डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि- 2nd July

कुछ लोग जमाने को नजर बेच रहे हैं,

अफवाह को कुछ कहके खबर बेच रहे हैं,

बिमार को बस अब हवाओं पर छोड़िए,

कुछ लोग दवाओं में जहर मिलाकर बेच रहे हैं।

 

ये हमने 70 वर्ष के गौरवशाली इतिहास में ऐसी चीज पहले कभी नहीं देखी, जैसे इस देश में कोई कानून व्यवस्था नहीं है, कानून की रीढ़ की हड्डी नहीं है, जंगलराज है। क्या यही मोदी जी के नए भारत के नए प्रतीक हैं, नए भारत के नए प्रतीक? अगर जंगलराज है, सामूहिक दंड देने की, तुरंत दंड देने की प्रक्रिया है, कानून और कानून व्यवस्था का अभाव है तो मोदी जी से हम आदर पूर्व पूछना चाहेंगे कि क्या ये आपका नया भारत है? आज अफवाहों का राज चल रहा है, अफवाहों पर आधारित देश को चलने दिया जा रहा है और हमारे देश की सहिष्णुता की पंरपरा पर ये आघात है। इस प्रकार की लिंचिंग, जो प्रक्रिया, इसका इस्तेमाल अंग्रेजी में ही करना चाहिए, क्योंकि ये स्थापित शब्द है, जाना-माना शब्द है, जो दुर्भाग्यपूर्ण आज भारतवर्ष में सुप्रसिद्ध कर दिया गया है। जो लिंचिंग प्रक्रिया है, वो ना हमने कभी ना देखी और सुनी और दूसरे लोग, दूसरे देश, दूसरे समुदाय ये सोच रहे हैं कि भारत जैसे गौरवशाली गणतंत्र में ये क्या हो रहा है?

 

आज ये देश वही है, कानून व्यवस्था वही है, पुलिस वही है, प्रादेशिक संस्थाएं वही हैं, केन्द्रीय संस्थाएं वही है, ब्यूरोक्रेसी वही है, नया क्या हुआ इन चार साल में जो 70 साल में पहले नहीं देखा आपने? नया हुआ है अविश्वास, नया हुआ है trust deficit और नया हुआ है वो संकेतात्मक संदेश, जो दिन-प्रतिदिन ये सरकार देती है, कभी मुँह फेर के, कभी आँखे बंद करके, कभी पीठ पर शाबाशी देकर। संकेतात्मक, प्रतिकात्मक संदेश दिया है कि आप असहिष्णुता को चरम सीमा पर भी ले जाएंगे तो आपके दंडित होने की कोई संभावना नहीं है। आपको आरोपित होने की संभावना नहीं है, दंडित होने की तो दूर की बात है और गाँधी जी के कोटेशन में कहा था, ‘Intolerance is itself a form of violence and an obstacle to the growth of a true democratic spirit’. ये भुला दिया गया है। आज अगर आपने एक नया लाईसेंस जारी कर दिया है, इन चार वर्षों में, इस प्रकार की असहिष्णुता का, इस प्रकार के आपसी मतभेद और मनभेद का, पड़ोसी और पड़ोसी में, नागरिक और नागरिक में, भाई और भाई में, तो उसका परिणाम एक ही होगा, तुरंत ऑन दी स्पॉट न्याय, जिसको आप सही समझते हैं। जो न्यायपालिका के पास जाने की आवश्यकता नहीं होती, जिसको अंग्रेजी में vigilantism अर्थात् बिना किसी दया भाव के तुरंत ऑन दी स्पॉट चौराहों पर फैसला।

 आज आप बरगला सकते हैं, बहका सकते हैं देश को बोलकर कि अमूक केस के तथ्य हमारे पास नहीं हैं, उसकी जांच होगी, उसका ये होगा, उसका वो होगा। लेकिन सच बात ये है कि सामूहिक रुप से इस देश में कभी ऐसा भय का, दुराव का, आपसी विभाजन का, मतभेद और मनभेद का वातावरण कभी नहीं रहा और अगर ये सब हो रहा है तो इसका सिर्फ एक ही कारण है, कि ये वातावरण अब बन गया है कि जो मैं आपके बारे में कहता हूं, उसको तुरंत जो मैंने कहा है उसकी अतिश्योक्ति करके सही मान लिया जाता है। ये कब हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ, ये हम सब जानते हैं, ये चार वर्ष के बाद हर वर्ष बढ़ती हुई जो बाढ़ सी आ रही थी, जिसकी अनदेखी की गई है। बल्कि मैं कहूंगा दुर्भाग्य है देश का कि इसे प्रोत्साहित किया गया।

 एक महीने में और मैं बिल्कुल जिक्र नहीं कर रहा हूं, गाय से संबंधित किसी मृत्यु का। ये मैं बड़ा स्पष्ट कर रहा हूं। एक महीने में 28 ऐसी वारदातें, लगभग एक प्रतिदिन, हमको विश्वास नहीं हो सकता है, मैंने आपको बताया है, महाराष्ट्र के धुले में कल 5 लोगों के साथ जो हुआ और उससे पहले के कई उदाहरण हैं, महाराष्ट्र के उदाहरण हैं पहले के। त्रिपुरा के 4, असम के 2, आँध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, गुजरात और छत्तीसगढ़ में एक-एक, उत्तर प्रदेश में एक, ये कभी कोई मान सकता है कि भारत जैसे गौरवशाली देश में असम की सरकार एक सुकांत चक्रवर्ती 33 वर्षीय व्यक्ति को engage करती है ऐसी अफवाहों को जाकर आप दूर कीजिए, लाउड स्पीकर का इस्तेमाल करिए, उस ग्रामीण इलाकों में और जो व्यक्ति अफवाहों को दूर करने की कोशिश कर रहा था, वो लिंच हो जाता है। हमारे यहाँ पर हिंसा नई नहीं है, कई बार हुई है पर इस प्रकार की हिंसा, जिसमें ना कोर्ट, ना कचहरी, ना प्रोसिक्यूटर, ना आरोपी, ना प्रक्रिया, ना शिकायत, ना सफाई, ये तो पहले कभी नहीं होता था।

 ये उससे भी ज्यादा दुखद प्रसंग है कि बहुत महानुभाव जो बड़े-बड़े ओहदों पर हैं, सत्तारुढ़ पार्टी में, सरकार में, जिस प्रकार के भद्दे, भर्त्सना योग्य वक्तव्य आ रहे हैं, ऐसे प्रसंगों पर, उनके द्वारा। ऐसे प्रसंग में कम से कम कुछ वक्तव्यों के लिए कुछ इंतजार तो होना चाहिए, कुछ समय तो देना चाहिए। मैं दो उदाहरण दे रहा हूं, मेरे पास बहुत से उदाहरण हैं। त्रिपुरा के मंत्री महोदय हैं, वो भी मंत्री शिक्षा के, न्याय और कानून के श्री रतन लाल नाथ, वो उस बच्चे के परिवार में जाते हैं, जिसके विषय में अफवाहें फैलाई गई थी, वीडियो में है ये, हम सिर्फ वीडियो की बात आपके सामने रख रहे हैं, “the kidney was taken out of the boy’s body after making a round cut”. नाथ ने कहा कि “never had Tripura witnessed such an incident” अगर ये सही भी होता तो मंत्री जैसे जिम्मेदार पद वाले व्यक्ति द्वारा जाकर इस प्रकार का भड़काने वाला वक्तव्य नहीं देना चाहिए। इसे मजाक कहिए या दुखद प्रसंग कहिए, पोस्टमार्टम होता है, मुख्यमंत्री खुद जाते हैं और मुख्यमंत्री पोस्टमार्टम के आधार पर कहते हैं कि किड़नी सब सही थी। ये क्या देश चल रहा है, केन्द्र सरकार किसकी है, त्रिपुरा में प्रदेश सरकार किसकी है?

 भारतीय जनता पार्टी के सांसद है झारखंड से श्री निशिकांत दुबे, तथाकथित रिपोर्ट हुआ है आपके अखबारों में, मैंने इसका खंडन नहीं देखा अभी, है तो बताएं? उन्होंने कहा कि मैं लीगल फीस उन चारों व्यक्तियों के लिए मैं अदा करुंगा, मुआवजा दूंगा, जो चारों व्यक्ति गोड्डा में दो व्यक्तियों को मारने और लिंच करने के विषय में आरोपित हैं। नित्यानंद माथुर हैं, मीडिया इंचार्ज, रामगढ़, झारखंड में बीजेपी के और उनकी गिरफ्तारी हुई है इसी लिंचिंग के विषय में।

ऐसे उदाहरण बहुत हैं, लेकिन मूल बात उदाहरण की नहीं है। मूल बात है कि हम किस तरह का देश चाहते हैं, देश में क्या हो रहा है, देश में क्या होने देना चाहिए और इसमें ना राजनीति हो सकती है, ना धर्म हो सकता है, ना विवाद हो सकता है, ना सामाजिक मुद्दा हो सकता है। इसमें सिर्फ एक है कड़क कानून की कड़क लात और आपका एक ऐसा संदेश जो प्रतीकात्मक रुप से या किसी और रुप से ये संदेश नहीं देता है कि ना आप आरोपित होंगे ना दंडित होंगे। क्योंकि ये प्रक्रिया जिसके अंतर्गत आज केन्द्र सरकार और कई प्रादेशिक सरकारों ने ये भीड़ कभी भी भीड़ से भेड़िया बन सकती है। भीड़ को भेड़िया बनने की प्रक्रिया में प्रतिबंध नहीं लगाने की जो गलत नीति अपनाई है, ये देश के लिए खतरनाक है और हम इससे बहुत ज्यादा चिंतित हैं।

 ये भीड़ तो अंधेरा है, जो अपनी जेब में भरकर लाती है और उस अंधेरे के बदले परिवार के नूर को ले जाती है। और ये भीड़ किसी भी गणतांत्रिक, लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सही नहीं है, इसकी सोच भी सही नहीं है। ये भीड़ शायद अपनी इंसानियत को घर पर ताला लगाकर आती है। आपने कुछ भीड़ें बंटवारे के वक्त सुनी और देखी होंगी। ये भीड़ कभी अपने हुकमरानों के आदेशों से भेड़िया बन जाती है।

 आप कितने भी राजनीतिक खेल, खेल लीजिए, हमारा विनम्र सादर निवेदन है कम से कम इस प्रकार की भीड़ की प्रक्रिया, सामूहिक लिंचिंग की प्रक्रिया को तुरंत बंद कीजिए, कोई बहाने मत दीजिए, वक्तव्य मत दीजिए, आरोप-प्रत्यारोप मत कीजिए, हमें सिर्फ परिणाम चाहिए।

केन्द्रीय मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज की ट्विटर पर हुई ट्रोलिंग को लेकर पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि आपने प्रश्न आज पूछा है, मैं उस समय देश में नहीं था, मुझे याद नहीं, लेकिन लगभग 10-12 दिन पहले सुषमा जी के विषय में ये आया था और ट्रोलिंग चली थी इस विषय में। मैं इस देश में भी नहीं था फिर भी मैंने उसी समय भर्त्सना की थी, लिखित रुप से अपने ट्विटर पर। आप तारीख देख लीजिएगा। उसके बाद कांग्रेस ने भी की है। आज दुर्भाग्य ये है कि यह सुषमा जी का मुद्दा नहीं है, दुर्भाग्य से यह मुद्दा सुषमा जी को ये याद दिलाता है जिसको आपने परिभाषित किया है, Frankenstein  Monster के रुप में। उसकी परिभाषा यही होती है कि जो उसको बनाता है, उसके निर्माता को ही वो खाता है, उसी को Frankenstein  Monster कहा जाता है, निर्माता को खाने वाली चीज। ये बात याद दिलाता है कि जिस पार्टी से संबंधित है सुषमा जी, अगर उन्होंने ऐसा शेर बनाया है या ऐसा Monster बनाया है तो हम सबको याद रखना चाहिए कि शेर से कब उतरेंगे यह निर्णय शेर करता है, आप निर्णय नहीं कर सकते और शेर कब आपको खाएगा, वो भी शेर ही निर्णय करता है, आप नहीं कर सकते। मैंने इसकी भर्त्सना की है 10 दिन पहले और आज भी कर रहा हूं, कांग्रेस ने भी की है और इसकी भर्त्सना आज भी कर रही है। लेकिन मैंने ज्यादा आवाजें नहीं सुनी बीजेपी से और मैं किसी व्यक्ति विशेष की बात नहीं कर रहा हूं मैं एक सोच की बात कर रहा हूं। आज सुषमा स्वराज जी हैं, कल ये हो सकती हैं, कोई भी हो सकती हैं। मुझे दुख नहीं अचंभा है कि इस देश में आखिर सोशल मीडिया ना कल बनी, ना चार साल पहले बनी थी, ना ही 2018 में बनी। मुझे अचंभा, आश्चर्य है और अत्यंत दुख है कि मेरे सहयोगी प्रिंयका चतुर्वेदी जी के बारे में ऐसी चीजें छापी गई हैं। तो मेरे कहने का मतलब ये है कि आज ये वातावरण किसने बनाया, ये संदेश किसने भेजा और ना आरोपित करना, ना दंडित करना, ना भर्त्सना करना किसने की? इसका परिणाम है ये सब।

 एक अन्य प्रश्न पर कि लिंचिंग में जो लोग मारे जाते हैं, उसमें ज्यादातर दलित, पिछड़े, मुस्लिम और गरीब होते हैं, क्या कहेंगे, डॉ. सिंघवी ने कहा कि जब सामाजिक असुंतलन होता है, जब मतभेद और मनभेद का वातावरण बनाया जाता है, तो कभी भी कहीं भी हो, हमेशा गरीब लोग ही सबसे ज्यादा दुष्परिणाम से, दुष्प्रभाव से पीड़ित होता है। हमेशा और मैंने किसी धर्म की बात नहीं की और मैं समझता हूं गरीबी एक सबसे बड़ा श्राप है और आप उस श्राप पर और श्राप लगा रहे हैं। आप दलित हों या अल्पसंख्यक हों, उससे क्या फर्क पड़ने वाला है। आप गरीब गाँव में सबसे गरीब तबके के हों, तो मुद्दा ये नहीं है, मुद्दा ये है कि आपने ये वातावरण बनाया है, आज कुछ हद तक आपको खा रहा है, लेकिन ज्यादा हद तक इस देश के आम आदमी और गरीब व्यक्ति को खा रहा है।

 एक अन्य प्रश्न पर कि नीरव मोदी को लेकर एक रेड़ कॉर्नर नोटिस जारी हुआ है, डॉ. सिंघवी ने कहा कि हम सुन रहे हैं, ड्रम बीटिंग, पिछले 5 महीने से। ये वारदात कब हुई थी, जनवरी 18 के पहले। तो आज हमने आपसे सुना, हमें बड़ा आश्चर्य हुआ कि 7 महीने की ड्रम बीटिंग के बाद आज रेड़ कार्नर नोटिस जारी हुआ है। ये तो बड़ा जबरदस्त रेड़ कॉर्नर नोटिस होगा जिसे 7 महीने लगे! आपने पूरे विश्वभर में ढिंढोरा पीट दिया कि आपने पकड़ लिया है, पकड़ने वाले हैं, पकड़ कर लाने वाले हैं, पकड़ लेंगे और आज सात महीने बाद रेड़ कॉर्नर नोटिस जारी हुआ। आपको ये पता होना चाहिए कि नोटिस शुरुआत होती है प्रक्रिया की, अंत नहीं होता है तो शुरुआत आपने रेड़ कॉर्नर नोटिस से की है 7 महीने के बाद। ये अपनी कहानी बताता है, अब आपको हर प्रकार के एक्सपलानेशन मिलेंगे कि हमने ये दिखाया, ये कहा, वो किया, हम सब जानते हैं क्योंकि आपने प्रश्न पूछा कि इंटरपोल की किताब में कई अलग-अलग रंग के नोटिस होते हैं और रेड़ कॉर्नर नोटिस से बाकी अलग रंग होते हैं, भिन्न-भिन्न रंग, उनका मतलब होता है सिर्फ सूचित करना, ना आदेश देना या अनुरोध करना कि इस व्यक्ति को रोको। और आज आपको बताया जा रहा है जुलाई में कि ये नोटिस जारी हुआ है तो मैं समझता हूं कि आप केवल ढिंढोरा पीट रहे हैं पूरे देश में, पूरे विश्व में।

 एक अन्य प्रश्न पर कि लोकपाल की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिन का नोटिस जारी किया है, डॉ. सिंघवी ने कहा कि लोकपाल की नियुक्ति के बारे में मैंने लेख लिखा है, आपके समक्ष प्रेस वार्ता 10 बार की है। अगर सौभाग्यवश कभी लोकपाल की नियुक्ति केन्द्र में हो गई तो शायद 2019 के चुनाव के कुछ चंद दिन पहले होगी, अगर हुई तो? अभी तक का जो ट्रेक रिकोर्ड यह बताता है कि जब 13 वर्ष तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए माननीय मोदी जी ने गुजरात में लोकायुक्त नहीं बनने दिया, जब तक वो गुजरात छोड़ कर नहीं निकल गए। तो जब तक वो 2019 में इस बंदिश से नहीं हटने वाले हैं, जो हटेंगे वो, उससे पहले मुझे नहीं लगता कि लोकपाल दिखेगा। सुप्रीम कोर्ट पूरा भरसक प्रयत्न कर रही है, हम आशा और उम्मीद करते हैं कि ये प्रय़त्न सफल रहे। लेकिन जिस नीयत और नीति जिसकी बात आपसे बहुत बार करते हैं, उसका मापदंड ये होना चाहिए कि उस नीयत और नीति में 13 साल तो निकाले गुजरात में और सवा चार साल यहाँ निकल गए हैं और पाँचवा वर्ष निकलने वाला है। नीयत और नीति देश ने देख ली है।

 एक अन्य प्रश्न पर कि जम्मू-कश्मीर में क्या कांग्रेस पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाएगी, डॉ. सिंघवी ने कहा कि मेरे जो सहयोगी हैं जो उस प्रदेश को देखते हैं, उन्होंने स्पष्ट कह दिया है कि हमारी मांग बड़ी स्पष्ट है, मैं आपके सामने दुबारा स्पष्ट कर दूं कि चुनाव तुरंत होने चाहिएं। पहले आपने उस प्रदेश के शासन का सत्यानाश किया, अनैतिक गठबंधन किया, आज जब आप रिमोर्ट कंट्रोल से वही शासन करना चाहते हैं, गवर्नर रुल के नाम पर और साथ-साथ अपमान को जोड़ना चाहते हैं, हमारे ऊपर थोपकर कि आप सरकार बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। ये किस प्रकार की बातें हो रही हैं? मझधार में छोड़ दिया जम्मू-कश्मीर को आपने और आज हमारी मांग को आप मान नहीं रहे हैं। अभी तो 3 साल बचे हैं उस प्रदेश के, 6 साल होते हैं। 3 साल बचे हैं, आप चुनाव क्यों नहीं करते हैं? अगर आप नहीं कर पा रहे हैं तो गवर्नर रुल में जो भी होगा, दूध का दूध पानी का पानी सामने आ जाएगा। हिम्मत है तो चुनाव करवाईए, चुनाव करवाना या नहीं करवाना आपके हाथ में, गठबंधन करना या नहीं करना आपके हाथ में, गठबंधन छोड़ना आपके हाथ में, राज्यपाल का शासन करना आपके हाथ में। ऐसे नाजूक, संवेदनशील, डेलिकेट प्रदेश में इस प्रकार की नीति और दूसरी तरफ राष्ट्रवाद की थपथपी करते हैं। छाती ठोकते हैं, राष्ट्रीय सुरक्षा के ऊपर। मैं समझता हूं कि यह साफ जाहिर है कि बीजेपी किस प्रकार की नीति अपनाती है।

 एक अन्य प्रश्न पर कि क्या इस मानसून सत्र में कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लाएगी, डॉ. सिंघवी ने कहा कि आपको याद दिला दूं कि हमारा वो मुद्दा शुरुआत के कुछ दिनों के लिए था, जिसके बहाने पर, जिसके एक्सक्यूज पर सत्तारुढ सरकार द्वारा पूरे सत्र को नष्ट किया। ये पहली बार हुआ कि किसी चीज को बहाना बनाकर सत्तारुढ़ पार्टी और उनके समर्थकों को कहा गया कि संसद अवरुद्ध कीजिए। जहाँ तक आपके प्रश्न का सवाल है, मैं ये नहीं कह सकता कि क्या स्वरुप होगा हमारे आक्रमण का, लेकिन निश्चित रुप से हमारे पास जनता से जुड़े कई औजार हैं, कई मुद्दे हैं, सरकार को घेरने के लिए। उन सबको हम लाएंगे, कई मुद्दे आज आपके सामने डिस्कस हुए हैं। जम्मू-कश्मीर की दुर्दशा, लिंचिंग, कमजोर आर्थिक व्यवस्था, बेरोजगारी, किसानों की दुर्दशा, भ्रष्टाचार। अब किसी भी मुद्दे के आधार पर कभी भी अविश्वास मत अगर सामूहिक मत बनता है तो सरकार तैयार रहे। एक कहावत है कि कोई भी लोकतंत्र, गणतंत्र पर खड़ी सरकार को हर क्षण अविश्वास मत के लिए तैयार होना चाहिए क्योंकि अगर लोकतंत्र पर विश्वास नहीं तो लोकतंत्र कैसा। अब ये अलग बात है कि जो पिछले सत्र में हमने देखा बहानेबाजी में आप अपने लोगों को ही खड़ा करके खुद अपनी सरकार ही संसद को अवरुद्ध करें, वो अलग बात है, उसका पर्दाफाश भी हम करेंगे।

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