ALL INDIA CONGRESS COMMITTEE
24, AKBAR ROAD, NEW DELHI
COMMUNICATION DEPARTMENT
Highlights of the Press briefing
Dr. Abhishek Manu Singhvi, MP, Spokesperson, AICC addressed the media today at Parliament House.
डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि, अभी तक आपने देखा चौकीदार की एक विकृत परिभाषा इस देश में जो लागू हुई है और अब देश ये भी समझ गया है कि जुमलेबाज जासूस भी है। विश्व के सबसे बड़े जासूस और जासूसी के सबसे बड़े ढांचे पर अध्यक्षता करने वाले आज हमारी सरकार, आज हमारे माननीय प्रधानमंत्री बन गए हैं या बनने का प्रयत्न कर रहे हैं।
आज गैर संवैधानिक जासूसी एजेंसी खोलना सीखना हो तो इस सत्तारुढ़ पार्टी, प्रधानमंत्री और सरकार से सीखना चाहिए।
इसका उद्देश्य सिर्फ एक है कि बिग ब्रदर सिंड्रोम और जासूसी के सिंड्रोम में हम सब आतंक में रहें, भय में रहें और इस श्रृखंला में हमने दो-तीन पहले बात की थी, अभी तीन दिन हुए हैं, मैंने ओडिशा में बात की थी, किसी और ने यहाँ से बात की थी और आज 24 दिसंबर है, यानि कल एक और बहुत बड़ा कदम लेने का प्रयत्न किया जा रहा है। मैं पहले समझा दूं क्या बात है – गृह मंत्रालय और आईटी के अंतर्गत आज एक बड़ी मानी हुई और आदरपूर्ण संस्था है, इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन, जो विश्वभर की संस्था है, उसने आज प्रकाशित किया है, आपके लेखों में, अखबारों में, पत्रिकाओं में छपा है कि ऐसा प्रस्तावित है कि इनफॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी इंटरमीडियरी गाइडलाइनस अमेंडमेंट रुल, अभी ये लागू नहीं हुआ है, प्रस्तावित है। लेकिन ये प्रस्तावित क्या चीज है, कितनी भयानक है, क्यों है और याद रहे कि ये प्रस्तावित अभी तक किसी रुप से जनता जनार्दन के सामने वार्तालाप के लिए या विरोध प्रकट करने के लिए किसी भी वेबसाईट वगैरह में नहीं रखी की गई है। इसके अंतर्गत जो रुल हैं, जिन्हें कहा जाता है, ‘द इंटरमीडियरी रुलस’ 2011, उसको अगर मैं सरल शब्दों में कहूं तो उसके अंतर्गत अगर ऑटोमैटिक्ली हर इंटरमीडियरी को, इंटरमीडियरी मतलब होता है – सर्विस प्रोवाईडर, वाट्सअप हो, फेसबुक हो, सिग्नल हो, टैलीग्राम हो, कोई भी हो, इसके अंतर्गत सबका आधिकारिक कानूनी कर्तव्य बन जाएगा कि वो टेक्नॉलॉजी के सब सिस्टम रखेंगे, जिसके अंतर्गत उन्हें बताना पड़ेगा, संदेश भेजने वाला और संदेश जिसे मिलने वाला हो वो और विशेष रुप से क्या संदेश हो और उसका विशेष रुप से वो खुलासा कर सके।
अब unlawful इनफोर्मेशन क्या है, वो आप भेजने वाले निर्णित नहीं करेंगे, मैं रिसीव करने वाला निर्णित नहीं करुंगा, माननीय प्रधानमंत्री जी की सरकार निर्णित करेगी, बिग ब्रदर निर्णित करेगा, यानि जो आपके संदेश जा रहे हैं किसी भी ऐजेंसी से उसमें इस हस्तक्षेप का, इनवेजन (invasion) का अधिकार क्षेत्र बन जाएगा, इस देश में प्राईवेसी नाम की तो कोई चीज ही नहीं छोड़ेंगे, अगर ये लागू होता है तो।
अब मैं इसके दो-चार बिंदु बता दूं, ये अत्यंत महत्वपूर्ण बात है, गंभीर बात है, डरावनी बात है और हम आशा और विश्वास करते हैं कि इस प्रकार की विकृत संस्कृति इस देश में लाने से पहले सरकार शुरुआत में ही इसे बंद करे दे और माफी मांगे।
पहला, इसके अंतर्गत आप हर तरीके से किसी भी सर्विस प्रोवाइडर इंटरमीडियरी को कोई भी आदेश के अनुसार, उसके कोई भी कंटेट चैनल का खुलासा करवा सकते हैं। इसमें कोई लिमिटेशन नहीं है।
दूसरा, भेजने वाले की आइडेंटिटी, रिसीव करने वाले की आइडेंटिटी और जो actual लिखा है, उस सबका खुलासा हो सकता है।
तीसरा, इसमें स्वतंत्र, स्वछंद भावना प्रकट करने का जो मानवाधिकार है, हमारे अनुच्छेद-19 में, उसका लेशमात्र भी कहाँ बच जाता है, ये प्रश्न पूरा देश आपके जरिए पूछेगा। ये जवाबदेही मांगेगा।
चौथा, इसके दुरुपयोग का कोई अंत है? एक उदाहरण लीजिए, आप एक पत्रकार हैं, आपके सोर्सिस हैं, आपने अपने सोर्स का जिक्र करते हुए सोर्स से बात की, वाट्सअप में कनेक्ट करें, टेलीग्राम में करें, सिग्नल में करें, इससे फर्क नहीं पड़ता, आप अपने सोर्स से बात कर रहे हैं, उसकी कोई गोपनीयता नहीं है। आप कुछ भी बात कर रहे हैं, अगर राजनीतिक रुप से वो किसी को सूट नहीं करती है तो ये आदेश इसके अंतर्गत आ सकता है। राजनीतिक पार्टी है, आज ये किसी प्रेस वार्ता के बारे में मुझे कुछ इंस्ट्रक्शन दे रहे हैं, उसकी क्या गोपनीयता है? ये तो बहुत सरल उदाहरण हैं। इससे ज्यादा कई और बड़े उदाहरण हो सकते हैं, आम आदमी के बिजनेसमैन का, ये है ease of doing business इस सरकार की परिभाषा के अंतर्गत, वास्तव में यह ease of interfering business है। इंसपेक्टर राज अत्यंत छोटा शब्द है। ये बिग ब्रदर राज है, ये अव्वल दर्जे के जासूस का राज है।
72 घंटे में अनुपालन नहीं किया तो दंडित है और याद रखें हम कोई अश्लील या बच्चों से संबंधित पोर्नोग्राफिक मटेरियल की बात नहीं कर रहे हैं, जो कानूनी प्रतिबंधित हो, ये उसकी बात नहीं हो रही है। कोई भी इनफोर्मेशन, संदेश आप भेज रहे हैं, उसकी बात कर रहे हैं।
छठा बिंदु, end to end encryption, इसका मतलब ही नहीं रहा कुछ, end to end encryption तो शब्दावली भी नहीं रही, मजाक हो गया है इसका और यही है नैनी मॉडल, गुजरात मॉडल, माननीय मोदी मॉडल सबसे उपयुक्त शब्द है, माननीय अमित शाह मॉडल उससे भी ज्यादा उपयुक्त शब्द है। और हर जगह किया आपने, आजतक किया और आज आप एक और चरम सीमा वाला उदाहरण दिखा रहे हैं।
आठवां, इससे आपकी मंशा और सोच प्रकट होती है, आपकी सोच का तौर-तरीका प्रकट होता है, उसकी दिशा एक ही है, आपको लगता है कि सब चोर हैं। सभी अपराधी हैं। सबको संदेह की नजर से देखना, सबको एक डरा कर रखना, ये डिक्टेटरशिप मॉडल है और डिक्टेटरशिप मॉडल कई बिंदुओं में, कई पहलुओं में आजकल मोदी मॉडल सही रुप से कहलाया जा रहा है।
इसके पहले जो आपने अनेक उदाहरण देखे हैं, उनका मैं एक मिनट में संक्षेप से वर्णन कर दूं, क्योंकि ये उसी श्रृंखला में एक चरमसीमा है, उसी सूची में एक और कड़ी है। ये अभी शुरु नहीं हुआ है, ये 2014 से चल रहा है।
आपको ‘नमो’ एप याद है, हमने प्रसेवार्ता की थी, 22 प्रश्नों, 22 बिंदुओं पर। आपको सहायता देने के नाम पर 22 बिंदुओं पर आपसे इनफोर्मेशन, सूचना कलेक्ट कर रहे थे। आपको आधार की कहानी मालूम है, उसमें शुरुआत में सरकार का क्या स्टेंड था और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने कैसे उसके जो आपत्तिजनक मूल प्रावधान हैं, उनको स्ट्राइक डाउन किया, लेकिन अंततोगत्वा तब तक सरकार ने उसका समर्थन किया, जब तक वो हारी नहीं। आपको मालूम है कि पंजाब नेशनल बैंक के विषय में डेटा ब्रीच, 23 फरवरी, 2018 को हमने बताया था आपको, जिसमें 10,000 कस्टमर के डेटा लीक हुए थे। आपको याद है कि इंटरनेट, सैंटर फॉर इंटरनेट सोसाईटी ने 20 नंवबर, 2017 को, हमने इन सब पर प्रेस वार्ता की है, मैं विस्तार से नहीं बता रहा हूं आपको। नंवबर, 2017 यूआईडीए ने माना था कि 210 सैंट्रल और स्टेट गवर्मेंट वेबसाईट ने पब्लिकली डिस्प्ले किए थे आधार बैनिफिशरी के नाम और एड्रैस।
अभी हाल में तीन दिन पहले हमने प्रेस वार्ता की है, तो इन सबका और उसके अलावा संसद में डीएनए टेक्नोलॉजी रेगुलेशन बिल लंबित है। डीएनए टेक्नोलॉजी यूजर एप्लिकेशन रेगुलेशन बिल, बहुत लुके-छिपे तरीके से उसको पारित करने का प्रय़त्न किया जा रहा है और उसके विषय में हमने कई विरोध लिए हैं और यहाँ से भी हमने उसका विरोध लिया है तो उसको सामूहिक रुप से देखें, एक होलिक दृष्टि से देखें। तो यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार एक निगरानी तंत्र के रुप में स्थापित होने का प्रयास कर रही है।
देश जानता है कि ‘चौकीदार क्या है’ पर अब समझ भी गया कि ‘जुमलेबाज़ जासूस भी है’ !
किसानों की कर्जमाफी को लेकर भाजपा द्वारा दिए गए बयान से संबंधित एक प्रश्न के उत्तर में डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे’ अभी चुनाव की हार, कड़क मार, ये सरकार वहाँ से फ्रेश निकली है। देखिए, हमने वॉक द टॉक किया है, हमने माननीय मोदी जी जैसी जुमलेबाजी नहीं की है, हमने जो वायदा किया, वही पूरा किया, हमने कोई नई चीज नहीं की। इसका क्या प्रत्यक्ष प्रमाण है?, हमने हमारी यूपीए-2 में वायदा किया, अभी तो छोड़िए आप, हमने राष्ट्रीय स्तर पर किया, हमने लुके- छिपे नहीं किया, छाती ठोककर किया, उसमें कोई असंवैधानिक चीज है, तो बताइए?
अब उससे ज्यादा महत्वपूर्ण, इस बार तो हमारे मैनिफेस्टो में पहले से लिखा, हम चुनाव लड़ने गए उससे पहले से लिखा हमने, माननीय राहुल गांधी जी की करीब-करीब दसों स्पीचेज में, बहुत पहले से उन्होंने कहा, एक बार नहीं कहा, दसों बार कहा, महीने भर पहले से कहा। आपने क्यों नहीं कहा? आप भी तो सरकार में थे, अगर नहीं करते हम, अच्छा सोचिए अगर नहीं करते हम तो क्या होता, क्या कहते आप लोग? कि श्री राहुल गांधी तो झूठे वायदे करते हैं, मोदी जी जैसे। जो मैनिफेस्टों में लिखता है, उसकी पूर्ति के लिए वो आता है और अगर ये निकम्मी चीज है, जनता जनार्दन के विरुद्ध है तो जनता जनार्दन हमको निकाल बाहर करेगी।
नम्बर-3, आज चुनावों को खत्म हुए हफ्ता-दस दिन भी नहीं हुए, ये अचानक हमारी चार साल पुरानी मांग जीएसटी की अचानक याद कैसे आ गई, भाजपा सरकार को? ‘खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे’। ये आज अचानक अब मैं तो सुन रहा हूँ आज मैं यहाँ आ रहा हूँ तो मैं सुन रहा हूँ कि 15 प्रतिशत की बात कर रहे हैं, वित्त मंत्री, ये जागरुकता कहाँ से आई? हम तो 18 प्रतिशत पर मान रहे थे पहले, यद्यपि हमने कहा था कि आपके सीइए ने कहा है 15 प्रतिशत। तो ये देखिए, आज, जिस प्रकार से रुपए का दुरुपयोग किया जा रहा है, चुनाव के वक्त। रेशो है, अगर सौ रुपया अगर भाजपा खर्च करती है तो बाकी सब पार्टियाँ मिलकर 10 रुपया भी खर्च नहीं कर पाती है और वो हमें सीख दे रहे हैं, गरीब कृषकों के लिए। अगर हमने एक नीति उठाई है, जो पूर्व घोषित है, पूर्व प्रकाशित है, ये भद्दी बात है, ये दुःखद बात है और मैं तो समझता हूँ इस वक्तव्य का भी दंड इस पूरे देश के कृषक राष्ट्रीय चुनाव में देंगे इस सत्तारूढ़ सरकार को, जो वक्तव्य आपने अभी कोट किया है, कि ये कृषकों के विरुद्ध है। इस भद्दे, झूठे, विकृत वक्तव्य का भी अभी निकट भविष्य में इस सत्तारूढ सरकार के दिवाले के रुप में परिणाम आने वाला है।
किसानों की आत्महत्या से संबंधित एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि एक तरफ तो ये विरोध कर रहे हैं, कृषक को लोन वेवर देने का। खुद करने को तो छोड़िए आप, ये इतना क्रूर मजाक है ये, भद्दा मजाक है, एक तरफ तो हमारी निंदा कर रहे हैं, दूसरी तरफ, कम से कम हमारे कान पक गए इस देश के माननीय मोदी जी को दसों बार सुनकर कि हम फार्म इंकम्स डबल करेंगे, 2022 तक। आपने सुना है? कितनी बार बोला है, कम से कम 10-20 बार बोला होगा। अब, ये तो सब जानते हैं कि वो 2019 के बाद हैं नहीं यहाँ पर, जब मैं हूँ ही नहीं 2019 के बाद तो मैं सब वायदे कर सकता हूँ, जब मुझे कुछ जिम्मेवारी ही नहीं है तो वायदे करने में क्या जाता है।
तीसरा पहलू, हमारे कई आम इकॉनोमिस्ट ने, प्रसिद्ध इकॉनोमिस्ट की जरुरत नहीं है, शायद सेकंड इयर, अर्थशास्त्र के विद्यार्थी ने भी बता दिया होगा आपको कि अगर आपकी कृषि की 14 प्रतिशत पर ग्रोथ होगी, तब जाकर कहीं आप 22 तक आस-पास आएंगे डबल आय करने के लिए। अब मैं ये जानता हूँ माननीय मोदी जी और उनके अर्थशास्त्री मित्रों से और वित्त मंत्रालय से कि भारत में नहीं, कहीं भी 14 प्रतिशत कौन से द्वीप में विकास हुआ है, कृषि का। अब सबसे रोचक झूठ, क्रूर मजाक, इस डबलिंग ऑफ फार्म इंकम पर प्रश्न संख्या 1375, ये आतारांकित प्रश्न हुआ 18 दिसम्बर 2018 को, लोक सभा में। कितने दिन हो गए- 6 दिन हो गए।
माननीय सांसद आर पार्थिपन और एडवोकेट जोएस जॉर्ज का प्रश्न था, क्या सरकार खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से किसानों की आय को दोगुना करने की कोई योजना बना रही है? इससे ज्यादा सीधा प्रश्न कोई हो सकता है, मैं नहीं समझता। आप भी समझ सकते हैं, मैं भी समझ सकता हूँ, इसका उत्तर प्रकाशित हो गया, दिसम्बर, 18 और 19 की हिन्दी वेबसाइट में, संसद की, जिसमें पहला सेंटेंस है, जी नहीं महोदय। अब सुनिए मजाक, झूठ और मिथ्या प्रचार और क्रूर प्रयास का, ये हुआ प्रकाशित, हमारे पास स्क्रीन शॉट है, आपको देंगे। 18 दिसम्बर का प्रश्न है, जी नहीं महोदय, जवाब आ गया, अब अचानक प्रधानमंत्री जी को याद आया होगा, मैंने तो 50 बार इसका वायदा किया है तो जब उसी रिपोर्टर ने 21 दिसम्बर को वापस उस वेबसाइट को देखा, तो उस उत्तर में बदलाव कर दिया था। Written answer published on the website had been altered और अब जो नया उत्तर है, वो पढ़ देता हूँ आपको। जी नहीं महोदय काट दिया, हट गया वो। महोदय या साहब ने बोला कि जी नहीं महोदय हटा दीजिए और उसकी जगह लिखा, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के प्रोत्साहन और विकास हेतु खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय केन्द्र क्षेत्र की स्कीम वगैरह-वगैरह ऑल नॉनसेंस। मुख्य उत्तर था कि क्या ये कोई स्कीम है, डबल आय करने की? ठीक है, प्रश्न होता है, पार्लियामेंट में प्रश्न पूछा जाता है, सीधा उत्तर पूछना पड़ता है, आप डिस्कसन नहीं कर सकते प्रश्न के उत्तर में, प्रश्न पूछना पड़ता है, क्या ये गलत है, या सही है, सफेद है या पीला है, तो प्रश्न था कि कोई ऐसी स्कीम है क्या दोगुनी आय करने की? उत्तर होता है पहली लाईन में, जी नहीं महोदय, 18 दिसम्बर का उत्तर, 18 और 19 को दिख रहा है वेबसाइट पर स्क्रीन शॉट हमारे पास है और 21 को बदल गया, ऐसा मजाक अगर कृषकों का उड़ाएगी ये सरकार और वो किसको उपदेश देंगे उसके बाद?
वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली के बयान से संबंधित एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि साढ़े चार वर्ष बाद ये बात बता रहे हैं आपको, आज जाकर जरा आम ट्रेडर, एसएमई से पूछे और सबसे खराब टैक्स सिस्टम था वो साढ़े चार साल तक हमने देखा वो भी बदलाव, कौन सा बदलाव किया है? एक विकृत जीएसटी को लागू करना, अच्छा टैक्स सिस्टम लाने का, बदलाव की परिभाषा अगर उनकी यह है, तो उनको बधाई।
सिंगल टैक्स सिस्टम से संबंधित एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि सिंगल नहीं है। इस सरकार की जुमलेबाजी के साथ एक और परिभाषा है, बहानेबाजी। जुमलेबाजी सर्वोत्तम, नम्बर दो स्थान पर बहानेबाजी होती है, हर चीज जो नहीं होती है, लीगेसी इशू है। हर चीज नहीं होती है, हम असमर्थ हैं, क्योंकि कांग्रेस जो नहीं होने दे रही। अब मैं आपको बता दूँ कि ये जो समान रेट का मजाक उड़ाते हैं, और मेरे को आश्चर्य है कि माननीय वित्त मंत्री कैसे कह सकते हैं ये? किसी ने समान रेट मांगी ही नहीं आज तक, जीएसटी में समान रेट तो हमने कभी नहीं कहा। जीएसटी में एक सिस्टम होता है, जो इनके खुद के आर्थिक सलाहकार और हमने कहा है और उसके बारे में ट्वीट किया है, रेट एक बेसिक होती है, एंकर रेट हमने कहा कि 15 नहीं तो 18 तक जा सकते हैं, उसमे कहा कि दो रेट होते हैं प्लस डीमेरिट रेट।
अगर कोई गांजा बेच रहा है, तो अगर उसको अलाओ करते हैं किसी एरिया में तो उसके टैक्स 18 के लिए नहीं कह रहा है कोई उसे कहते हैं डीमेरिट रेट यानि एवरेज रेट के ऊपर कुछ होता है। एक होती है, मेरिट रेट जो अच्छी चीजों के लिए एंकर रेट माइनस एक रेट होती है। तो वास्तव में जब कार्यान्वित होती हैं, तो तीन होती हैं, हमेशा। समानता ये नहीं कि हम सब चीज एक ही में होती हैं, लेकिन एंकर रेट की बात हो रही हैं, हमारी एंकर रेट्स पांच थी, असल में आठ थी, 28 एक तो 40 भी थी, 40, 28, 18 इत्यादि-इत्यादि, तो जो श्री सुब्रहमण्यम ने लिखकर दिया है, उनकी रिपोर्ट में जीएसटी में आज तीन साल हो गए कि एंकर रेट एक होनी चाहिए, एक डीमेरिट रेट हो सकती हैं, उसके ऊपर एक मेरिट रेट हो सकती है। इतनी सरल चीज को क्या जबरदस्त स्पिन डॉक्टरेट से कहा गया कि कांग्रेस तो मूर्ख है एक रेट माँग रही है।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि आगे-आगे देखिए होता है क्या, अभी तो चुनाव से निपटे हैं, आप देखेंगे कि जबरदस्त मजबूती के साथ अभी आगामी चुनाव में कांग्रेस कई अनेक, अन्य पार्टियों के साथ उतरेगी, उसका परिणाण भी आप निकट भविष्य में देखेंगे, समय देना पड़ता है, इन विषयों पर, आप इस पर धैर्य रखें।
आप पार्टी से कांग्रेस के गठबंधन पर पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि कौन से आलाकमान ने कहा है आपको गठजोड़ के बारे में, मैं भी मिलना चाहता हूं उन आलाकमान से। ये एक प्रेस अटकल और तथ्यों से परे है। आज हमारा डीपीसीसी एक स्ट्रौंग स्टेट यूनिट है और वो स्टेट लेवल पर लड़ाई लड़ रहा है और लड़ता रहेगा और जहाँ तक असेंबली का सवाल है, मैं समझता हूं यह एक भद्दा या पैटी रिएक्शन है। मैं समझता हूं ऐसे रिएक्शन अपने आप निर्णित हो जाते हैं, उनका न्याय अपने आप जनता जनार्दन कर देती है कि किसी मृत व्यक्ति से कोई अवार्ड वापस लिया जाए, इससे ज्यादा घृणित मजाक क्या हो सकता है।
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(Vineet Punia)
Secretary
Communication Deptt
AICC