डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि जिस प्रकार से अनेक तौर-तरीकों से ये सरकार निजता पर प्रहार कर रही है, परोक्ष रुप से सीधे रुप से। तो हम इसको आज शुरु करना चाहते हैं ये कहकर- ‘मोदी जी कर रहे हैं, निजता पर वार, अबकी बार डेटा लीक सरकार’, इसका नाम वास्तव में डेटा लीक सरकार होना चाहिए। लीक सिर्फ जनता जनार्दन के पैसे की नहीं, इसमें बहुत भयंकर लीक हो रही है, एक केस में 12,600 करोड़ की हुई, लेकिन लीक निजता की भी हो रही है। एक तरफ नीरव मोदी और मेहूल चोकसी पूरी तरह से सहयोग कर रहे हैं उस लीक में हजारों –करोड़ का और दूसरी तरफ सरकार के ऐप और नमो ऐप को मिलाकर महालीक हो रही हैं, इसलिए हमने कहा कि मोदी जी कर रहे हैं निजता पर वार, अबकी बार डेटा लीक सरकार।
आज सच्चाई ये है कि बड़े-बड़े भाषण, सेमिनार और उच्चतम न्यायालयों के व्यापक निर्णयों के बावजूद बिना किसी भय के, बिना किसी दंड के ये सरकार खुलेआम ये निजता पर प्रहार कर रही है। एक आपने आज ताजा उदाहरण देखा कि सरकार का ऐप 14 बिंदुओं पर आपके साथ फोकस करता है और नमो ऐप 22 बिंदु मांगता है आपसे। आज नमो ऐप के जो विस्तृत डिटेल आए हैं, उसमें ओडियो, वीडियो, कॉन्टेक्ट, मित्र, परिवार, आपके घूमने के तरीके, छुट्टियाँ तो ये मैं समझता हूं कि बिग-बॉस जैसा प्रयत्न है, जो सबकुछ जानता है, जानने का प्रयत्न करता है Spy करके भारतीयो पर, अपने ही देश के नागरीकों पर जासूसी करके।
आज आईटी का मतलब इस सरकार के लिए इनफोर्मेंशन टेक्नॉलोजी नहीं रहा, आईटी हो गया है ‘आईडिंटी थेफ्ट’, इस सरकार के लिए। उधर आईटी मंत्री प्रेस वार्ता करते हैं और इधर 50 लाख भारतीय नागरीकों का, भारत में रहने वाले वासियों का डेटा एक नमो पर्सनल ऐप के नाम पर एकत्र किया गया है। कितनी विचित्र बात है, सरकार से कुछ काम हो तो कुछ सरकारी चिन्ह के साथ, प्रभुसत्ता एक मापदंड के आधार आप कुछ एकत्र कर सकते हैं, वहाँ भी लीक नहीं होना चाहिए। लेकिन जब सरकारी ऐप है कि ये आवश्यक क्यों है कि नमो ऐप भी हो? इस देश के माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी सरकारी ऐप अलग एकत्र कर रहा है और नमो ऐप 50 लाख भारतीयों का डेटा एकत्र कर रहा है। इस निजी डेटा बेस के आधार पर क्या चाहते हैं, उधर से नमो पार्टी, उधर से नमो सरकार। अगर वो सिर्फ वार्तालाप करना चाहते हैं भारतीयों से, तो उसके बहुत से तौर-तरीके और हैं, वार्तालाप करने के लिए इतने सारे 22 बिंदु के आधार पर एकत्रित डेटा की क्या आवश्यकता है?
माननीय मोदी जी ये डेटा भारत का है, भारतीयों का है, आपका नहीं है, ‘नमो ऐप’ का नहीं है, नमो सरकार का नहीं है। 13 लाख NCC केडिट हैं, जिनका डेटा और उसमें पर्सनल मोबाईल नंबर है, ई-मेल आईडी है, वो सब दिया जाता है प्रधानमंत्री ऑफिस को कि इन्स्ट्रक्शन देनी है। इतने 60-70 सालों से क्या NCC केडिट को इन्स्ट्रक्शन नहीं दिया जाता था, शासन नहीं होता था क्या इस देश में? आज इन्स्ट्रक्शन देने के बहाने कि हम आईटी का प्रचार कर रहे हैं, आप हर व्यक्ति का मोबाईल नंबर ले लेते हैं और उस व्यक्ति का ई-मेल आईडी भी ले लेते हैं। आप ये बताईए कि अगर आप NCC केडिट हैं, आपके पास अधिकार क्षेत्र है, क्या आप मना करेंगे कि मैं आपको मोबाईल नंबर नहीं देता, बिल्कुल है, निजता का जजमेंट है। लेकिन अगर सरकार मांगती है तो क्या NCC केडिट मना कर सकता है और ऊपर से नमो ऐप पर दिया जाता है, तो वहाँ है, कहाँ मना हो सकता है, पर ये तो सत्तारुढ़ सरकार है। बी.एम.सी कृष्णा समिति बनाई गई है, एक पूरी कानूनी, पूरा ढांचा बनाने के लिए, लेकिन एक आंतरिक रिपोर्ट आई है, जो पिछले वर्ष 2017 में आई थी। ये मैं नहीं कह रहा हूं, सरकार की समिति जिसकी अंतिम रिपोर्ट आने वाली है। नवंबर 2017 की मैं कोटेशन दे रहा हूं। “The public and private sector are collecting and using personal data on an unprecedented scale while data can be put to beneficial use unregulated and arbitrary use of data, personal data, raises concerns relating to centralization of data base. …
ये शब्द कितने महत्वपूर्ण हैं, सैन्ट्रलाईजेशन ऑफ डेटा बेसिस, profiling of individuals increased surveillance and erosion of individual autonomy और आपको मना करने का अधिकार क्षेत्र वास्तव में डी-फेक्टो नहीं बचा। मैं वापस CA की बात नहीं करुंगा, कैंब्रिज वाली कंपनी, जिसका 2014 में बीजेपी ने कितना दुरुपयोग किया था। वो डिबेट हो गया है आपके समक्ष, मेरे साथियों ने कई बार इस मंच से रखा है। लेकिन मैं एक और महत्वपूर्ण प्रश्न उठाना चाहता हूं कि अगर कभी आपका डेटा इतना लीक हो जाता है, कभी कैंब्रिज एनालिटिका के द्वारा, कभी नमो ऐप के द्वारा, कभी सरकार के द्वारा, केडिट को, हर चीज में जानकारी मांगते हैं, तो आपका बैंक का डेटा, अगर बैंक से 12,000 करोड़ निकल गए हैं, तो आपका बैंकों का डेटा कितना सुरक्षित है? आज लूट मची है बैंक की। पूरे रुपए निकल गए, व्यक्ति निकल गए, भाग गए, कागज निकल गए तो डेटा क्या चीज है और डेटा क्या चीज है तो रुपया कितना सुरक्षित है आपका बैंक में?
आधार में बड़ा रोचक था। आज ही अखबार में आया है, मैं आपको ताजा चीजें बता रहा हूं, पुरानी बातें तो हमने की हैं आपके साथ। दो बड़े प्रसिद्ध ऑनलाईन एक्सपर्ट है, सिक्योरिटी एक्सपर्ट, जो आधार में स्पेशलाईज करते हैं। उन्होंने कहा कि दो पब्लिक सेक्टर इंटरप्राईजिज में सिलेक्ट डेटा लीक हुआ। जब लीक हुआ तो कुछ समय बात मालूम पड़ा कि शिकायत की गई, वो शिकायत एक महीने तक फिक्स नहीं हुई थी, जब उन्होंने प्रकाशित की तब तक पता नहीं कि फिक्स हुई या नहीं, शिकायत के बाद ये हालत है। लीक स्थापित है, लीक के बाद शिकायत हो गई है, लेकिन वो लीक महीने भर तक खुला लीक रहता है। आप जानते हैं कि आधार किस प्रकार से हजारों चीजों से लिंक हो जाता है। उन्होंने कहा कि “It was left up there for more than a month even those it had been reported to them directly”. …..
2018 में फरवरी 23 यानि पिछले महीने करीब-करीब एक महीने पहले 10,000 कस्टमर के क्रेडिट और डेबिट कार्ड डिटेल लीक हुए थे। एक प्रसिद्ध बैंक है जो आजकल बहुत सुर्खियों में हैं, पंजाब नेशनल बैंक। उधर नीरव मोदी और चोकसी जी 12, 000, 14,000 करोड़ ले जाते हैं और इधर 10,000 कस्टमर की एडमिटिड चीज है। ये सब इस सरकार, ये आईटी मंत्रालय, जितना समय वो प्रेस वार्ता करने में कर रहे हैं, उतना समय अगर लीक रोकने में लगाएं तो देश का कुछ भला होगा। ये हो रहा है उनकी नाक के नीचे।
2016, ये आवश्यक है आपको याद दिलाना। 2016 में 32 लाख डेबिट और क्रेडिट कार्ड कई भारतीयों के बैंक में कॉम्प्रोमाईज हो गए थे। उस समय जो सबसे बड़ा घोटाला था इस बारे में, वो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में हुआ था और एक बार में होने वाले घोटालों में सबसे बड़ी संख्या का ये घोटाला था। इसलिए शायद मोदी जी ने कहा था, हमारे आधार के वक्त ऐसा कोई आरोप नही था, जब हमने आधार बनाया था, तो ऐसा कोई आरोप नहीं था। जैसे हमने जीएसटी बनाया तो स्वरुप अच्छा, परिभाषा अच्छी, ढांचा अच्छा, उसको विकृत कैसे किया जाए, उसकी उन्होंने पूरी शिक्षा दी है, इस सरकार ने। तो उस वक्त हमारा अच्छा आधार था तो मोदी जी कहा करते थे, 8 अप्रैल 2014 का वक्तव्य यानि प्रधानमंत्री बनने से 2-3 महीने पहले Neither the team that I met nor the then PM Dr. Manmohan Singh could answer my question on security threat it can pose. There is no vision, only political gimmick. ….
यानि के उस वक्त के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह…..ये तब कहा जब तक ऐसा कोई भी आरोप नहीं था। आज क्या कहेंगे इन शब्दों पर वो, जब इतने आरोप हैं? ये शब्द तो माईंडलेस, पोसिबल निंदा होगी, आज की सरकार की। लेकिन मोदी जी की सरकार कुछ याद नहीं रखती, बहुत सिलेक्टिव मेमोरी है, हर चीज में, जीएसटी हो, आधार हो, कुछ भी हो, मैंने उनके शब्द बताए हैं।
अभी एक अखबार में और उत्तर भारत का शायद वो सबसे बड़ा अखबार है, दिल्ली का नहीं है और कहा जाता है कि उनके एडिटर को शायद जाना भी पड़ा इसी कारण। उन्होंने छापा था, शायद प्रकाशित किया कि स्टिंग ऑपरेशन कर रहे हैं, उसमें 1 करोड़ आधार के डिटेल 10 मिनट में मिल जाते हैं, 500 रुपए देकर। ये प्रकाशित स्टोरी है और उसके बाद एफआईआर दर्ज हुई थी। अब वो एडिटर साहब चले गए। ये इस सरकार के वैसे भी तौर-तरीके हैं, Shoot the Messenger, ignore the Message. इसलिए हमने कहा कि ये dismissive सरकार है, ऑपरेसिव सरकार है। रिपोसिंबल सरकार नहीं है, आप शिकायत कीजिए आपको जवाब नहीं मिलेगा, डिसमिसिव मिलेगा। आजकल जो आधार का मुद्दा चल रहा है उच्चत्तम न्यायालय में, वहाँ एक कारण आधार को सुरक्षित बचाने का बड़ा नवीनतम कारण दिया है सरकार ने, खैर अटॉर्नी जनरल तो सरकार का पक्ष रखते हैं। ये वही सरकार है जिसने पुरजोर तरीके से निजता वाले निर्णय का पूरजोर तरीके से विरोध किया था, निजता का जजमेंट जो आय़ा है, वो तो न्यायालय का है लेकिन वहाँ पर जो रिटन सबमिशन थे सरकार के, अटॉर्नी जनरल के विवादित संदर्भ में जो उन्होंने कहा था वो पूरी तरह से विरोध में था। उसी सरकार के अटॉर्नी जनरल ने सरकार की तरफ से कहा कि आधार में क्या समस्या है? आधार तो Aadhar’ is safe and secure because it is behind 13 feet high and 5 feet thick walls.
काश, 13 फीट लंबी ऊँची और 5 फीट मोटी दिवारों के पीछे डेटा रख सकते। आज तो डेटा के लिए बटन दबाना पड़ता है और हवा में चलता है डेटा। ये आर्ग्यूमेंट है केन्द्र सरकार का उच्चतम न्यायालय में आधार पर चल रहा है।
बेंगलूर का एक ऑर्गनाईजेशन है CIS, Centre for Internet Society, उसने मालूम किया है कि 130 मिलियन, करीब 13 करोड़ आधार कार्ड लीक हुए हैं, 4 सरकारी वेबसाईट से, ये प्रकाशित स्टडी है, 1 मई, 2017 की। देखिए इतने सारे जब आरोप होते हैं, तो कोई भी जिम्मेदार सरकार जो डिसमिसिव सरकार या ऑपरेसिव सरकार नहीं होती, वो कुछ जवाब देती है या कम से कम कुछ सेफ कार्ड बनाती है, सुझाव देती है और भविष्य के लिए कुछ संशोधन लाती है। यहाँ आपको ऊल्ट-पलट वार मिलता है, आपको digression और डिफलेक्शन मिलता है, प्रत्यारोप मिलता है। इसलिए हमने कहा कि ये एक दुर्भाग्य है कि निजता पर संवैधानिक नीति है, इतना बड़ा व्यापक जजमेंट है, उस पर ये सीधा वार और घातक वार कर रही है ये सरकार। मैं एक बात करके निजता पर अपना वक्तव्य खत्म करुंगा। जान बूझ कर ये डिफलेक्शन और digression की टेक्टिस रही है, उसका एक उदाहरण दे रहा हूं, पिछले कुछ दिनों से हम दे रहे हैं प्रेस वार्ता, तो उत्तर क्या मिल रहा है, आपका भी With INC ऐप था। ये जो आधा सत्य है या एक चौथाई सत्य की नीति बना रखी है इस सरकार ने उस रुप से चला दिया कि आपका भी एक With INC था। पूरी बात नहीं बताते हैं। INC में 15,000 डाउनलोड़ हुए हैं अभी तक, हमने भी बताया 50 लाख नमो ऐप पर। हमने पाया स्टड़ी के बाद कि अभी भी कांग्रेस वाले लोग डॉयरेक्ट मैंबरशिप ज्यादा पसंद करते हैं। ऑफलाईन ज्यादा पसंद करते हैं। सही मानें या गलत, कांग्रेस वालों को वो क्या कहते हैं मिस्डकॉल वाले सदस्य पसंद नहीं। मिस्डकॉल वाले मॉडल नवीनतम वाले मॉडल है सिर्फ बीजेपी। वो With INC चलाया ही नहीं गया। 15,000 मात्र लोगों आज तुलनात्मक रुप से बता रहे हैं, जब हम आप पर आरोप लगा रहे हैं, नमो ऐप अलग और सरकारी ऐप अलग। तो ये इस प्रकार के digression से काम नहीं चलेगा।
दूसरा मुद्दा, जिसका मैं चार्ट भी दूंगा, आकंड़े दूंगा। वो है हमारे किसानों के विषय में। क्योंकि कृषि और किसानों के विषय में दुर्भाग्य ये है कि ‘किसानों को नहीं मिलते फसलों के दाम, ये एमएसपी पर है। तो ‘किसानों को नही मिलते फसलों के दाम, मोदी सरकार चला रही है सिर्फ जुमलों से काम’। और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि आपको बताया है हमने पेज 44, घोषणापत्र में उन्होंने कहा था कोस्ट + 50 प्रतिशत as MSP, मैं आपको बताना चाहता हूं कि इस हद तक इसको विस्तृत किया गया है कि बजट तक में झूठ बोला गया है। बजट में बोला कि हमने पहले ही दे दिया है कोस्ट + 50 प्रतिशत as MSP किसानों को और आप आंकड़े देखें तो आपको पता चलेगा कि एक आंकड़ा मेरे पास है जो मैं आपको दे रहा हूं कि गेहूं, बारले, दाल, रेपसीड़, सनफ्लावर, कुछ भी ले लीजिए आप उसमें कोस्ट + 50 प्रतिशत MSP, जो बजट में कहा गया है कि दिया गया है, जबकि वास्तव में नहीं दिया गया है। गेहूं में 150 रुपए कम हैं, बारले में 375 रुपए कम है, ग्राम में करीब 900 रुपए कम हैं, इत्यादी-इत्यादी, पूरा चार्ट है। बाकि जितनी भी आपको डेटा चाहिए हमारे पास है, इस चार्ट में। उससे मालूम पड़ता है कि वायदा तो किया घोषणापत्र में, घोषणापत्र से लेकर चौथे वर्ष तक दिया नहीं। आपको याद है घोषणापत्र के बाद जो उच्चत्तम न्यायालय में मामला आया हलफना में कहा था कि संभव ही नहीं। पृष्ठ 44 में लिखा कि हम देंगे ही नहीं। जून या जुलाई में उच्चत्तम न्यायालय में मामला आया हलफनामे में कहा कि हम नहीं दे सकते। अब इस वर्ष के बजट में, चौथे वर्ष में, जब खत्म हो रहा है कार्यकाल, तब कह रहे हैं कि हमने दे दिया, हम दे रहे हैं। हमने ये चार्ट आपके लिए बनाया है। अब भी बिल्कुल असत्य कहा गया है और नहीं दिया गया है और अंदाजन 24 से 32 प्रतिशत कम दिया गया है। तीन साल तो कुछ किया नहीं और इस साल भी वायदे से 24 से 32 प्रतिशत कम दिया गया। अंत में आपको याद दिलाना आवश्यक है कि हमारे कृषि के आयात बहुत जबरदस्त बढ़ गए हैं, यानि 2013-14 में जो 15 बिलियन यूएस डॉलर थे, वो आयात 2016-17 में 25 बिलियन हो गया है कृषि पदार्थ का और निर्यात जबरदस्त उसी समय में गिरा है, 42 बिलियन से 33 बिलियन तो इसको कह सकते हैं, निर्यात आपका गिरा है 10 बिलियन यूएस डॉलर, आयात बढ़ा है 10 बिलियन यूएस डॉलर। 10 की घटत यहाँ, 10 की बढ़त वहाँ। यही एक कारण है कि पूरा देश और विशेष रुप से इस देश का कृषक पूछ रहा है कि- ‘किसान बिना दाम के, युवा बिना काम के, जनता पूछ रही है मोदी जी किस काम के’?
एक प्रश्न पर कि जिस तरह से inc India का जो ऐप है, उसको डिलिट किया गया है, क्या उसी तरह से नमो ऐप भी डिलिट किया जाना चाहिए, डॉ. सिंघवी ने कहा कि डिलिशन हम क्यों मांगे, हमें तो मतलब एक चीज से है, पहली बात तो with inc का सवाल सिंपल है, हमारे सर्वे ने पाया कि हमारे सदस्य मिस्डकाल model नहीं चाहते, हमारे सदस्य सीधे सदस्यता चाहते हैं, ऑफलाईन चाहते हैं। दूसरी बात, हम भाजपा एडवाईज करने के लिए नहीं है, हमारा एक ही मुद्दा है कि आप 50 लाख लोगों का आंकड़ा, कल 1 करोड हो जाएगा, डेटा सुरक्षित नहीं रख सकते हैं, हमने उनके ऐप से कई मतलब नहीं है। अगर आपका ऐप और उस ऐप की प्रवृत्ति और आपकी सरकार की प्रवृत्ति ऐसी है कि आप डेटा सुरक्षित नहीं रख सकते हैं। तो आपकी सीधी जवाबदेही बनती है। अगर आप डेटा सुरक्षित रखने वाला ऐप नहीं रख सकते, तो बंद कीजिए। लेकिन इस बहाने कि आप देखिए प्रधानमंत्री देश का एक मन की बात करता है उस में कहता है एक्जाम warriors को, एग्जाम ऑडियेंस कौन है, आपके बच्चे। 14,15,16,17 साल के, 10,12,13 साल के कि आप नमो ऐप डाउनलोड़ करो, ये सरकारी लोकतंत्र का दुरुपयोग करके एक सुझाव दिया जा रहा है इस देश के नागरीक को, वो भी बच्चों को। अगर डाउनलोड़ करने के बाद भी कंट्रोल नहीं है आपको 22 बिंदुओं पर तो ये डेटा कहाँ जाता है? तो ये दुरुपयोग नहीं है? आप 50 लाख डेटा आज किस प्रकार से जब बैंकों में निकल रहा है, जब आपके वेबसाईट से निकल रहा है, जब आधार में इतने आरोप हो गए हैं तो आप किस आधार पर मांग सकते हैं और दो-दो ऐप, सरकार का अलग चल रहा है, नमो ऐप अलग चल रहा है, कैसे हो सकता है ये?
एक प्रश्न पर कि जिस तरह का माहौल बना है, उस समय आपने ये ऐप डिलिट क्यों की, डॉ. सिंघवी ने कहा कि 15,000 लोग हैं, इतना बड़ा जनहित का सवाल हम पूछ रहे हैं और उसका उत्तर है हमने डिलिट किया। हमने चलाया ही नहीं, अगर चलाते तो क्या 15,000 होता, ये कुछ न्यूनतम है, जब वो नहीं चल रहा है, हमारे लोग नहीं चाहते हैं, तो हमने डिलिट कर दिया। ये हमारे जनहित वाले प्रश्न का ये जवाब कैसे हो सकता है?
पश्चिम बंगाल में फेडरल फ्रंट पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि मैं किसी स्पेकूलेटिव बात में पड़ने वाला नहीं हू, ना उसको सत्य, असत्य कहने वाला हूं। मैं आपके समक्ष दो सिद्धांत रखूंगा, एक सत्य ये है कि इतने कम समय में इतने अखिल भारतीय स्तर पर, केंद्र के स्तर पर इतनी विविध पार्टियों को जोड़ने का काम किसी ने मोदी जी की दक्षता के बराबर नहीं किया है। ये काम अगर मोदी जी ने किया है तो निश्चित रुप से इसका कोई कारण रहा होगा। जहाँ प्रदेश के स्तर पर विरोधाभास है और उसके बावजूद भारत के सबसे बड़े प्रदेश के इतनी ज्यादा पुराने राजनैतिक इतिहास के दो पार्टियाँ साथ आती हैं तो कम से कम इस सरकार में निक्कमापन्न तो बहुत है, दाल काली है या दाल में काला है, लेकिन है तो सही कहीं ना कहीं काला। तो इस सत्य को आज विविध पार्टियाँ जिनका कोई संबंध ना हो आपस में, दक्षिण में डीएमके से लेकर एसपी और बीएसपी, ममता जी की पार्टी से लेकर शिवसेना, टीडीपी से लेकर और कई पार्टियाँ, इस सत्य को केंद्र के स्तर पर कोई नकार नहीं सकता। इसका क्या निष्कर्ष होगा, उस पर मैं टिप्पणी नहीं करने वाला। दूसरा प्रादेशिक स्तर पर अगर कोई प्रतिद्वंध है, तो उसमें कोई विरोधाभास नहीं है। प्रादेशिक स्तर पर वो विवाद या विरोध रहेगा, रहना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र है, गणतंत्र है। दोनों को जोड़कर एक विरोधाभास निकालना सैद्धांतिक रुप से गलत है। ये हमारे राजनैतिक हिंदुस्तान में कई बार हुआ है और हो रहा है।
दिल्ली पुलिस जिस तरह से छात्रों के प्रदर्शन करने पर पत्रकारों को मार रही है, उस पर क्या कहेंगे, डॉ. सिंघवी ने कहा कि आपके उदाहरण में जोड़ना पड़ेगा, मध्यप्रदेश में है, बिहार में है, भागलपुर में हुआ है शायद और आरा में हुआ है। तो इस विभिन्न जो तरीके हैं, आज पश्चिम बंगाल लीजिए, जिस क्रूर तरीके से राम का नाम, राम नवमी जैसे शुभ दिवस पर इस तरह की राजनीति खेलना, विभाजन, वैमनस्य का वातावरण पैदा करना, झगड़े करना, जिस तरह से पत्रकारों पर, जिनका आपने नाम लिया, इसकी भर्त्सना करना ही पर्याप्त नहीं है। ये एक वातावरण का परिणाम है। ये एक बिना भय के जो कुछ कर लो, निकल जाओगे, निकल जाओगो और इसका root cause है असहिष्णुता का। आप पत्रकार हो, या कोई और हो, आप जो कहोगे, उसको मैं सहन नहीं कर सकता और उसको रोकने के लिए मैं कुछ भी करुंगा उसका मुझे भय नहीं है।