31-August-2018 कांग्रेस मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन संबोधित करते हुए |

ALL INDIA CONGRESS COMMITTEE

24, AKBAR ROAD, NEW DELHI

COMMUNICATION DEPARTMENT

डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि अभी हाल के कुछ दिनों में कांग्रेस पार्टी ने, मेरे सहयोगियों ने और खुद कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गाँधी ने आपसे राफेल के विभिन्न पक्षों और पहलूओं के बारे में जिक्र किया है। जहाँ तक भारत की कंपनी जिसके विषय में ऑफसेट की इतनी बातें हुई हैं, उसके बारे में भी कई बिंदु आपके सामने अंकित किए गए हैं। मुख्य जो दो-तीन बिंदु हैं, मैं उनको दोहरा रहा हूं और फिर एक नई बात रख रहा हूं। इनमें से किसी भी बिंदू पर, ना प्रधानमंत्री और ना वित्त मंत्री, विशेष रुप से वित्त मंत्री दूसरों से प्रश्न पूछते हैं, किसी हमारे प्रश्न का उत्तर नहीं देते। जहाँ तक भारत की कंपनी का सवाल है, जो प्रश्न नंबर एक होता है कि जिसको अंततोगत्वा कोई ना कोई संबंध, कॉन्ट्रेक्ट, करार नामा कुछ भी कह लीजिए, मिला फ्रेंच कंपनी (French company) से, क्या वो उस तारीख को पेरिस में था, पहला सवाल। हमारे हिसाब से उत्तर सही है, हाँ। लेकिन नहीं है तो बताएँ हमें।

दूसरा प्रश्न, कि क्या इस यात्रा के 10-12 दिन पहले एक नई कंपनी बनाई गए जो मेरे सहयोगी जयपाल रेड्डी जी ने बताया आपको यहाँ सेअगर ये नकार सकते हैं तो नकारिए, हम तो स्पष्ट प्रश्न पूछ रहे हैं। वित्त मंत्री जी इतना घुमाते हैंघुमातें हैं, लेकिन इस प्रश्न का उत्तर क्यों नहीं देते हैंय़ा जो व्यक्ति इतने व्यक्तियों को लीगल नोटिस भेजते हैं, वो क्यों नहीं बताते हैं कि ये कंपनी नहीं बनी थी 10-12 दिन पहले?

प्रश्न नंबर तीन,सबसे महत्वपूर्ण है और इस रुप में अभी हाल में भी पूछा गया, मैं वापस पूछ रहा हूं, मैंने खुद पूछा था पहले। ये बताईए मुझे कि आपके दिमाग को, आपके फलसफे को, आपकी इंटेलिजेंस को क्या ये अपमानित नहीं करता कि बहुत बड़ीं फ्रेंच कंपनी 60 हजार करोड़ का कॉन्ट्रेक्ट राफेल का था, जिसपर 50 प्रतिशत ऑफसेट था, 30 हजार करोड़। ज्यादातर भारत की एक मुख्य कंपनी को मिलने वाला था, वो क्यों इस कंपनी को चुनेगीक्या इस विदेशी कंपनी की मत मारी गई थी या किसी कुत्ते ने उनको काटा था कि पूरे देश में वो उस कंपनी को चुनेंगे जिसके ऊपर ऋण हजारों-करोड़ों में हैंसोचिए आप, मैं किसी एक उद्योगपति का नाम नहीं, लेकिन भारत के टाटा, बिरला, मुकेश अंबानी स्थापित उद्योगपति, उनको किसी को नहीं चुनेंगे, सिर्फ उस एक कंपनी को चुनेंगे आप, जिसके ऋण और आईबीसी के अंतर्गत पहले और बाद में बहुत व्यापक हैं, क्योंक्या ये सरकार के समर्थन, सरकार के पुश, सरकार के प्रमोशन के बिना हो सकता है, प्रोत्साहन के बिना हो सकता है कभी?

पहले तीन प्रश्नों को जोड़ते रहिए आप एक के बाद एक, ये अलग नहीं हैं, सब साथ में जुड़े हैं। चौथा प्रश्न जैसा कि जयपाल रेड्डी जी ने कहा कि कोई व्यक्ति जो विदेश जा रहा है, इस विषय में कोई कंपनी 10 दिन पहले रजिस्टर कर रहा है और जब आपके रक्षा मंत्री वहाँ नहीं जा रहे हैं और आपके विदेश सचिव कह रहे हैं कि ये सब्जेक्ट एजेंडा पर नहीं है, तो इसका एक ही अभिप्राय हो सकता है कि सिर्फ माननीय प्रधानमंत्री और उस उद्योगपति को मालूम था कि क्या होने वाला है, भविष्य में या फिर वो एस्ट्रोलजी शास्त्र के माहिर थे। 

प्रश्न नंबर पांच, जब अंतिम डील हुई, ये तो हुआ 2015 में, जब प्रधानमंत्री ने मोहर लगा दी, 2015 में, उसके बाद कई समितियाँ बैठी, उसको अप्रूव करने के लिए, ये उल्टी गंगा बहने की प्रक्रिया आपने सुनी या नहींप्रधानमंत्री पहले मोहर लगा देते हैं कि हमारा कॉन्ट्रेक्ट हो गया आपसे, उसके बाद एक साल के बाद लोग बैठते हैं, उसका करारनामा बनाने में। उसका एकदम विपरीत होना चाहिए था। लेकिन जब ये करारनामा हुआ, फाईनल डील 26.9.2016 को तो क्या 3.10.2016 को उस विदेश फ्रेंच कंपनी ने भारतीय उद्योगपति कंपनी से करारनामा किया या नहीं, एक हफ्ते के अंदरये बाद वाली बात है। तो ये तो अभी तक आपके समक्ष था। अब आज की बात, प्रकाशित है, पब्लिक डोमेन में है, सिर्फ एक अखबार की बात नहीं है, कई जगह छपी है कि हम ये जानना चाहते हैं कि क्यों माननीय प्रधानमंत्री ने ये सब प्रक्रियाएँ पहले क्यों नहीं कीक्यों कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की पहले अनुमति नहीं हुईक्यों वही व्यक्ति गए साथ में, जिनको बाद में कॉन्ट्रेक्ट मिलाउसका आज हमें कुछ और एडिशनल उत्तर मिला है। उस उत्तर का ये पहलू है और ये छपा है भारत में, ये छपा है फ्राँस में कि जिस कंपनी को भारत में इस ऑफसेट कॉन्ट्रेक्ट का प्रमुख फायदा मिलने वाला है, 30 हजार करोड़ रुपए मान लीजिए या उसका बहुत बड़ा हिस्सा मान लीजिए, उसने एक फिल्म प्रोडक्शन कॉन्ट्रेक्ट साईन किया है। उस वक्त के फ्राँस के राष्ट्रपति, उनकी पार्टनर के साथ, जिनका नाम है, मिस जूली गेयेट, ये आज सार्वजनिक रुप से प्रकाशित है और ये हुआ है फिल्म प्रोडक्शन का कॉन्ट्रेक्ट साईन दो दिन पहले माननीय मोदी जी के AMU पर हस्ताक्षर या स्वीकृति देने के वक्त। एक व्यक्ति, उद्योगपति जाता है, जाने से 10 दिन पहले एक कंपनी बनाता है, उसी उद्योगपति की एक दूसरी कंपनी एंटरटेनमेंट वाली, उस देश के राष्ट्रपति की पार्टनर जूली गेयेट के साथ एक करारनामा करती है फिल्म प्रोडक्शन का दो दिन पहले और दो दिन बाद AMU होता है राफेल का। अभी हम कितनी विचित्रताएँ बताएँ आपको। उसके बाद 24 जनवरी, 2016 में, यानि दो-तीन महीने बाद जब प्रधानमंत्री वापस आ गए, आपको याद है रिपब्लिक डे पर उस दिन एक पूरा कार्यक्रम हुआ था, तो तब घोषणा होती है उस 24 जनवरी, यानि रिपब्लिक डे के दो दिन पहले कि वही भारतीय उद्योगपति की एंटरटेनमेंट की कंपनी और मिस जूली गेयेट की फर्म, जिसका नाम है Rouge International (रूश़ इंटरनेशनल), घोषणा करते हैं कि वो लोग दोनों मिलकर एक फ्रेंच फिल्म बनाएंगे जिसका नाम है Tout La-Haut, फ्रेंच में प्रनाउंस किया था, Tout La-Haut, जो रफली अंग्रेजी में कहते हैंOn the topअब ये सार्वजनिक रुप से मालूम है कि ये एग्रीमेंट उसी उद्योगपति की कंपनी के साथ साइन हुआ, जो उद्योगपति विदेश गए, उनके साथ और जिनको बहुत बड़ा हिस्सा ऑफसेट का मिलने की घोषणा की गई है।

इस On the top केक के ऊपर चेरी के प्रकार मान सकते हैं। जो केक था, जिस केक के पीछे बहुत बड़ा रहस्य छुपा है, काले धंधे और काले काम छुपे हैं, उस केक की चेरी, ये डील भी मान सकते हैं। ये कहना कि लगभग 30 हजार करोड़ का ऑफसेट और खुद उस कंपनी और उस उद्योगपति के प्रोसपेक्टिस में छपा एक लाख करोड़ का लाइफ साइकिल मेनटेनस कॉन्ट्रेक्ट। ये हम नहीं कह रहे हैं, प्रकाशित हैं। उन्होंने घोषणा की अपने शेयर होल्डर को कि 50 साल का ये कॉन्ट्रेक्ट एक लाख करोड़ के मूल्य का होगा।

12 फरवरी, 2018 को रक्षा मंत्री से कहलवाया गया और इसलिए जैसा मेरे सहयोगी जयपाल रेड्डी जी ने कहा कि कई सारे ऐसे कनिष्ठ मंत्री नियुक्त हुए हैं, वरिष्ठ मंत्री नहीं, जिनसे आसान है कहलवाना। 12 फरवरी को no offset contract has been awarded’अब मजे की बात ये है, जेटली जी भी कह रहे है कि सरकार अवार्ड नहीं करतीअरे कौन कह रहा है कि सरकार ने फॉर्मली अवार्ड किया हैये तकनीकियां पर आपको बहलाया, बरगलाया जा रहा है। हम नहीं कह रहे हैं कि सरकार ने अवार्ड किया है। निश्चित रुप से ऑफेसट कॉन्ट्रेक्ट विदेशी कंपनी करती है अवार्ड, लेकिन आप ये बताईए कि दसॉल्ट कंपनी या तो पागल हो गई होगी, या कुछ नई चीज हो गई होगी, उसको, अगर वो आम दुनिया में, आम तर्क पर 30 हजार करोड़ का कॉन्ट्रेक्ट या एक लाख करोड़ का लाइफ साइकिल मेनटेनस कॉन्ट्रेक्ट बिना सरकार के प्रोत्साहन, झुकाव, पुश किए, एक ऐसी कंपनी को देगी, जो सबसे बड़ी ऋणी है करीब-करीब या सबसे बड़ी ऋणियों की सूची में है और बाकि बड़े-बड़े उद्योगपति इस देश के उनसे कभी बात भी नहीं करेंगे इसके लिए। तो ये गलत है। ये जब कहते हैं no offset contract has been awarded’ये तकनीकी है, ये टैकनिकेलिटी है, आपको डिफ्रॉड करने के लिए है, आपको मूर्ख बनाने के लिए है। हाँ कॉन्ट्रेक्ट साइन नहीं किया है सरकार ने, लेकिन सरकार ने संकेतात्मक रुप से कह दिया है कि इनको कॉन्ट्रेक्ट मिलना चाहिए।

मिस फ्लोरेंस पार्ली, जो फ्रांस की रक्षा मंत्री हैं, उन्होंने खुद से एक प्रकार से भारत की रक्षा मंत्री के झूठ को पकड़ लिया है। 27 अक्टूबर, 2017 में जब वो फ्रांस की रक्षा मंत्री वो भी एक महिला हैं, जब हमारी रक्षा मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन से दिल्ली में मिली और उन्होंने आकर खुद संयुक्त रुप से निर्मला सीतारमन जी के साथ, फ्रांस की रक्षा मंत्री ने, हमारे मंत्री श्री नितिन गड़करी ने और मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस जी ने और उस उद्योगपति ने जो उस पूरे ग्रुप के हैड हैं,फांउडेशन पत्थर, मूल जो पत्थर होता है, नागपुर में इस फैक्टरी या प्रोजेक्ट का लगाया, ये बात है 27 अक्टूबर, 2017 की। तो ये इतनी ज्यादा विचित्रताएँ और कहीं भी कोई झूठी चीज नहीं है, कहीं भी कोई कन्फ्यूजन नहीं है, कहीं भी कोई क्विट प्रोको नहीं है, ये अनायास और स्वाभाविक रुप से हो रहा है।

मैं समझता हूं कि आप सब घास खाते हैं, ये समझती है सरकार, हम सब लोग मूर्ख हैं, ये समझती है सरकार, इसलिए बार-बार ऐसी चीजें बोलती है। ऐसी-ऐसी संभावनाएँ और स्वाभाविक चीजें हों सबके साथ, तो बहुत हर्षित होंगे सब लोग।

दूध का दूध हो जाएगा, पानी का पानी हो जाएगा, रिपोर्ट तो रिलिज कीजिए जनाब। हम गलत हैं, हम झूठे हैं, हमको झूठ सिद्ध करने का सबसे आसान तरीका है, मैं आपसे मांग कर रहा हूं रिपोर्ट की सार्वजनिक रुप से, पहला। दूसरा, कुछ अमूक चैनल को विशेष रुप से फैवरिट चैनल को मत दीजिए, सबको दीजिए, सबको क्यों नहीं देते हैं आपये सिलेक्टिव लिकिंग क्या हो रही है और सिलेक्टिव लिकिंग में भी उसके कुछ आँशिक रुप क्यों कर रहे हैं आपनंबर तीन, उसमें विलंब क्यों हो रहा है, ये तो हमारे विरुद्ध है, ये तो हमारे झूठ को पकड़ती है, ये तो तुरंत रिलिज होनी चाहिए। वो जीडीपी वाली रिपोर्ट जैसे नहीं, आरबीआई जैसी रिपोर्ट नहीं, डिमोनेटाईजेशन पर, ये तो हमें झूठ बतलाती है और चौथा बिंदु क्यों उस रिपोर्ट में ये स्पष्ट नहीं है कि राहुल गाँधी जी की जान को पूरे उस प्लेन में जितने लोग थे, उन सबकी जान को खतरा था, जबरदस्त खतरा था और क्या इसमें मृत्यु नहीं हो सकती थी, अगर कुछ गड़बड़ी हो जाती, मैं डिटेल में नहीं जा रहा हूं। हमारे भी कुछ विश्वसनीय सूत्र हैं, हम भी जानते हैं कि रिपोर्ट में क्या लिखा है। तो इतनी बड़ी बात उसमें सहानुभूति व्यक्त करना तो दूर, हम अपेक्षा भी नहीं करते, आप आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं, जैसे हमने झूठा, मनगठंत आरोप लगाया है। मैं आपसे विनम्रता से कहना चाहूंगा कि हर चीज में राजनीति मत लाईए, हर चीज में राजनीति नहीं होती है। हमने कहा था उस वक्त  Plummeting was unusual as the weather outside was sunny and normal. Mr. Kaushal Vidyarathi who was then accompanying said that the aircraft had bent sharply to the left and suddenly started losing altitude and the loss of Auto Pilot can be dangerous, the sharp loss of altitude can be so sudden that Pilots can find it difficult to recover. This could have caused serious accident.  Obviously अगर हवा में एक्सीडेंट होने वाला है तो मृत्यु करीब-करीब निश्चित होती है। ये हम कह रहे हैं या रिपोर्ट कह रही है, सामने ले आईए ना सबके सामने।  

एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि आप कई सारे काल्पनिक छलागें लगा रहे हैं, बहुत आगे पहुंच गए हैं, आप। मैं आपको बता दूं, पहली बात तो राष्ट्रपति जी और उसके बाद राष्ट्रपति जी जो सेवानिवृत्ती हो चुके हों, उनको इस प्रकार से घसिटना राजनीति में, बिल्कुल शोभा नहीं देता है, ना प्रेस को शोभा देता है, ना मुझे शोभा देता है, ना बीजेपी को शोभा देता है, ना किसी राजनीति पार्टी को शोभा दोता है। नंबर दो, जिन चीजों का आप जिक्र कर रहे हैं वो समाज कल्याण या सामाजिक कार्य के क्षेत्र में आते हैं। सामाजिक कार्य के क्षेत्र में इस मामले में सेवानिवृत राष्ट्रपति के विषय में कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए। नंबर तीन, वो एक संवैधानिक पदाधिकारी के साथ हैं। मुख्यमंत्री हैं, उनका ऑरिजन जरुर आर.एस.एस. में रहा होगा, लेकिन हरियाणा में काम करना है तो बिना मुख्यमंत्री काम नहीं हो सकता है। तो संवैधानिक पदाधिकारी जो हैं, उनके साथ अगर होंगे, तो मैं इस प्रकार के आरोपों को बिल्कुल नहीं मानता। जहाँ तक उनके आर.एस.एस. के भाषण का सवाल है, आपको उत्तर सबसे अच्छा प्रणव मुखर्जी जी ने दिया है। अपने भाषण के अंदर उत्तर दे दे दिया आपको, तो बार-बार उसके ऊपर क्यों लांछन करें, क्यों उस पर बात करें।

एक अन्य प्रश्न की 2021 की जनगणना के लिए सरकार ने तैयारी शुरु कर दी है कई लोग इसमें लगेगें 25 लाख लोग इंवोल्व होंगे नई चीज ये है कि इस बीर ओबीसी के लिए अलग से एक डाटा चार्ट बनाया जा रहा है के उत्तर में श्री सिंघवी ने कहा मैं अभी इस पर पूरा नहीं कहने वाला हूं, फिर बात करुंगा इस पर। इस सरकार की मनोवृति है 360 डिग्री कंट्रोल फ्रीक काम करना। हर चीज को, हर व्यक्ति को एक नियंत्रण के चक्र में बांध कर रखना। माईक्रो मैनेज करना। अब ये डेटाबेस की बात बाद में होगी।

अभी दो-तीन ऐसी प्रक्रियाएँ, आप जानते हैं, मैं खुद पेश हुआ हूं, चुनौती दे चुका हैं। टेंडर भी था, जिसके बारे में आप अवगत हैं, सोशल मीडिया में, 360 डिग्री फ्रोफाईलिंग उस पर लिखा था। आधार के विषय में कितनी बड़ी-बड़ी चीजें चल रही हैं। तो ये मील पत्थर बनाना चाहते हैं, एक स्नोपिंग गवर्मेंट, सर्विलेंस गवर्मेंट के आधार पर, इसका पूरा स्वरुप बाहर आने दीजिए, इसका राजनीति दुरुपयोग निश्चित रुप से होगा और हम वापस इसके बारे में बात करेंगे। लेकिन आप समजते हैं कि सूचियाँ बनाकर, डरा-धमका कर, नियंत्रित करके, कंट्रोल करके चुनाव जीते जा सकते हैं तो मैं समझता हूं कि हमारे देश का लोकतंत्र और गणतंत्र उससे कहीं ज्यादा व्यापक हैं

एक अन्य प्रश्न की विधि आयोग ने एक देश, एक चुनाव का समर्थन किया है क्या कांग्रेस पार्टी भी समर्थन करेगी के उत्तर में श्री सिंघवी ने कहा कांग्रेस पार्टी तो उसी विधि आयोग पर जाकर आ गई है। हम डेलीगेशन में गए थे, उस डेलीगेशन का हिस्सा मैं खुद था। हमने लिखित, तीन हफ्ते हो गए हैं, उनको दे दिया है दस्तावेज कि हम तो पूरी तरीके से विरोध करते हैं। पहला विरोध है संवैधानिक, दूसरा विरोध है कि ये हो ही नहीं सकता, तीसरा विरोध है कि इसमें कोई भी सहमति नहीं है, लिखित देकर आए हैं हम। तो हमारा इस पर सहमत होने का सवाल ही नहीं उठता और मैं समझता हूँ कि चुनाव आयोग इसको निरस्त करने के बाद, इसमे हमारी ऊर्जा और समय नष्ट करना सिर्फ इसलिए क्योंकि इस देश के एक व्यक्ति का ये एक शौकियां मिजाज है। एक शौक है, एक हॉबी है, तो ये आवश्यक ही नहीं है और खुद कानून आयोग हैं उसमें, इतनी कंडीशनैलिटीज, इतने कैबिनेटस डाल दिए हैं। आप पढ़िए उस रिपोर्ट को। वो खुद ही मानते हैं कि ये संभव नहीं है जिस स्वरुप में इसको प्रस्तावित किया जा रहा है। हाँ सात-आठ चुनाव को जोड़कर कुछ कर सकते हैं अगले वर्ष, तो मैं नहीं समझता कि अब हमारे पास समय है। इस देश के बड़े-बड़े महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिस पर आपको अपना समय बिताना चाहिए, राफेल पर समय बिताना चाहिए, सत्य बोलना चाहिए, डिमोनेटाईजेशन (Demonetization) के बारे में तथ्य जुटाने चाहिए। न की ऐसी चीज पर जिसका कोई तथ्य नहीं है, औचित्य नहीं है और जो हो नहीं सकता, कानूनन रुप से, संवैधानिक रुप से और प्रैक्टिकल रुप से।

एक अन्य प्रश्न की लॉ कमीशन ने व्यवस्था की है कि सरकार की योजनाओं का विरोध देशद्रोह नहीं है लेकिन बीजेपी के कुछ नेता फिर भी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं कि सरकारी योजनाओं का जो विरोध कर रहे हैं वो देशद्रोह कर रहे हैं के उत्तर में श्री सिंघवी ने कहा देखिए कानून आयोग ने जो कहा है वो 1962 से उच्चतम न्यायालय ने कहा है और उसको कोट करते हुए कहा है। केदारनाथ का केस आपको याद है, मैने आपको पहले भी बताया था आपको लेकिन इससे क्या होता है। जब सत्तारुढ पार्टी की सोच, नीति असहिष्णुता पर आधारित है कंफोर्मिज्म पर, सब लोगों को एक जुट रहना चाहिए, सोचना चाहिए, बोलना चाहिए, चलना चाहिए और इसमें कोई भी अगर बदलाव है तो वो विरोध है, वो आक्रोश है, वो रिबेलियन है और उसको सबसे मजबूत हाथ से रोकना चाहिए। अभी ये सोच है तो इस सोच को आप कानून आयोग या अच्चतम न्यायालय के निर्णय से बदल नहीं सकते। ये सब तभी बदलेंगे आप जब ये पूरी आवाम उनको धक्के देकर निकालेगी।

पेट्रोलडीजल के बढ़ते दामों को लेकर पूछे गए एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री सिंघवी ने कहा की देखिए ये बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है और मैं इसको अलग से भी लेने वाला था। अभी मैंने शायद चार-पाँच दिन पहले इसके बारे में आपसे जिक्र किया था। अब ये तो कोई ऐसी अजीब सी होड़ हो गई है कि देश की आयु के भी आगे चली गई है ये कीमतें। अब जहाँ तक डीजल और पेट्रोल का सवाल है तो फर्क सात-आठ-नौ-दस रुपए उसका कोई मायने नहीं है लेकिन पेट्रोल की कीमते 70 रुपए से 80 रुपए के आस-पास। किसी शहर में 78-79, 80-81। हम जब, हमने अपना काल खत्म किया था कार्यकाल, शुरुआत में आपको 50-60 डॉलर प्रति बैरल मिल रहा था। उसको मान लीजिए बढ़ाया है तो आप कहीं न कहीं तो जो टैक्स कलैक्ट करते हैं उसको आवाम को आगे पास-ऑन करेंगे। कब तक आप इस प्रकार से शोषण करेंगे और साथ साथ अच्छे दिन और आम आदमी की बात करेंगे। ये तो सर के ऊपर पानी तो निकल ही गई पूरा बदन डूब गया है इसमें। आप ही बताइए कि जो बाकि चीज छोड़ दीजिए, आदमी जो ट्रैक्टर चलाता है, जो कृषक डीजल पर आधारित है, 70 रुपए, उसने कभी सोचा भी नहीं होगा और सबसे बड़ा इंडायरेक्ट टैक्स होता है जो ट्रक के जरिए हर खाद्य पदार्थ पर, हर वितरण की चीज पर लागू होता है। ट्रक किस पर चलती है? डीजल पर। तो आप Actually सिर्फ जिद में लगे हैं। आप अपने टैक्स एक तिहाई इसका हिस्सा टैक्स  हैं, एक तिहाई क्या मैं तो कहूँगा ज्यादा, Two fifths  इसका टैक्स है। उसमें से आप थोड़ी रियायत नहीं दे रहे हैं, आंशिक रियायत नहीं दे रहे हैं और इससे क्या आप समझते हैं इंफेसन नहीं बढ़ेगा, आम आदमी की क्या हालत है, उसको आप पीस रहे हैं।

 Sd/-

(Vineet Punia)

Secretary

Communication Deptt.

AICC

 

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