ALL INDIA CONGRESS COMMITTEE
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COMMUNICATION DEPARTMENT
डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज माननीय लालबहादुर शास्त्री जी की पुण्यतिथी हैं, हम उनको नमन करते हैं।
ये इस प्रकार से दूसरी संस्थाओं की आड़ लेकर लुका छुपी खेलना, इस सरकार के लिए सही नहीं है और वो इसमें एक्सपोज हो रहे हैं, इस प्रकार से प्रधानमंत्री का अपना बचाव करना, दूसरी संस्थाएं जैसी सीवीसी (CVC) की आड़ लेकर उनके पीछे लुका-छुपी खेलना, ना उपयुक्त है और ना ये सफल होगा।
Now for this I want to tell you that the CVC, इनको हटाने का पूरा आधार एक था – समिति को ये याद रखना अति आवश्यक था कि ‘सीवीसी’ सीबीआई चीफ को ना नियुक्त करती है और ना उनको हटाने का अधिकार क्षेत्र रखती है। तो समिति का पूरा आधार अगर सिर्फ सीवीसी रिपोर्ट है तो उसको बिना समझे, अवलोकन किए क्या आप सीवीसी की रिपोर्ट के आधार पर हटा सकते हैं? वो सीवीसी रिपोर्ट क्या है– 10 आरोपों में से 6 आरोप खुद सीवीसी रिपोर्ट कहती है कि आरोप का आधार नहीं बनता। Now look at the other four.
(i) On the charge of accepting a Rs 2 Cr bribe- The CVC itself concedes that “there is however, no direct evidence on the allegation of payment of bribe of Rs 2 Cr to Shri Alok Kumar Verma to Shri Satish Sana..”[Para 13(i).33]
Yet it is astonishing that this is one of the four alleged reasons relied upon for the removal of Shri Alok Verma.
दूसरा आरोप उन 4 में से, मैं उन आरोपों की बात कर रहा हूं, जिसके आधार पर उनको हटाया गया है। उसके बारे में जो दूसरा चार्ज है, उसको मैं वापस quote कर रहा हूं।
मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि क्या ये आरोप हैं? इसमें खुद लिखा है, “The only allegation against him and this is merely an allegation”, और दूसरा, आरोप है कि एक रिपोर्ट को टाईमली रुप से, समय सीमा के अंदर तैयार नहीं किया गया, क्या ऐसे आधार पर आप किसी को हटा सकते हैं? 4 में तीन हो गए और जो चौथा आरोप है, वो है-
“With regard to the allegation of attempting to induct tainted officers it is noteworthy to point out that the proposal for the induction of both the officers was not acted upon by the DOPT. The allegation is premature at best and wild conjecturing at the worst. It is certainly not a valid ground to disqualify a CBI Director from performing his tasks.” [Para 13(ix).5].
ये भी बड़ा विचित्र है। एक बड़ा प्रीमेच्योर सा एलिगेशन लगा दिया गया है, ऐसा कोई अवसर दिया नहीं है किसी ने, attempting to induct, उस आधार पर हटा दिया।
ये चार आरोप हैं, बाकी सबमें लिखा है, जिन्हें मैं पढ़ नहीं रहा हूं- not substantiated, not substantiated. इसलिए ये सीधा प्रश्न उठता है किस प्रकार से सीवीसी के ऑफिस का दुरुपयोग किया गया है। किस प्रकार से सीवीसी ने इस दुरुपयोग के लिए अपने आपको सरकार के समक्ष तैयार रखा है- अनुमति दी है कि दुरुपयोग हो जाए। जब पूरा एक मात्र आधार उनको हटाने का सीवीसी रिपोर्ट है तो वो रिपोर्ट कितनी खोखली है, कितनी बेईमानीपूर्ण है। उसमें क्या तथ्य हैं, क्या मजबूती है, क्या तर्क है, क्या संदर्भ है, ये आपके समक्ष रखा है, क्योंकि रिपोर्ट में 10 में से 6 आरोप निराधार माने गए हैं या भविष्य में और जांच के काबिल, लेकिन उनमें कोई भी तथ्य नहीं पाया गया है। जो 4 माने गए हैं, वो चारों मजाकिया हैं, ट्रिवियल हैं, पुराने हैं और उनमें भी लिखा है कि हमारे पास कोई ठोस तथ्य नहीं हैं। उदाहरण के तौर पर मैंने अंग्रेजी में बताया है, कि there is no direct payment of bribe by Verma to Sena, तो जाहिर है ये तौर तरीका निकाला गया है, बहाना निकाला गया है, to remove him.
तो अस्थाना साहब के आरोप करीब-करीब 99 प्रतिशत आधारहीन हैं और सीवीसी रिपोर्ट 100 प्रतिशत अस्थाना के आरोप पर आधारित है, जिसके आधार पर हाई पॉवर्ड समिति ने अपना निर्णय दिया। इसका मतलब हुआ कि अस्थाना के आधार पर समिति ने वर्मा को हटाया है। वैसे बड़े रोचक प्रसंग है कि कुछ घंटे पहले अस्थाना जी जिनके विषय में साक्षी हैं, साक्ष्य के रिकोर्डिड स्टेटमेंट है कि मैंने इनको दिया, इन्होंने उनको दिया, ऐसे लिखा हुआ है। उनकी जो याचिका है कि ये सीबीआई की एफआईआर दर्ज है, उसको निरस्त किया जाए, वो याचिका आज उच्च न्यायालय ने खत्म कर दी है और कहा है, आदेश दिया है कि सीबीआई की जांच एफआईआर पर चालू रहे और एक समय सीमा के अंदर खत्म हो। ऐसे व्यक्ति के आरोपों के आधार पर सीवीसी रिपोर्ट लिखता है और उस सीवीसी की रिपोर्ट को पूरा आधार बनाती है सरकार की समिति।
आखिर में, मैं आपको एक तीसरा दोहरे मापदंड का उदाहरण देना चाहता हूं।
इससे ज्यादा दोहरी और दोगुली आवाज क्या हो सकती है! इससे ज्यादा आडंबर क्या हो सकता है! आज सच्चाई ये है कि ये पूरा कारनामा दूसरी संस्थाओं की आड़ मे छुपकर, लुका-छुपी करके सरकार ने अपने आपको बचाने के लिए किया है, चाहे राफेल से बचाने के लिए, चाहे उनके कपबर्ड में जितने सारे और स्केलेटनस हैं, उनसे बचने के लिए। आज हर रुप से एक व्यक्ति के आरोपों को आधार बनाकर हम ताज्जुब करते हैं कि सीवीसी ने ये रिपोर्ट कैसे दी? सीवीसी के 10 आरोपों को मैंने आपके सामने रखा है, उनमें से 4 को महत्व दिया है, 6 को खुद सीवीसी ने निरस्त किया है। वो चार खोखले हैं, पुराने हैं, नगण्य हैं, गलत हैं। मैंने आपको पढ़कर बताए हैं और उनको समिति द्वारा आधार बनाया गया है, तो ये एक प्रकार से समिति द्वारा अस्थाना को आधार बनाया गया है। इसलिए हम इसकी कठोर शब्दों में निंदा करते हैं।एक प्रश्न पर कि केन्द्रीय मंत्री श्री पीयूष गोयल ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे जी ने आलोक वर्मा जी कि नियुक्ति पर भी सवाल उठाए थे और आज हटाए जाने पर भी सवाल उठा रहे हैं, लेकिन जस्टिस सीकरी ने समर्थन किया है, डॉ. सिंघवी ने कहा कि हमनें अभी तक spin doctoring में इस सरकार में जो PhD हैं, उनकी बातें की हैं, अब जो spin doctoring में जो M.phil हैं, उनकी बात करना चाहूंगा। ये उदाहरण हैं एक spin doctoring के। पहली बात तो ये मान लीजिए कि खड़गे जी ने विरोध किया था, आपको पता है कि क्यों किया था, किसलिए किया था, उसको छोड़ दीजिए। मान लीजिए कि विरोध किया था। नियुक्ति का अगर मैं विरोध करुंगा तो क्या इसका मतलब है कि मेरा अधिकार क्षेत्र नहीं है कि मैं आज अगर मैं आपको हटा रहा हूं ये असंवैधानिक है इसलिए मैं विरोध नहीं कर सकता हूं। इस तर्क का मुझे उत्तर ले आईए माननीय पूर्व वित्त मंत्री जी से या आज के वित्त मंत्री जी से, तब मैं जवाब दूंगा। ये तर्क क्या हुआ, ये कुतर्क हुआ या क्या हुआ? दूसरा, उस वक्त जो विरोध था वो लिखित था, उसकी चिठ्ठी भी पड़ी है खड़गे जी की। उस वक्त विरोध के दो मुख्य कारण थे- एक तो जो वरिष्ठता की सूची थी, उसमें उनसे कई ज्यादा वरिष्ठ अफसर थे, हम नाम भी जानते थे, एक श्री दत्ता थे और भी लोग थे। तो उन्होंने कहा कि ये देखना चाहिए कि किस व्यक्ति को, या तो वरिष्ठ व्यक्ति के ऊपर दाग है या कोई विशेष कारण है, ये प्रश्न उठाया था और इस प्रकार के और विभागों में भी जो वरिष्ठ लोग हैं, पुलिस ऑफिसर, उनका नाम लिया गया था। इसका क्या सरोकार है, असंवैधानिक रुप से, अस्थाना के आरोप पर, सीवीसी की खोखली फाईडिंग या नोन फाईडिंग के ऊपर समिति हटाए। उसको कंपेयर करने का तर्क मैं नहीं समझता, मैं तो घबराता हूं कि मंत्रालय के निर्णय ऐसे तर्कों पर ना हो पाए। दूसरा, आपने जानबूझ कर, यानि आपने नहीं, सरकार ने, जानबूझ कर घसीटा है, जैसे माननीय न्यायाधीश पटनायक जी को इसमें घसीटने का प्रयत्न किया गया, उसी प्रकार से सीकरी जी का भी नाम लिया जा रहा है। तो मैं आपको बता दूं कि 2-3 चीजें हैं जो सब लोग भूल रहे हैं। सीकरी जी न्यायाधीश के रुप में नहीं बैठते हैं समिति में, जो न्यायाधीश एक एक्ट के अंतर्गत नोमिनेट होता है और बैठता है, वो समिति का सदस्य होता है और उनके हर निर्णय, समिति का निर्णय, खड़गे जी का निर्णय, सामूहिक निर्णय, उनका निर्णय़, अलग निर्णय, उसी रुप से चुनौती दी जा सकती है, कानून में, जो आपका और हमारा निर्णय है। दूसरा, हमनें निर्णय की बात की है, हमने किसी रुप से सीकरी जी का जिक्र नहीं किया है। हम निर्णय के तर्क को आपके सामने रख रहे हैं, अगर आप कोई गलती निकाल सकें उसमें, तो बताएं, आप यानि सरकार।
एक अन्य प्रश्न पर कि उत्तर प्रदेश के गठबंधन पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बयान दिया है, कि कभी एक दूसरे का मुंह ना देखने वाले आज साथ में चुनाव लड़ रहे हैं, क्या कहेंगे, डॉ. सिंघवी ने कहा कि यही प्रचंड बहुमत वाली बात शब्दश: शब्दों द्वारा मैंने अभी सुना था इन 5 चुनावों से पहले। आप उसका प्रिंट आउट निकाल लीजिए। माननीय अध्यक्ष जी का यही वक्तव्य था, तो लगता है कि वो भी जुमले बाजी का ही रिकोर्ड चला देते हैं। उनको खुद को भी अपनी जुमलेबाजी में विश्वास नहीं है। जहाँ तक प्रधानमंत्री के जीतने का सवाल है तो मैं समझता हूं ये सबसे बड़ी घबराहट, बौखलाहट और भय है बीजेपी का, तो बार-बार प्रधानमंत्री जी भी कह रहे हैं कि वो चाहते हैं कि ऐसे सब लोग जिनके वोट विघटन से वो नाजायज फायदा उठा सकते थे, वो साथ ना आएं। इसलिए अपने चुनाव के बीच में दोनों व्यक्ति प्रधानमंत्री और सत्तारुढ पार्टी के अध्यक्ष ये कहते हैं, उल्टा ये उनकी घबराहट और बौखलाहट दर्शाता है, ना कि हमारे ऊपर कोई आरोप है।
Sd/-
(Vineet Punia)
Secretary
Communication Deptt.
AICC