डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि ये एक बहुत दर्दनाक समीश्रण है सब चीजों का, मिश्रण है। बहुत ही भर्त्सना योग्य मिश्रण है। केन्द्र सरकार की मिलीजुली, पुलिस की बर्बरता का, प्रदेश सरकार की अवहेलना, नेगलिजेंस का और कंपनी की कठोरता का। ये एक ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण कॉकटेल है जिसने Tuticorin smelter वाली वारदात को भारत का एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण manmade disaster बनाया है। एक भद्दा दाग हमारे गौरवशाली देश पर और क्योंकि केन्द्र सरकार, प्रदेश सरकार और कई सरकारी ऐजेंसीज की मानसिकता इन विषयों पर प्रदूषित है। इसलिए जो लोग सिर्फ अपनी आवाज उठाना चाहते हैं, प्रदूषण के विरुद्ध उनको सिर्फ दोषी करार नहीं किया जा रहा है, उनको मौत के घाट उतारा जा रहा है। मैं विनम्रता से देश की सरकार से, राज्य सरकार से, प्रधानमंत्री से आपके समक्ष कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूं। मुझे अपेक्षा नहीं है उत्तर की, मुझे पूरा संदेह कि उत्तर नहीं आएंगे, लेकिन हमारा उत्तरदायित्व है कि देश की तरफ से हम ये प्रश्न स्पष्ट रुप से पूछें।
पहला, हमारे इतने मुखर और प्रखर, इतने प्रभावशाली वक्ता माननीय प्रधानमंत्री चुप्पी साधे क्यों बैठे हैं, अभी तक?
दूसरा, हर चीज पर जो ट्वीट करते हैं, हर क्षण जो मुखर और प्रखर रहते हैं और इतने जबरदस्त वक्तव्य देते हैं, वो फिटनेस के विषय में उत्तर दे रहे हैं। लेकिन इतने निरुत्तर हैं, चुप हैं, इतने बड़े हादसे के संदर्भ में। ये बार-बार हमने देखा है, जब कृषकों की चुनौति आती है तो हमें मिलता है, निरुत्तर सरकार, चुप्पी साधे हुए प्रधानमंत्री। जब महिला सुरक्षा का मुद्दा उठता है, तब हमें मिलता है चुप्पी साधे हुए प्रधानमंत्री। आज हम वही देख रहे हैं। क्यों ये सरकार और प्रधानमंत्री उसtreadmill जैसी सरकार हैं, जो भाग तो रही है हमेशा, लेकिन पहुंच कहीं नहीं रही। जुमलों के लिए चुप हैं, कैमरे के लिए फिट है, लेकिन शासन अवरुद्ध हुआ है, रिटायर्ड हर्ट हुआ है, ये शासन, सुशासन की तो क्या आशा की जा सकती है।
तीसरा, क्यों बदलाव किया गया है जानबूझ कर इस महत्वपूर्ण नियम का? जिससे ये हादसा हुआ है। दिसंबर 2014 में एनडीए सरकार बनी, 2013 में यूपीए सरकार ने बदलाव किया था, उससे पहले कानून ऐसा ही था। कानून में क्या बदलाव किया था कि आपको अनुमति चाहिए केन्द्र सरकार की और उस अनुमति में निहित हैpublic consultation, जनता जनार्दन से वार्तालाप, बातचीत। ये निहित होता है अनुमति में। तो ये जो बदलाव किया दिसंबर, 2014 में वो ये था कि अगर प्रोजेक्ट किसी औद्योगिक जोन के अंदर स्थित है और अगर औद्योगिक जोन को अनुमति नहीं मिली हुई है तो फिर उस प्लॉन को अलग से अनुमति चाहिए। ये यूपीए के वक्त हमने कानून बदला था कि कम से कम औद्योगिक जोन को अनुमति होनी चाहिए और अनुमति का मतलब, औद्योगिक जोन को अनुमति देते वक्त जनता जनार्दन से वार्तालाप हुआ हो। दिसंबर, 2014 में ये कहा गया कि अगर कोई प्रोजेक्ट औद्योगिक जोन में है तो यद्दपि औद्योगिक जोन को ऐसी अनुमति भी नहीं है, प्रोजेक्ट को भी अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। अनुमति नहीं लेने की आवश्यकता का क्या इल्म होता है? उसका प्रभाव ये होता है कि सबसे महत्वपूर्ण जोpublic consultation, होता है उसकी आवश्यकता नहीं होती और इस वार्तालाप और बातचीत की जब जरुरत नहीं होती है तो ये होता है कि जो अनुमति देने वाला व्यक्ति होता है, उसको ये आवश्यकता नहीं होती है कि वो बताए कि उसने अमूक तर्क को कैसे रिजेक्ट किया, अमूक तर्क को कैसे माना। तो आज तक हमें ये नहीं बताया गया कि एनडीए ने 2014 में ये सब assumption और नियम निरस्त कैसे कर दिए?
चौथा, आज तक एक निलम्बित नहीं हुआ व्यक्ति, सिर्फ स्थानांतरण हुआ है, ट्राँसफर हुआ है, संस्पेशन एक व्यक्ति का नहीं हुआ है। 11 जानें चली गए और एक व्यक्ति का संस्पेशन नहीं हुआ है। संस्पेशन करने के लिए और लंबित करने के लिए कानून में भी कारण बताओ नोटिस की आवश्यकता नहीं है। तो इसलिए अवहेलना है, बहुत बड़ी अवहेलना है।
पाँचवा, यद्दपि एक न्यायिक जांच की घोषणा की गई है, आज तक कोई भी समय सीमा नहीं डाली गई। समय सीमा अति आवश्यक है। आपका अगर उद्देश्य है कि संस्थापित स्मृति को भूला दिया जाए, झुठला दिया जाए, पूरे व्यक्ति समेत सभी भूल जाएं तो बात अलग है, नहीं तो ये कुछ हफ्तों के अंदर समय सीमा के अंदर सीमित होना चाहिए। कुछ हफ्तों के अंदर, सबसे ज्य़ादा हो तो कुछ महीनों में।
छह, आज तक हमें इस जांच का मालूम नहीं पड़ा कि स्थापित होने के और शुरुआत के कुछ महीनों के बाद यही प्रोजेक्ट, इसी कंपनी का महाराष्ट्र ने इस पर प्रतिबंधित लगा दिया और इसको स्थानातांरण करके घूमा कर तमिलनाडु में लाया गया, कब, कैसे और क्यों? तमिलनाडु में इसका स्वागत किया गया, उस वक्त के कर्मचारी, अधिकारी कौन थे, जिन्होंने ये अनुमति दी?
सातवाँ, इस प्रोजेक्ट का मन्नार की खाड़ी से 25 किलोमीटर से ज्यादा दूर होना अति आवश्यक है और उसके लिए जो लगभग 20,21 द्वीप हैं, उस मन्नार की खाड़ी से। आज ये स्थापित हो गया है रिपोर्ट के द्वारा कि उसके लगभग 5 द्वीप 25 किलोमीटर से कम दूरी पर हैं इस प्रोजेक्ट से, ना की ज्यादा। ये पर्यावरण का घौर उल्लंघन माना जाता है। माननीय प्रधानमंत्री ने क्या सुझाव दिया, उन्होंने बहुत बार सुझाव दिया है, तमिलनाडु सरकार को, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री को। ये भी सुझाव देती है ये केन्द्र सरकार कि कब और कैसे तमिलनाडु से संसद को अवरुद्ध किया जाए। लेकिन ये क्या ये सुझाव दिया कि आप वहाँ जाईए, माननीय मुख्यमंत्री अगर माननीय प्रधानमंत्री नहीं जा रहे हैं, तो कम से कम मुख्यमंत्री को तो जाना चाहिए। ऊल्टा हम देख रहे हैं कि अलग-अलग सरकारी तत्वों से एक प्रकार से ये कहा जा रहा है कि फायरिंग तो होनी ही थी, इसके बिना कोई विकल्प नहीं था। और याद रहे कि माननीय मुख्यमंत्री इस प्रदेश के गृहमंत्री भी हैं। तो हम पूछना चाहेंगे कि क्या जो फिटनेस चैलेंज प्रधानमंत्री जी उठा रहे हैं क्या वो समझते हैं कि ये मुख्यमंत्री फिट हैं, खारिज होने के लिए। ये मुख्यमंत्री तमिलनाडु के फिट हैं खारिज होने के लिए?
आठवाँ, इस विषय में प्रोटोकॉल निश्चित रुप से नहीं माना गया है। प्रोटोकॉल के अंतर्गत ये कोई आतंकवादी प्रदेश या क्षेत्र नहीं है। इसके अंतर्गत रबड़ और, और प्रकार के औजारों का इस्तेमाल करना होता है अगर बहुत ही अत्याधिक आवश्यकता हो तो। किस प्रकार से, किसने, कब, क्यों इस प्रकार की बेहरहमी की, फायरिंग की अनुमति दी और किसी विकल्प का क्यों प्रयोग नहीं किया गया? किस हद तक किया गया, न्यूनतम किया गया या सही किया गया ये बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न हैं, कम से कम दंडित और उसके पहले लंबित होना अति आवश्यक है।
नौवां, इस प्रोटेस्ट को कम से कम तीन, साढ़े तीन महीने हो गए। उस समय में अभी कुछ हफ्तों पहले ये घोषणा कर दी गई थी कि 22 तारीख को हम एक व्यापक रुप से प्रदर्शन करेंगे। तो आपको पहले से मालूम था 22 तारीख का। आमतौर पर प्रदर्शन कैसे, कब होगा, उसकी क्या व्यापकता क्या होगी, पहले से मालूम नहीं होता है। जब ये घोषणा थी तो कहाँ थे आपके औजार, कहाँ थी आपकी कानून व्यवस्था और ये क्यों होने दिया और क्यों इस प्रकार से गोलियाँ चलाई गई? कोई इसमें कोई surprise element नहीं था, अचरज की बात नहीं थी।
देश, हम लोग सब, इस देश के नागरिक इन सब प्रश्नों का उत्तर चाहते हैं। तुरंत चाहते हैं, सही चाहते हैं, जुमलों में नहीं चाहते हैं और तथ्यों के आधार पर चाहते हैं। मुझे नहीं लगता कि कभी भी इस प्रकार के सीधे, ठोस प्रश्नों का उत्तर हमें मिला है, लेकिन फिर भी हमारा उत्तरदायित्व है कि हम इन प्रश्नों को आपके समक्ष रखेँ। आज हमारा मानना है कि तमिलनाडु सरकार ने हर प्रकार से राजनीतिक, नैतिक, किसी और प्रकार की नैतिकता के आधार पर शासन करने का हक छोड़ दिया है, गंवा दिया है। उन्होंने एक जीवन डिग्निटी के साथ तो दूर, जीवन ही ले लिया है।
एक प्रश्न पर कि आज आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस की तरफ से विपक्षी एकता के विरुद्ध कथित विरोधाभासी बयान आए हैं, डॉ. सिंघवी ने कहा कि ये काल्पनिक प्रश्न पूछ रहे हैं। किसी एक व्यक्ति का क्या मत है, ये गणतंत्र, लोकतंत्र है, कम से कम हमारे अनुसार तो लोकतंत्र और गणतंत्र है। हर प्रकार से अभिव्यक्ति करना अलग-अलग व्यक्तियों का अपना-अपना मत होता है। आज टैबल पर कोई ऐसा प्लॉन नहीं है, कल भविष्य में उसका क्या स्वरुप होगा, एडजेस्टमेंट होगा, गठबंधन होगा, राष्ट्रीय स्तर पर किस हद तक होगा, ये सब चीजें काल्पनिक हैं इस वक्त। आज किसी एक अमूक व्यक्ति ने अपना मत व्यक्त किया है, ये उनका मत है तो ये कांग्रेस के लिए पूरी तरह से काल्पनिक है, कांग्रेस को इस पर कोई टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है।