डिटेल की बात है। लेकिन इससे एक चेतावनी के अलावा एक स्पष्ट संदेश जाएगा कि जो तुमने फायदा उठाय़ा, एक बार तो उठा लिया, लेकिन आपके एक दिन, 2 दिन या 3 दिन, 5 दिन उस कैंपेन कोटे से हट गए। आप निशब्द हो गए और निरस्त हो गए, उन 3-4 दिनों के लिए। ये एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है।

हमने एक चीज और कही, जो आपको समझाना चाहता हूं, इसके लिए कोई प्रावधान नहीं है और ना ही आवश्यक है। मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट में ये नहीं लिखा है कि अगर ये एक दिन बोलेंगे तो आप बाद में 2 दिन रोकेंगे। अगर ये बोलेंगे 2 बार, तो आप उनको 4 दिन रोकेंगे, लेकिन इसकी आवश्यकता नहीं है। कई उच्चतम न्यायालय के निर्णय हैं, जिसमें लिखा है कि हमारा जो संविधान है, उसके जिस भाग के अंतर्गत चुनाव आयोग बना है, जो 324 अनुच्छेद से शुरु होता है और 329 पर अंत होता है, वो एक सोर्स है, शब्द इस्तेमाल किया सुप्रीम कोर्ट ने Reservoir of power. वो एक समुद्र है इस अधिकार क्षेत्र का कि चुनाव आयोग उस समुद्र से वो सब अधिकार क्षेत्र प्राप्त करता है, जिससे कि वो निष्पक्ष, स्वतंत्र, सही, समतल चुनाव करवा सके। उस समुद्र के अलग-अलग तिनकों के स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है, ये सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, क्योंकि कल क्या हालात, स्थिति उत्पन्न हो, वो संविधान में लिखा नहीं जा सकता है, परसों क्या स्थिति उत्पन्न हो वो किसी संसंदीय कानून मे लिखा नहीं जा सकता है, इसलिए उसको कहा है (Reservoir of power ) रेजरवॉयर ऑफ पावर, 324।

“राहुल बाबा अपने गठबंधन के लिए केरल के अंदर ऐसी सीट पर जाकर खड़े हैं, मालूम नहीं पड़ता जलूस निकलता है तो भारत का है या पाकिस्तान का जलूस है। Then he goes on – Mr. Amit Shah is most expansive, the most viburative – “आलिया-मालिया-जमालिया देश में घुसकर जवानों के सर काट देते हैं। अभी पुलवामा पर पाकिस्तान के भेजे हुए आतंकवादियों का हमला किया, अपने 40 जवान शहीद हुए, पर ये मौनी बाबा डॉ.मनमोहन सिंह जी की सरकार नहीं है, ये नरेन्द्र मोदी जी की सरकार है। शहीदों की तेहरवीं के दिन भारतीय एयरफोर्स के जवान विमान लेकर पाकिस्तान के घर में घुस कर आतंकवादियों के ट्रेनिंग कैंप उड़ाने का काम, एयरस्ट्राइक का काम किया”, Then he goes on – on Hindu terror and attributes wrong facts to Shri Rahul Gandhi.

डॉ. सिंघवी ने कहा कि एक अंतिम बात मैं स्पष्ट कर दूं, इस देश के कानून पर हमें गौरव है, इस देश के संविधान पर हमें गौरव है। ये स्पष्ट करता है कि कानून किसी को पहचानता नहीं। जहाँ तक स्टेटस का सवाल है, वो अंधा है। जहाँ तक पदासीन उच्च पदवी, स्थान पर बैठे होने का प्रश्न है, तो ये कानून अंधा होता है, होना चाहिए, ऐसे ही कानून होने चाहिएं। तो इस देश में आप कितने भी ऊंचे हो, कितने भी बड़े पद पर आसीन हों, ये सिद्धांत जो चुनाव आयोग ने स्वीकार किया है, ये बहुत महत्वपूर्ण सिद्धांत उसी रुप से, बराबरी के रुप से, नोन डिस्क्रिमिनेटरी मैनर से लागू होना अति आवश्यक है। हमने उसी दिन 9 अप्रैल को, उसी डेलिगेशन में, उसी लिखित रिप्रेंजेटेशन में माननीय मोदी जी के नांदेड़ में, सत्तारुढ पार्टी के माननीय अध्यक्ष के नागपुर के वक्तव्यों को कोट करके दिया है। वो श्री बिष्ट के वक्तव्यों से भी ज्यादा आपत्तिजनक है। मोदी जी ने कहा था सीधा साम्प्रदायिक वक्तव्य – सीट भी ऐसी जहाँ पर देश की मैज्योरिटी माईन्योरिटी में है

अमित शाह जी एकदम ही सीमा के पार है, कई चीजें कही उन्होंने –  राहुल बाबा अपने गठबंधन के लिए केरल के अंदर ऐसी सीट पर जाकर खड़े हैं, मालूम नहीं पड़ता जलूस निकलता है तो भारत का है या पाकिस्तान का जलूस है। आलिया-मालिया-जमालिया देश में घुसकर जवानों के सर काट देते हैं। अभी पुलवामा पर पाकिस्तान के भेजे हुए आतंकवादियों ने हमला किया, अपने 40 जवान शहीद हुए, पर ये मौनी बाबा डॉ.मनमोहन सिंह जी की सरकार नहीं है, ये नरेन्द्र मोदी जी की सरकार है। शहीदों की तेहरवीं के दिन भारतीय एयरफोर्स के जवान विमान लेकर पाकिस्तान के घर में घुस कर आतंकवादियों के ट्रेनिंग कैंप उड़ाने का काम, एयरस्ट्राइक का काम किया

इस प्रकार के भद्दे, आपत्तिजनक वक्तव्यों के लिए ही ये कानून बना है, आज एक अच्छी शुरुआत है, अत्यंत संतोषजनक शुरुआत है और हम चाहेंगे कि जल्द से जल्द जो बाकी दो वक्तव्य हैं, जिनका हमने उसी रुप से, उसी डेलिगेशन में, उसी लिखित प्रकार से, उन्हीं सिद्धांतों पर विरोध किया था, वो लागू करके तुरंत प्रतिबंध होना चाहिए, चाहे एक दिन का हो, दो दिन का हो, तीन दिन का हो, माननीय प्रधानमंत्री पर या माननीय अमित शाह जी पर।

डॉ. सिंघवी ने कहा कि हमने पहले ही कहा था कि उच्चतम न्यायालय के वक्तव्यों को विकृत करने का आरोप तो वे हमारे ऊपर लगाते हैं, लेकिन बीजेपी दिन प्रतिदिन विकृत करती है। आज ही एक नोटिस हुआ है सिर्फ, उच्चतम न्यायालय ने राहुल गांधी जी के विषय में कुछ भी नहीं कहा है, सिवाए पहले पैराग्राफ में कहा है कि हमारा मतलब अर्थात् उस पुराने ऑर्डर में ये था और हम कारण बताओ नोटिस देते हैं। तो कारण बताओ नोटिस, आप आश्वस्त रहें कि व्यापक रुप से और विस्तृत रुप से जवाब देंगे और हम उच्चतम न्यायालय को ये बताएंगे कि किस प्रकार से इस वक्तव्य को बीजेपी ने विकृत किया है। शब्दों के ऊपर कोई दो राय नहीं हैं, शब्द आपके सामने भी लिखित हैं, वीडियो आपके और हमारे सामने भी है। मुद्दा है कि किस प्रकार से उन शब्दों को बीजेपी विकृत कर रही है कि ये बताने के लिए राहुल गांधी जी का मन्तव्य, उद्देश्य, अभिप्राय ये था, जबकि उनका मन्तव्य, उद्देश्य, अभिप्राय बिल्कुल ये नहीं था, जो बीजेपी कह रही है। राहुल गांधी जी को छोड़िए, आप समझते हैं कि कोई भी आदमी आप या मैं कभी ये कह सकते हैं या कभी किसी का भी अभिप्राय हो सकता है कि उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय का न्यायिक ऑर्डर किसी राजनीतिक कैंपेन फ्रेज चौकीदार चोर को, फाईडिंग देगा। कभी ऐसा हो सकता है? तो इस आम, कॉमन बात को विकृत किस प्रकार से किया है, उसको हम उच्चतम न्यायालय को विस्तृत रुप से बताएंगे और आप आश्वस्त रहें कि बीजेपी डिस्टोरशन की कैंपेन चला रही है, वो साफ हो जाएगी।

वित्त मंत्री अरुण जेटली जी के कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जी पर किए ट्वीट के संदर्भ में पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि निरर्थक, बेईमानीपूर्ण और निराधार ट्वीट और ब्लॉग लिखने से सच्चाई नहीं बदलती। आप डायनेस्टी को कहाँ से ले आते हैं, मुझे मालूम नहीं। ये सिर्फ उनकी घबराहट और बौखलाहट को दर्शाता है और कुछ नहीं। अगर व्यक्ति विशेष इस देश में 10 सों बार निर्वाचित हो गया है, उसके बाद भी इन शब्दों का इस्तेमाल करना सिर्फ आपकी गैर कानूनी परिभाषा, आपके ज्ञान के अभाव और आपकी बौखलाहट को दर्शाता है। आपके आस-पास जब डॉयनिस्ट होते हैं तो उनकी बात नहीं करते आप, तीन-तीन पार्टियां जिनके साथ आपका गठबंधन हैं, उनके बारे में भी ये शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन राहुल गांधी जी के बारे में ये करते हैं।

दूसरी बात, मुझे इसके बारे में पता नहीं, ये तो उच्चतम न्यायालय निर्णय करेगी, लेकिन राइट टू डिस्टोरशन, वो फंडामेंटल राइट से ऊपर लेकर, बेसिक स्टूकचर अधिकार क्षेत्र बना लें, मानवाधिकार बना लें, जो निश्चित रुप से बीजेपी और माननीय जेटली जी कर रहे हैं। विकृत करने के मानवाधिकार को वो बेसिस स्टूकचर पर ले गए हैं। मैंने अभी समझाया कि मुद्दा सिर्फ ये है, शब्द साफ हैं, स्पष्ट हैं। मुद्दा ये है कि राहुल जी द्वारा जी कहा गया, उनका अभिप्राय और मायने क्या थे। उसका विस्तृत एक्सप्लनेशन हम माननीय उच्चतम न्यायालय को देंगे, अरुण जेटली जी को नहीं देंगे। तीसरी बात, जहाँ आप बोफोर्स को ले आए हैं, 15 साल से जो बोफोर्स के बारे में मिथ्या प्रचार किया गया है, जब सरकार में जेटली जी मंत्री थे, 2004 में एक्विटल में वो हारे, उनके सबसे महान विद्वान मित्र, जिसमें पेश हुए और हारे और उसके बाद अपील नहीं हुई, ये मिथ्या प्रचार कौन करता है, इसका जवाब आपको कौन देता है, तो 2004, 15 वर्ष या 20 वर्ष गैर कांग्रेस सरकार में आपको कुछ नहीं मिला, सीधा झूठ और फ्रेब करते रहे और 2018 में वो 2004 वाली पुरानी बात के ऊपर आप मचल-मचल कर जो अपील करते हैं, वो अपील भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। आपके अंदर हिम्मत या अधिकार क्षेत्र है फ्रेब की बात करने का, मुझे आश्चर्य होता है।

आजम खान और सुश्री मायावती के बयान से संबंधित एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि मैंने पहले ही कह दिया कि सिद्धांत, सिद्धांत होता है। अंग्रेजी में कहावत है, What is sauce for the goose, is the sauce for the gander. अगर बांये हाथ पर सिद्धांत लागू होता है तो दांये हाथ पर भी वैसा ही होता है। इसलिए भविष्य की बात कर रहे हैं आप, ये चेतावनी है, कानून का डंडा है सबके लिए। आज इसके घेरे में दो व्यक्ति आए हैं और आशा और विश्वास करते हैं कि शीर्षस्थ नेतृत्व के दो और व्यक्ति जल्द इस सिद्धांत के घेरे में आएंगे, प्रधानमंत्री और सत्तारुढ पार्टी के अध्यक्ष।

एक अन्य प्रश्न पर कि कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि राहुल गांधी जी प्रधानमंत्री जी पर झूठे आरोप लगा रहे हैं, डॉ. सिंघवी ने कहा कि मैं आपसे एक कॉन्ट्रैक्ट करता हूं, इसका जवाब मैं कल देता हूं। आज और कल के बीच में आप रविशंकर जी को ये कॉपी दे देंगे, इन तीन वक्तव्यों का पूछ लीजिए कि अपशब्द ये हैं या जो राहुल जी ने बोला है। माननीय प्रधानमंत्री जी ने जो बोला है ये अपशब्द हैं, ऐसी जगह से लड़ रहे हैं जहाँ मैज्योरिटी माईन्योरिटी है, जवाब दें दे आप, एग्री करें मेरे साथ, मैं जवाब दे दूंगा उनके वक्तव्यों का। उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष और सब लोग इतने भयभीत हैं, उनसे जवाब नहीं मिलेगा। जो उन्होंने कहा था मैंने पढ़कर बता दिया, इनका जवाब मांग लें और फिर बताएं कि शब्दों की परिभाषा उनकी डिक्शनरी में कहाँ से आती है।

सुश्री मायावती जी के बयान के संदर्भ में डॉ. सिंघवी ने कहा कि बिल्कुल निश्चित रुप से हम तो अपने रिप्रेंजेटेशन लेकर गए थे, मैं तो 9 तारीख को लेकर गए थे, मुझे नहीं मालुम उनका वक्तव्य कब आया था। मैंने तीन बार बोला कि ये सिद्धांत बराबरी से सब पर अप्लाई होता है। कल अगर ये भूल चूक किसी से भी हो, चाहे हमारी गठबंधन की पार्टी से हो, तब भी यही सिद्धांत चलेगा।

 Sd/-

(Vineet Punia)

Secretary

Communication Deptt.

 AICC

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